क्या से क्या हो गया। ताल ठोंक रहे हैं कि सब कुछ अपनी मुट्ठी में है पर इस सुप्रीम कोर्ट ने परेशान कर रख दिया है। हर मुद्दे पर टांग अड़ाकर आखिर माई लॉर्ड लोग साबित क्या करना चाहते हैं।
जब विधि मंत्री कहते हैं कि जजों की बहाली एक स्वतंत्र कमेटी करे तो उसमें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को आपत्ति हो जाती है। दूसरी तरफ वही कोर्ट यह कहती है कि चुनाव आयोग की आयुक्तों की बहाली स्वतंत्र कमेटी करे। यह दो तरफा आचरण क्यों। विरोधी तो मानो टकटकी लगाये बैठे हैं।
एक फैसला आया नहीं कि ईडी के निदेशक की बहाली भी स्वतंत्र कमेटी से करने की मांग कर दी। एक बार तो झटका सीबीआई के मामले में लग चुका है। आलोक वर्मा पता नहीं किस मिट्टी का बना हुआ अफसर था कि झूकने को तैयार नहीं हुआ।
अपने राकेश अस्थाना पर भी घूस लेने का आरोप लगाकर केस कर दिया। बड़ी मुश्किल से पीछा छूटा लेकिन जो मकसद था वह कामयाब नहीं हुआ क्योंकि माई लॉर्डों से सबसे बड़े माई लॉर्ड ने उन्हें सीबीआई के निदेशक बनाने पर आपत्ति लगा दी। खैर जो भी हुआ वह लगा था कि अंतिम है। उसके बाद तो लगातार हमला पर हमला किये जा रहे हैं भाई लोग।
जिसे हजार करोड़ खर्च कर पप्पू साबित किया था, वह पैदल क्या चल पड़ा, सारी कोशिशें बेकार हो गयी। सिर्फ पैदल चलता तो अलग बात थी। पैदल चलते चलते ऐसी बातें कहता गया कि हिमाचल हाथ से निकल गया। खैर गुजरात बच गया और रिकार्ड जीत मिली, यह क्या कम था।
लेकिन विरोधियों को देखिये पूरे उत्तर पूर्व में चारों खाने चित हो गये। इसके बाद भी ताल ठोंक रहे हैं। कह रहे हैं कि दक्षिण भारत और महाराष्ट्र से बदले माहौल का पता चल रहा है। अरे यार उसी इलाके के झारखंड की सीट तो एनडीए के खाते में गयी है, उस पर तो कुछ नहीं कहते हो।
कुछ भी कहिए ममता दीदी इनदिनों मोदी जी पर ममता लूटा रही है, यह साफ होता जा रहा है। उन्होंने एलान कर दिया है कि वह किसी गठबंधन में शामिल नहीं होंगी और अकेले चुनाव लड़ेंगे। इसका मतलब कमसे कम एक राज्य में भाजपा विरोधी वोटों का विभाजन जारी रहेगा।
लेकिन बिहार के सीएमं नीतीश कुमार वाकई सरदर्द बन रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस को पहल करने की बात कही है और बिहार की लोकसभा सीटें भी कम नहीं होती हैं। जिस उत्तरप्रदेश से सबसे ज्यादा समर्थन मिला था, वहां का माहौल लोकसभा चुनाव तक क्या रहेगा, कहना मुश्किल है। महाराष्ट्र में सुप्रीम कोर्ट का तेवर बिल्कुल अपोजिशन की तरह लगने लगा है। मानों उद्धव ठाकरे नहीं डीवाई चंद्रचूड़ को सीएम की कुर्सी से हटा दिया गया है।
फिर भी कर्नाटक के विधायक के पुत्र को घूस लेते गिरफ्तार किये जाने की बात कुछ गले से नहीं उतरी। पता नहीं अंदरखाने में क्या खेल चल रहा है। वहां येदियुरप्पा अंदर ही अंदर क्या गोटी सेट कर रहे हैं, यह समझना कठिन है।
इसी बात पर अपने जमाने की सुपरहिट फिल्म गाइड का यह गीत याद आने लगा है। इस गीत को लिखा था शैलेंद्र ने और संगीत में ढाला था सचिव देव वर्मन ने। इसे मोहम्मद रफी ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं
क्या से क्या हो गया बेवफ़ा तेरे प्यार में
चाहा क्या क्या मिला बेवफ़ा तेरे प्यार में
चलो सुहाना भरम तो टूटा
जाना के हुस्न क्या है हो ओ ओ
चलो सुहाना भरम तो टूटा
जाना के हुस्न क्या है
कहती है जिसको प्यार दुनिया
क्या चीज़ क्या बला है
दिल ने क्या ना सहा, बेवफ़ा तेरे प्यार में
चाहा क्या क्या मिला बेवफ़ा तेरे प्यार में
तेरे मेरे दिल के बीच अब तो
सदियों के फ़ासले हैं , हो ओ ओ
तेरे मेरे दिल के बीच अब तो
सदियों के फ़ासले हैं
यक़ीन होगा किसे कि
हम तुम इक राह संग चले हैं
होना है और क्या, बेवफ़ा तेरे प्यार में
चाहा क्या क्या मिला बेवफ़ा तेरे प्यार में
अब बदले बदले से माहौल में पंजाब और दिल्ली की परेशानी अलग है। इन दो राज्यों को शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे पर रोकना जनता को परेशान करने वाली बात है।
ऊपर से दिल्ली नगर निगम में भी अब आम आदमी पार्टी ने जीत हासिल कर ली है। ऐसे में मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार करने का फायदा होगा या नुकसान, यह तो समय की परख वाली बात होगी।
लेकिन भाजपा के लोग अब दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की चुनावी एजेंडे पर बात करना नहीं चाहते हैं। उन्हें लगता है कि गनीमत है कि पुलिस अभी केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास है। वरना पता नहीं क्या परेशानी खड़ी हो जाती।