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अंतिम बार 140 वर्ष पूर्व देखा गया था
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फार्गुसन द्वीप के जंगल में नजर आयी
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कैमरे के सामने से चलती हुई आगे गयी
राष्ट्रीय खबर
रांचीः अमेरिकी शोधकर्ताओं की खुशी का इजहार पूरे वैज्ञानिक समुदाय ने भी किया है। दरअसल इस शोध दल ने पापुआ न्यूगिनी में एक ऐसी पक्षी को देखा है, जिसे करीब 140 वर्ष पहले विलुप्त समझा गया था। अमेरिकन बर्ड कॉंसरवेंसी के शोध दल द्वारा देखे गये इस पक्षी को इससे पहले अंतिम बार वर्ष 1882 में देखा गया था।
बाद में नजर नहीं आने की वजह से उसे विलुप्त पक्षी की श्रेणी में डाल दिया गया था। वैसे इसके अलावा भी हाल के वर्षों में कई ऐसे पशु पक्षी और समुद्री जीव वैज्ञानिक उपकरणों की मदद से देखे गये हैं, जो पूर्व में विलुप्त हो गये थे। इस पक्षी की खोज को पर्यावरण के लिहाज से एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है। इस शोध दल ने इस पक्षी का वीडियो भी रिकार्ड किया है। इस वीडियो को देखने से पता चल जाता है कि यह पक्षी इस वीरान जंगल में मौजूद है।
जिस पक्षी को खोजा गया है वह जमीन पर चलने वाले बड़े आकार के कबूतर के जैसा है। इसे वहां के फर्गुसन द्वीप के जंगलों में देखा गया है। यह पक्षी नजर आने के बाद उसकी सुरक्षा और उसी प्रजाति के अन्य पक्षियों की तलाश का काम तेज किया गया है। इसमें भी पर्यावरण वैज्ञानिक इस बात पर ध्यान दे रहे हैं कि यह सारा काम चुपचाप हो ताकि उस पक्षी की जीवनचर्या में कोई खलल नहीं पड़े।
वैसे दस्तावेज बताते हैं कि पिछले 140 वर्षों में इसे पहले नहीं देखे जाने की वजह से ही विलुप्त माना गया था। शोधदल ने माना है कि यह दरअसल कोई खोज नहीं है बल्कि लॉटरी लगने जैसी घटना है। इनलोगों ने वहां के जंगलों में वन्य जीवन की गतिविधियों को रिकार्ड करने के लिए ट्रैप कैमरा लगा रखा था। यह पक्षी भी जमीन पर चलते हुए इसी कैमरे में कैद हुई है।
यह बाहर से मोर के जैसा नजर आया है। गहरे भूरे रंग की यह पक्षी उड़ नहीं सकती और पैदल चलती है। उसकी पूछ थोड़ी लंबी है पर मोर जितनी लंबी नहीं है। उसके चोंच काफी नुकीले और लंबे हैं, जिसकी मदद से वह भोजन करती है। उसके शरीर के बाहर सर और पेट के हिस्से काले रंग के हैं। इसी वजह से उसकी पहचान करने में शोध दल को कोई खास कठिनाई नहीं हुई है।
माना जा रह है कि यह प्रजाति अब सिर्फ इसी जंगल में शायद मौजूद है क्योंकि दुनिया के किसी दूसरे हिस्से से इसे देखे जाने की कोई और सूचना रिकार्ड में दर्ज नहीं है। इस संगठन के निदेशक जॉन सी मिटरमेयर ने कहा कि इसे खोजा जाना वाकई बहुत बड़ी बात है। यह जीवन भर की एक खोज जैसी उपलब्धि है। इस शोध दल के सह नेता तथा कॉर्नेल विश्वविद्यालय के शोधकर्ता जॉर्डन बोइस्मा ने कहा कि कैमरे में इस पक्षी को देखने के बाद पहले तो उससे पहचानने में वक्त लगा था।
यह पक्षी कैमरे के ठीक सामने से चलती हुई आगे निकल गयी। उसकी शारीरिक संरचना के रिकार्ड से मिलान किये जाने पर इस बात की पुष्टि हुई कि यह वही चिड़िया हैं, जिसे पहले विलुप्त मान लिया गया था। अब इस जंगल में इस प्रजाति की और कितने पक्षी है, उसका पता लगाने का काम इस तरीके से किया जा रहा है कि पक्षियों को इस शोध से कोई परेशानी नहीं हो। पर्यावरण वैज्ञानिक मानते हैं कि इस एकमात्र द्वीप पर यह दुर्लभ पक्षी नजर आने के बाद उसके संरक्षण के लिए भी बेहतर कदम उठाने की जरूरत महसूस की जा रही है।