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बड़ा सवाल दिल्ली से किसने दिया था निर्देश
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चुनावी मौसम में विरोधी उठा रहे हैं मुद्दे को
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कंपनी ने सिर्फ रंग रोगन कर काम पूरा किया
राष्ट्रीय खबर
[ads1]अहमदाबादः मोरबी ब्रिज के हादसे ने गुजरात के विकास मॉडल की पोल खोल दी है। कोई खुलकर नहीं बोल रहा है फिर भी चौक चौराहों पर इस बात की चर्चा होने लगी है कि घड़ी बनाने वाली कंपनी को यह काम दिल्ली से आये निर्देश की वजह से ही दिया गया था। वहां के जिलाधिकारी ने बिना अनुभव वाली कंपनी को यह काम देने से जब इंकार किया तो यह निर्देश आया था।
चुनाव के ठीक पहले इतना बड़ा हादसा होने की वजह से जनता का मिजाज बिगड़ा हुआ है। इसलिए हो रही कार्रवाई का ठिकरा अभी वहां के नगर निगम के मुख्य कार्यपालक अधिकारी के माथे फोड़ा गया है। विभागीय कार्रवाई के तहत इतने दिनों बाद उसे निलंबित कर दिया गया है। दूसरी तरफ पुलिस जांच में इस बात का खुलासा हो गया है कि जिस काम का बजट दो करोड़ रुपये थे, उस पर मात्र 12 लाख रुपये ही खर्च किये गये थे। इसी वजह से इस पैदल पुल के पुराने तारों को भी नहीं बदला गया था। इस कारण अधिक भीड़ होने की वजह से वे केबल टूट गये थे।
[ads2]मोरबी की इस घटना के बाद विरोधियों ने इसे मुद्दा बनाते हुए गुजरात मॉडल के विकास की बखिया उधेड़ दी थी। चूंकि जनता इस घटना से बहुत नाराज है इसलिए सरकारी स्तर पर इस मामले की जांच में कोताही नहीं बरती जा रही है। अब पुलिस की जांच में इस बात का खुलासा होना भाजपा के लिए नई परेशानी खड़ी करने वाला है।
आखिर दो करोड़ के बजट में से सिर्फ बारह लाख ही खर्च क्यों हुए, यह भी एक चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है। ब्रिटिश काल की इस ब्रिज के उम्र को ध्यान में रखते हुए इसकी मरम्मत पर अधिक ध्यान क्यों नहीं दिया गया, यह भी सवाल बन चुका है। लेकिन राजनीतिक माहौल में इस बात को लेकर बार बार आरोप लग रहे हैं कि जिलाधिकारी की आपत्ति के बाद भी घड़ी बनाने वाली कंपनी ओरबो को यह काम किसके निर्देश पर दिया गया था, उसका खुलासा होना चाहिए।
ओरेबा कंपनी को इस काम का अनुभव नहीं था। इसलिए उसने यह काम देवप्रकाश साल्युशंस नामक एक कंपनी को सौंप दिया था। जांच में पता चला है कि इस कंपनी को भी पुल की मरम्मत का अनुभव नहीं था। इसलिए इनलोगों की तरफ से सिर्फ पुल का रंग रोगन किया गया था। पुल की मजबूती की जांच कर उसमें सुधार करने का कोई काम किये बिना ही इसे आम जनता के लिए खोल दिया गया था।[ads3]