पुणे में तेंदुए के आतंक से बचने के लिए जुगाड़ साफ्टवेयर
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इलाके में जंगली जानवरों का आतंक छाया है
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सरकार की तरफ से खास नेक बेल्ट दिये गये
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इस इलाके में दो हजार से अधिक तेंदुए हैं
राष्ट्रीय खबर
मुंबईः महाराष्ट्र के पुणे जिले में तेंदुए के हमलों की बढ़ती घटनाओं ने स्थानीय निवासियों के बीच गहरी चिंता और भय का माहौल पैदा कर दिया है। पिछले केवल 20 दिनों की अवधि में, इन खूंखार वन्यजीवों के हमले में तीन लोगों की दुखद मौत हो चुकी है, जिसके चलते ग्रामीण अपने जीवन की रक्षा के लिए अब अनोखे और तात्कालिक उपायों का सहारा ले रहे हैं।
सुरक्षा के इसी प्रयास के तहत, पुणे के प्रभावित क्षेत्रों के लोगों ने एक विचित्र किंतु प्रभावी जुगाड़ अपनाया है: वे अपने गले में नुकीली कीलों से जड़ी पट्टियां पहनकर घूम रहे हैं। यह उपाय, जो प्रथम दृष्टया असाधारण लग सकता है, दरअसल एक आत्मरक्षा की रणनीति है।
स्थानीय लोगों का दृढ़ विश्वास है कि यदि कोई तेंदुआ उन पर हमला करता है और उनकी गर्दन को पकड़ने का प्रयास करता है, जो कि तेंदुए के शिकार करने का विशिष्ट तरीका है, तो इन नुकीली कीलों के कारण उसके मुंह में गंभीर चोट लगेगी।
उनका मानना है कि इससे तेंदुआ दर्द के कारण तुरंत हमला छोड़ देगा और दूर भाग जाएगा, जिससे पीड़ित की जान बच जाएगी। आम तौर पर भेड़ चराने वाले अपने साथ चलने वाले कंगाल प्रजाति के कुत्तों को ऐसी पट्टी पहनाते हैं ताकि उनपर भेड़िया जानलेवा हमला नहीं कर पाये।
पुणे जिले के कलेक्टर, जितेंद्र डूडी, ने इस खतरे की गंभीरता को रेखाखांकित किया है। उन्होंने बताया कि तेंदुए विशेष रूप से छोटे कद के लोगों और खेतों में काम करने वाले श्रमिकों को अपना निशाना बनाते हैं, क्योंकि वे अक्सर सीधे उनकी गर्दन पर हमला करते हैं। इस जानलेवा खतरे का सामना करने के लिए, खासकर पिंपरखेड़ की महिलाओं ने, अपनी सुरक्षा के लिए पहले ही इन नुकीली कीलों वाली नेक बेल्टों को पहनना शुरू कर दिया है।
इस बीच, क्षेत्रीय वन अधिकारी स्मिता राजहंस ने पुष्टि की है कि वन विभाग इस संकट को नियंत्रित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। विभाग ने ग्रामीणों की आत्मरक्षा को मजबूत करने के लिए एक सक्रिय कदम उठाते हुए, क्षेत्र में 3300 से अधिक विशेष नेक बेल्ट वितरित किए हैं।
तेंदुओं के आतंक का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पुणे जिले के जुन्नर वन प्रभाग में ही 2000 से अधिक तेंदुए मौजूद हैं। पिछले दो दशकों (20 वर्षों) के आंकड़े बताते हैं कि इन हिंसक हमलों में 56 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 25 हजार से अधिक पालतू और मवेशी जानवर मारे गए हैं।
हाल ही में, शिरूर तालुका के पिंपरखेड़ में तेंदुए के हमले में तीन लोगों की मौत होने के बाद, ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा था। आक्रोशित भीड़ ने विरोध स्वरूप वन विभाग के एक वाहन और कार्यालय में आग लगा दी थी, और पुणे-नासिक राजमार्ग को अवरुद्ध कर दिया था।