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फिर  जनता के फैसले का मतलब क्या है

दिल्ली के लिए जारी केंद्र सरकार के नये अध्यादेश की मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जो व्याख्या की है, वह साफ तौर पर एक चुनी हुई सरकार को पंगु बना देने वाला है। अजीब स्थिति यह है कि नौकरशाहों को इसमें चुनी हुई सरकार के फैसले को सही और गलत ठहराने का अधिकार दे दिया गया है।

इससे एक बात को और साफ होती है कि श्री केजरीवाल ने पहले जो संदेह व्यक्त किया था, वह सही प्रतीत होता है। केजरीवाल ने कहा था कि जब सत्ता के शीर्ष पर कोई अनपढ़ बैठता है तो उनके करीबी उसे कभी भी बरगला लेते हैं और किसी भी कागज पर हस्ताक्षर ले लेते हैं। पढ़ा लिखा व्यक्ति दस्तावेज पर लिखी बातों को देखता और समझता है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि केंद्र ने नए अध्यादेश के जरिए ना सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के ट्रांसफर-पोस्टिंग वाले फैसले को पलट दिया है बल्कि सरकार को लगभग खत्म कर दिया है। उन्होंने कहा कि अध्यादेश को जितना पढ़ रहे हैं उतनी नई बातें सामने आ रही हैं। उन्होंने कहा कि सेक्रेट्री को मंत्री का बॉस बना दिया गया है और चीफ सेक्रेट्री को कैबिनेट के फैसले को कानूनी या गैर-कानूनी बताने का अधिकार दे दिया गया है।

दिल्ली में सीपीआई महासचिव डी.राजा से मुलाकात के बाद केजरीवाल ने राज्यसभा में बिल के खिलाफ समर्थन के वादे के लिए उनका आभार जताया। केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में एक प्रयोग हुआ है और यदि इसे नहीं रोका गया तो सभी गैर भाजपाई सरकारों के लिए ऐसा अध्यादेश आएगा। उन्होंने कहा कि इसलिए 140 करोड़ लोगों को एक साथ इसका विरोध करना चाहिए।

केजरीवाल ने कहा कि इसके कुछ प्रावधान जनता के सामने नहीं आए हैं। उन्होंने कहा, केंद्र सरकार ने सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के आदेश को खारिज नहीं किया, इसमें 3 ऐसे प्रावधान डाले हैं जिससे दिल्ली सरकार लगभग खत्म हो जाती है। इसमें इन्होंने लिखा है कि यदि कोई मंत्री अपने सेक्रेट्री को आदेश देगा तो वह डिसाइड करेगा कि मंत्री का आदेश लीगली ठीक है या गलत।

यदि सेक्रेट्री को लगता है कि मंत्री का आदेश लीगली ठीक नहीं है तो वह मंत्री का आदेश मानने से इनकार कर सकता है। अरविंद केजरीवाल ने दो उदाहरण देते हुए कहा, विजिलेंस सेक्रेट्री को सौरभ भारद्वाज ने वर्क ऑर्डर दिया। विजिलेंस सेक्रेट्री ने खुद को दिल्ली सरकार में इंडिपेंडेंट अथॉरिटी घोषित कर दिया है।

वह कह रहा है कि मैं इस अध्यादेश के बाद मैं ना तो चुनी हुई सरकार के प्रति जवाबदेह हीं और एलजी के प्रति जवाबदेह में अथॉरिटी के जरिए जवाबदेह हूं। एक और केस के अंदर एक जगह झुग्गियां टूटीं। जो हमारा दिल्ली सरकार का वकील था उसने बहुत कमजोर दलीलें दीं। लगा कि वकील दूसरी पार्टी से मिला हुआ है।

मंत्री ने आदेश दिया कि अगली सुनवाई में हमें कोई अच्छा सिनियर वकील हायर करना चाहिए। सेक्रेट्री फाइल पर लिखती है कि वकील हायर करने का अधिकार सेक्रेट्री का है। मंत्री मुझे आदेश नहीं दे सकता है, आपका आदेश गैरकानूनी है। ऐसे कैसे चलेगा। अब तो हर सेक्रेट्री यह तय कर रहा है कि कौन सा आदेश कानूनी है, हर सेक्रेट्री सुप्रीम कोर्ट का जज बन गया है।’

दिल्ली के मुख्यमंत्री ने एक अन्य प्रावधान का जिक्र करते हुए कहा कि चीफ सेक्रेट्री को पावर दे दी गई है कि वह डिसाइड करेगा कि कैबिनेट का कौन सा फैसला कानूनी है और कौन सा गैरकानूनी। कैबिनेट सुप्रीम होती है, जैसे देश की कैबिनेट सुप्रीम है, राज्य की भी सुप्रीम होती है। अब मुख्य सचिव फैसला करेगा कि कैबिनेट का फैसला कानूनी है या गैरकानूनी है।

यदि उसे लगता है कि गैरकानूनी है तो वह एलजी को रेफर करेगा और एलजी को पावर दी गई है कि वह कैबिनेट के फैसले को पलट सकता है। आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ। मंत्री के ऊपर सेक्रेट्री को बिठा दिया और कैबिनेट के ऊपर चीफ सेक्रेट्री को बिठा दिया। केजरीवाल ने कहा कि अब कमीशन और बोर्ड का गठन भी केंद्र सरकार करेगी।

फिर जनता द्वारा चुनी हुई दिल्ली सरकार क्या करेगी। दिल्ली जल बोर्ड का गठन अब केंद्र सरकार करेगी तो वह चलाएंगे वाटर सेक्टर, दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन का गठन केंद्र सरकार करेगी तो वही चलाएंगे ट्रांसपोर्ट सेक्टर। उनके मुताबिक इस अध्यादेश को जितना पढ़ रहे हैं, उतना लग रहा है कि यह बहुत गलत नीयत से बनाया गया है।

भाजपा को दिल्ली की जनता ने बार बार बुरी तरह हराया है, एक बार तीन सीट दी, एक बार 8 सीट दी, फिर एमसीडी में हराया। वे दिल्ली को जीत नहीं सकते हैं इसलिए बैकडोर से चलाना चाहते हैं। नये अध्यादेश के पक्ष में भले ही दलीलों का पहाड़ खड़ा कर दिया जाए पर यह प्रश्न तब भी खड़ा रहेगा कि दिल्ली की जनता ने जिसे चुनकर शासन करने भेजा है, उसे अधिकार देने से किसे भय लग रहा है।

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