हिंडनबर्ग रिपोर्ट सामने आने के बाद से अदाणी समूह की कंपनियों के शेयरों के दामों में जो तीव्र गिरावट आई है उस पर भारतीय और अंतरराष्ट्रीय टीकाकारों की नजर निरंतर बनी हुई है।
इस बारे में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है कि अदाणी समूह की कंपनियों के मुद्रा बॉन्ड या अन्य प्रतिभूतियों अथवा ओवर द काउंटर डेरिवेटिव शॉर्ट हुए या नहीं। यहां शॉर्ट होने से तात्पर्य है कीमतों में कमी आने से चुनिंदा लोगों का लाभान्वित होना।
इस बात पर नजर रखना सेबी की जिम्मेदारी थी। सरकार की सफाई के बाद भी बाजार के घटनाक्रम आम निवेशकों को भरोसा नहीं दे पा रहे हैं। दूसरी तरफ यह बाजार की सच्चाई है कि इस विवाद के प्रारंभ होने के बाद भारतीय जीवन बीमा निगम का शेयर सोमवार को रिकॉर्ड निचले स्तर को छू गया।
उसका शेयर 2.9 फीसदी टूटकर 567.8 रुपये पर बंद हुआ। अब यह साफ दिख रहा है कि इस एक घटना की वजह से कंपनी का बाजार मूल्यांकन आईपीओ के स्तर से 40 फीसदी यानी 2.4 लाख करोड़ रुपये घटा है।
पिछले महीने एलआईसी के शेयर में 15 फीसदी की गिरावट आई, जो मेगा-कैप में सर्वाधिक है। एलआईसी का कहना है कि इक्विटी पोर्टफोलियो में हालांकि अदाणी समूह के शेयरों की हिस्सेदारी एक फीसदी से भी कम है, लेकिन बाजार ने इसके शेयर को काफी चोट पहुंचाई है।
इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि यह सरकार का नहीं देश की आम जनता का पैसा है। विश्लेषकों ने कहा है कि अदाणी समूह के शेयरों में एलआईसी के निवेश के चलते पैदा हुई नकारात्मक अवधारणा से निवेशक एलआईसी के कारोबार पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंतित हैं।
उनका यह भी कहना है कि सरकारी विनिवेश के मामले में एलआईसी का लगातार दुरुपयोग हो रहा है। अभी सरकार की एलआईसी में हिस्सेदारी 96.5 फीसदी है और खुदरा भागीदारी करीब 2 फीसदी। इस बीच, विदेशी फंडों के पास इसकी महज 0.17 फीसदी हिस्सेदारी है।
ऐसे में इसके शेयरों में आ रही कमी सरकार व नागरिकों को किसी और के मुकाबले ज्यादा चोट पहुंचा रही है। असली मुद्दा यह है कि क्या नियामकीय स्तर पर भी कमियां अथवा स्पष्ट चूक का मामला था क्योंकि देश के पूंजी बाजार और बैंकिंग क्षेत्र के माध्यम से हमारी अर्थव्यवस्था अदाणी समूह की कंपनियों से काफी हद तक जुड़ी हुई है।
इसी प्रकार यह आलेख बताता है भारतीय नियामक ने अदाणी एंटरप्राइजेज के करीब 20,000 करोड़ रुपये मूल्य के एफपीओ खरीदने वाले सबस्क्राइबर को लेकर पूरे मामले में किस तरह अनदेखी की। अदाणी समूह की कंपनियों के नाम से पता चलता है देश के बुनियादी ढांचा क्षेत्रों के लिए उनकी क्या अहमियत है।
यह बात भी ध्यान देने लायक है कि समूह की कंपनियां सूचना प्रौद्योगिकी या कृत्रिम मेधा आधारित कारोबार में नहीं हैं जबकि इस क्षेत्र में तमाम कंपनियों ने भविष्य के राजस्व को देखकर जबरदस्त मूल्यांकन हासिल किया है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि अदाणी परिवार के सदस्य समूह की कंपनियों के शेयरों के गोपनीय लेनदेन में शामिल रहे ताकि कीमतों को कृत्रिम रूप से ऊंचा रखा जा सके।
इन तमाम गतिविधियों पर नजर रखने के लिए बनायी गयी संस्था सेबी के नियमन के अनुसार किसी सूचीबद्ध कंपनी में न्यूनतम सार्वजनिक अंशधारिता 25 फीसदी है। यहां तक हिंडनबर्ग रिपोर्ट में इन आरोपों के बिना भी बाजार विश्लेषक इस बात से अवगत थे कि अदाणी की कंपनियों के शेयर असाधारण रूप से ऊंचे स्तर पर हैं।
जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी ने अदाणी की कंपनियों के शेयरों में 30,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है जबकि भारतीय स्टेट बैंक ने समूह की कंपनियों को 21,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज दिया है। फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार अमेरिका और यूरोपीय बैंकों ने 2015 से 2021 के बीच अदाणी समूह की कंपनियों के करीब 83,000 करोड़ रुपये के कर्ज को निपटाया।
यह आकार 2023-24 के बजट में ग्रामीण रोजगार गारंटी की मनरेगा योजना के लिए किए गए 60,000 करोड़ रुपये के आवंटन से भी अधिक है। इसलिए असली में देश की जनता का पैसा किस रास्ते से किसी एक को लाभ पहुंचाने के लिए दिया गया और उससे देश की आम जनता को अब क्या नुकसान होने जा रहा है, इस प्रश्न का उत्तर मिलना चाहिए
क्योंकि हर बात को टाल देने से भाजपा और केंद्र सरकार के लिए भी विश्वसनीयता का संकट उत्पन्न हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में भी केंद्र सरकार ने जिस तरीके से सीलबंद लिफाफे में कमेटी के सदस्यों का नाम देने की बात कही है, वह जनता के हित में तो नहीं है।
सीधी सी बात है कि देश की जनता का पैसा है तो जनता का यह पैसा किसके पास दबा पड़ा है, यह जानने का अधिकार को देश की जनता को है। अगर एलआईसी और एसबीआई की वजह से जनता को नुकसान होता है तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी।