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कोडरमा में अब प्रत्याशी बदलने की सोच पनपी

झारखंड भाजपा ने निरंतर सक्रियता बनाने रखने की योजना

  • इतने के बाद भी हावी है गुटबाजी

  • संभावित अध्यक्ष पर अंदर ही सवाल

  • महिला प्रतिनिधि अब बदलने की सोच

राष्ट्रीय खबर

रांचीः भारतीय जनता पार्टी झारखंड में जरा सा भी आलस्य नहीं बरतना चाहती। इसी वजह से तमाम इलाकों में लगातार कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। इसका एक मकसद आगामी लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं को पूरी तरह तैयार रखना है। बौद्धिक स्तर पर उन्हें जनता से आने वाले प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर देने के लिए परोक्ष तौर पर प्रशिक्षित किया जा रहा है।

इसी वजह से नरेंद्र मोदी के बूथ मजबूत करने का आह्वान के बाद से पार्टी की पूरे राज्य में सक्रियता बढ़ गयी है। इस सक्रियता के बीच भी पार्टी की आंतरिक गुटबाजी उभरती हुई दिख रही है। दिल्ली में श्री मोदी की अगुवाई में हुई बैठक में झारखंड के मुद्दे पर भी चर्चा हुई है।

यह साफ हो गया है कि संभावित मंत्रिमंडल विस्तार में झारखंड के किसी सांसद को शायद मौका नहीं मिलेगा। दूसरी तरफ यह भी चर्चा है कि इसी बीच केंद्र में मंत्री बने किसी का पत्ता कट भी सकता है। राज्य संगठन में संभावित फेरबदल के बीच भी गुटबाजी हावी है और अभी की चर्चा के मुताबिक रघुवर दास गुट ने जिस महिला का नाम आगे बढ़ाया है, उसे संगठन स्वीकार कर पायेगा, इसे लेकर पार्टी के अंदर ही सवाल उठ रहे हैं।

अजीब स्थिति है कि केंद्रीय मंत्री और झारखंड भाजपा के बड़े खिलाड़ी अर्जुन मुंडा पूरी तरह प्रदेश की राजनीति से खुद को अलग रखकर चल रहे हैं। वह अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों से तो मिलते हैं। झारखंड के अन्य इलाकों का भी नियमित दौरा करते हैं लेकिन झारखंड भाजपा पर कोई भी बात नहीं कहते। पार्टी के लोग कहते हैं कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से उनके रिश्ते अब भी बेहतर नहीं हुए हैं।

इन तमाम बातों के बीच कार्यकर्ताओं की निरंतर बैठकों के बीच कोडरमा से नई सोच सामने आने के संकेत मिले हैं। पता चला है कि वहां के लोग अब नीरा यादव और अन्नपूर्णा देवी दोनों के बदले किसी पुरुष को प्रत्याशी बनाये जाने की सोच पर काम कर रहे हैं। नीरा यादव विधायक हैं जबकि अन्नपूर्णा देवी राजद छोड़कर आने के बाद सांसद और बाद में केंद्र में मंत्री बनी हैं।

अंदरखाने से निकल कर आयी सूचनाओं के मुताबिक स्थानीय लोगों का मानना है कि काफी समय से कोडरमा की दोनों सीटों पर महिलाएं काबिज हैं। इसलिए अब इस रिवाज को बदला जाना चाहिए। ऐसी राय रखने वालों में से अधिकांश को इन दोनों महिला नेत्रियों से कोई परेशानी तो नहीं है, फिर भी यह सोच अंदर ही अंदर जोर पकड़ रही है।

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