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भोपालः डीएफओ मुरैना की आपत्ति से 207 हैक्टेयर क्षेत्र डिनोटिफाई करने के बाद भी चम्बल अभयारण्य में रेत का उत्खनन नहीं हो सकेगा। दरअसल गत 31 जनवरी 2023 को वन विभाग ने चम्बल अभयारण्य क्षेत्र का 207.049 हैक्टेयर क्षेत्र स्थानीय रहवासियों की रेत की जरुरतों हेतु डिनोटिफाई किया था।
लेकिन डिनोटिफिकेशन में उसने इस बात का ध्यान ही नहीं रखा कि डिनोटिफाई किया गया क्षेत्र अभयारण्य की सीमा से दो किलोमीटर वाले इको सेंसेटिव जोन की परिधि में आ रहा है और ऐसे जोन में खनन कार्य प्रतिबंधित रहता है। यह ईको सेंसेटिव जोन केंद्र सरकार ने 20 फरवरी को 2020 को घोषित किया था जो 2 किमी तक विस्तृत है।
मुरैना डीएफओ जोकि चंबल अभयारण्य के भी प्रभारी हैं, ने इस त्रुटि को पकड़ा तथा वन विभाग को सूचित किया। वहां अब राज्य खनिज निगम द्वारा की जा रही रेत खनन की कार्यवाही रोक दी गई है। अब वन विभाग लोकहित में उक्त ईको सेंसेटिव जोन में रेत खनन करने की अनुमति सुप्रीम कोर्ट से मांगने जा रहा है।
इसके लिये इको सेंसेटिव जोन की सीमा को कम किया जायेगा। इसके समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के 3 जून 2022 को जारी निर्देश का हवाला दिया जा रहा है जिसमें कहा गया है कि लोकहित में इको सेंसेटिव जोन की न्यूनतम उूरी को कम किया जा सकता है। अब सुप्रीम कोर्ट से इको सेंसेटिव जोन की सीमा करने के लिये अनुमति लेने में करीब तीन माह का समय लग जायेगा तथा इसके बाद ही वहां रेत खनन हो सकेगा।