जब अचानक नोटबंदी का एलान किया गया था तो खुद नरेंद्र मोदी ने यह दावा किया था कि इससे देश का सारा काला धन खत्म हो जाएगा। बाद में पता चला कि श्री मोदी का यह बयान हवा हवाई था। दूसरी तरफ काला धन पकड़ में नहीं आने के बाद भी स्विस बैंकों में रखा भारतीय पैसा जरूर बढ़ गया। अब दूसरी बार दो हजार का नोट वापस लेकर काला धन पकड़ने की दावेदारी है।
इसलिए पिछली बार की तरह इस बार भी बयानों को एक तरफ से दूसरी तरफ घूमाने से काम नहीं चलने वाला है। सरकार को हर कदम पर जनता को यह बताना पड़ेगा कि क्या इस फैसले से भी काला धन पकड़ा जा रहा है अथवा नहीं। यह प्रश्न इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि इस प्रक्रिया के बीच ही भारतीय रिजर्व बैंक ने नकली पांच सौ रुपये के नोटों की जानकारी सार्वजनिक की है।
यह बिल्कुल सही है कि अर्थव्यवस्था में काले धन के प्रवाह पर नजर रखना और इस पर अंकुश लगाने के लिए उपाय करना सरकार के लिए स्वाभाविक सी बात है। तुलनात्मक रूप से अधिक परिपक्व अर्थव्यवस्थाओं में सर्वाधिक उत्पादक कार्यों को कर दायरे में लाने का पूरा ध्यान रखा जाता है ताकि कर वंचना या कर भुगतान में आनाकानी की गुंजाइश नहीं रह जाए।
मगर यह पारदर्शी एवं प्रभावी तरीके से किया जाता है ताकि आम लोगों एवं करदाताओं को किसी तरह की असुविधा नहीं हो। वर्तमान भारतीय प्रशासन कई बार कह चुका है कि वह करदाताओं को परेशानी या अत्यधिक हस्तक्षेप से बचाना चाहता है। इस दिशा में सरकार ने मानव रहित कराधान (फेसलेस टैक्सेशन) सहित कई कदम भी उठाए हैं।
मगर हाल में दो ऐसे अवसर आए हैं जिनसे पता चलता है कि सरकार कितनी जल्दी सुधार की दिशा से भटक जाती है। हाल ही में 2,000 रुपये के नोट के संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक की अधिसूचना ऐसा पहला उदाहरण है। आरबीआई ने पिछले सप्ताह कहा था कि 2,000 रुपये के नोट वापस लिए जाएंगे, यद्यपि इनकी वैधता बनी रहेगी।
हालांकि, इस नवीनतम कदम का 2016 में की गई नोटबंदी की घोषणा से कुछ लेना देना नहीं है मगर इससे उस समय मची अफरा-तफरी की यादें एक बार फिर ताजा हो गई हैं। जब से 2,000 रुपये के नोट वापस लिए जाने की घोषणा हुई है तब से कई लोग यह समझ नहीं पा रहे है कि उनके पास ऐसे जो भी नोट हैं उन्हें कैसे बदलेंगे।
ऐसी भी खबरें आ रही हैं दुकान एवं प्रतिष्ठान इन्हें लेने से मना कर रहे हैं। लोगों के मन से डर दूर करने के लिए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास को पहल करनी पड़ी है। दूसरी तरफ अलग अलग बैंक इन नोटों को बदलने के लिए अपने नियम चला रहे हैं। केंद्रीय बैंक ने कहा है कि 2,000 रुपये जारी करने का उद्देश्य पूरा हो गया है और इसकी समय सीमा भी समाप्त हो गई है मगर यह पहल किसी विशेष अधिसूचना या 30 सितंबर की अंतिम तिथि के बगैर भी की जा सकती थी।
साथ ही इससे जुड़ा हुआ दूसरा सवाल यह है कि अगर दो हजार का नोट लाया गया था तो उसका उद्देश्य क्या है। यह जनता को इसलिए बताना पड़ेगा क्योंकि इससे परेशानी तो जनता को हुई थी। लिहाजा, इस बात को लेकर शक बहुत कम रह गया है कि नकदी और उच्च मूल्य वाले नकदी लेनदेन को कम से कम करना इस पहल का एक मकसद था।
लेकिन सरकार 2016 के समय की नोटबंदी की तरह आम भारतीयों पर होने वाले प्रभाव को ध्यान में रखने में विफल रही। कुछ दिनों पहले सरकार ने उदार धन प्रेषण योजना (एलआरएस) में कुछ बदलाव किए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने 2,000 रुपये के नोट वापस लेने की तरह ही उसमें भी समझ-बूझ के साथ काम नहीं लिया है।
एलआरएस के तहत भारतीय विदेश में निवेश या अन्य विशेष प्रयोजनों के लिए एक साल में अधिकतम 2,50,000 डॉलर तक भेज सकते हैं। अब सरकार ने ऐसे लेनदेन के लिए स्रोत पर काटे गए कर का स्तर बढ़ाने का निर्णय लिया है। कारोबारी व्यय से जुड़े पक्षों को स्रोत पर काटे गए कर के दायरे में लाने से भी अनावश्यक परेशानी होगी।
खासकर, इससे मालिक या अपेक्षाकृत छोटे उद्यमों के कर्मचारियों के लिए झंझट बढ़ जाएगी। स्पष्ट है कि सरकार के इस कदम का उद्देश्य बेहतर प्रणाली की स्थापना किए बिना ही कर संग्रह और निगरानी बढ़ाना है। अगर सरकार वास्तविक समय में लेनदेन का ब्योरा रखने के लिए ठोस प्रयास करेगी तो इससे कर वंचना और रकम की हेराफेरी रुक जाएगी।
सरकार को बार-बार अपने कदमों पर सफाई देने की शर्मिंदगी से बचने के लिए नागरिकों पर उसके निर्णयों के होने वाले प्रभावों की विवेचना पहले ही कर लेनी चाहिए। एक उपयुक्त कर प्रशासन में करदाताओं की चिंताओं के प्रति अधिक गंभीरता एवं उनकी परेशानियों को समझना पड़ता है।