तिरुअनंतपुरम में भाजपा का मेयर बना
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केरल के इतिहास में पहली बार हुआ
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कुल 51 वोट प्राप्त कर जीत दर्ज की
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अब यहां तीन धुरी की राजनीति होगी
राष्ट्रीय खबर
तिरुवनंतपुरम: केरल के राजनीतिक परिदृश्य में शुक्रवार को एक ऐसा ऐतिहासिक अध्याय जुड़ा, जिसने दशकों पुराने समीकरणों को धराशायी कर दिया। भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता वी.वी. राजेश को आधिकारिक तौर पर तिरुवनंतपुरम नगर निगम का मेयर निर्वाचित किया गया है। यह केरल के लोकतांत्रिक इतिहास में पहला अवसर है जब भाजपा ने राज्य के किसी नगर निगम में मेयर का प्रतिष्ठित पद हासिल करने में सफलता पाई है।
101 सदस्यीय नगर निगम परिषद में हुए कड़े मुकाबले के दौरान राजेश ने कुल 51 मत प्राप्त कर अपनी जीत सुनिश्चित की। उन्हें एक निर्दलीय पार्षद का महत्वपूर्ण समर्थन मिला, जिससे वे बहुमत का जादुई आंकड़ा छूने में सफल रहे। इस जीत का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसके साथ ही भाजपा ने राज्य की राजधानी में वर्ष 1980 से चले आ रहे वाम लोकतांत्रिक मोर्चे (एलडीएफ) के अभेद्य दुर्ग को ढहा दिया है। लगभग 40 वर्षों के निरंतर वामपंथी नियंत्रण को समाप्त करना भाजपा के लिए दक्षिण भारत में एक बड़े वैचारिक और रणनीतिक बदलाव का संकेत है।
इस गौरवशाली क्षण का गवाह बनने के लिए केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी, राजीव चंद्रशेखर और पूर्व केंद्रीय मंत्री वी. मुरलीधरन सहित भाजपा के कई दिग्गज नेता निगम कार्यालय में उपस्थित थे। पेशे से वकील वी.वी. राजेश वर्तमान में भाजपा के प्रदेश सचिव हैं और इससे पहले वे जिला अध्यक्ष के रूप में भी अपनी सांगठनिक क्षमता का लोहा मनवा चुके हैं। शपथ ग्रहण के पश्चात मीडिया को संबोधित करते हुए मेयर राजेश ने अपनी दृष्टि स्पष्ट की। उन्होंने संकल्प लिया कि उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता तिरुवनंतपुरम को स्वच्छता, बुनियादी ढांचे और नागरिक सुविधाओं के मामले में देश के शीर्ष तीन शहरों में शुमार करने की होगी। उन्होंने सबका साथ-सबका विकास की तर्ज पर विपक्ष को भी विश्वास में लेकर चलने का भरोसा दिलाया।
भाजपा ने अपने विज़न 2030 घोषणापत्र के माध्यम से राजधानी के कायाकल्प का जो खाका खींचा है, उसमें एम्स, अत्याधुनिक मेट्रो रेल और आउटर रिंग रोड जैसे मेगा प्रोजेक्ट्स शामिल हैं। राजेश ने घोषणा की कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनवरी के अंत तक शहर का दौरा कर सकते हैं, जहाँ वे निगम के लिए एक विशेष विकास पैकेज की घोषणा करेंगे। यह विजय केवल एक निकाय चुनाव की जीत नहीं है, बल्कि केरल की उस पारंपरिक द्विध्रुवीय राजनीति (एलडीएफ बनाम यूडीएफ) के लिए एक बड़ी चुनौती है, जिसे भाजपा अब त्रिध्रुवीय मुकाबले में बदलती दिख रही है।