Breaking News in Hindi

बदले समीकरणों में विपक्ष को मुद्दों की तलाश

भाजपा विरोधी खेमा के राजनीतिक समीकरण बदल गये हैं। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि आम आदमी पार्टी अब राष्ट्रीय पार्टी है जबकि एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस और भाकपा के पास से यह सुविधा खत्म हो गयी है। चुनाव आयोग ने कल ही यह फैसला लिया है। जाहिर है कि इससे राष्ट्रीय राजनीति या यूं कहें कि आगामी लोकसभा की चुनावी राजनीति में बदलाव आने की संभावना है।

ऐसी स्थिति में विपक्ष को चुनावी माहौल को अपने पाले में करने के लिए नये मुद्दों की तलाश होगी। इससे पहले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार ने पिछले हफ्ते अदाणी समूह के बचाव में जो बयान दिए थे, उससे भाजपा का विरोध कर रहे विपक्ष में घबराहट बढ़ गई।

उनकी टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब सरकार और अदाणी के संबंधों की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति बनाए जाने की मांग जोर पकड़ रही है जिसे सरकार ने खारिज भी कर दिया और इसी कारण से संसद ठप पड़ गई। पवार ने कहा कि यह मांग गलत थी, खासतौर पर तब जब उच्चतम न्यायालय ने एक समिति गठित कर दी।

उन्होंने यह भी कहा कि किसी कारोबारी घराने की गतिविधियों के आधार पर विपक्ष को एकजुट करने और सरकार के खिलाफ खड़ा करने की कोशिशों से विपक्ष की एकता स्थायी रूप से नहीं बन पाएगी। उन्होंने कहा कि विपक्ष को एकजुट रखने की कोशिश विशेष योजना और निश्चित दिशा के साथ ही कामयाब हो पाएगी।

श्री पवार ने कहा है कि विपक्षी एकता बहुत महत्त्वपूर्ण है, लेकिन मुद्दों पर स्पष्टता होनी चाहिए। आज विपक्षी दलों की अलग-अलग विचारधाराएं हैं और उनके सोचने का तरीका भी अलग है। हमारे जैसे लोग विपक्षी एकता चाहते हैं, लेकिन हमारा जोर विकास पर है। हमारे साथ अन्य लोग भी हैं जो विपक्षी एकता चाहते हैं, लेकिन इस वामपंथी सोच का अलग असर हो सकता है। विपक्षी एकता केवल विशिष्ट योजनाओं और दिशा के साथ ही कारगर हो पाएगी। अगर ऐसा नहीं होता है तब कोई भी विपक्षी एकता देश के लिए फायदेमंद नहीं होगी।

कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने पवार की टिप्पणी के कुछ घंटे बाद एक बयान में कहा, राकांपा का अपना विचार हो सकता है लेकिन समान विचारधारा वाले 19 दल इस बात से सहमत हैं कि प्रधानमंत्री से जुड़े अदाणी समूह का मुद्दा वास्तविक तौर पर बेहद गंभीर है। उन्होंने कहा, राकांपा सहित पूरा विपक्ष, संविधान और हमारे लोकतंत्र को भाजपा के हमलों से बचाने और भाजपा के विभाजनकारी एवं विध्वंसक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक एजेंडे को हराने के लिए एक साथ होगा।

एक मायने में कांग्रेस इस विचार को देखते हुए अपनी दिशा पर विचार कर सकती है कि सांठगांठ के आरोपों के आधार पर सरकार पर हमला न तो स्थायी हो सकता है और न ही इतना प्रभावी होगा कि बाकी विपक्ष को एक मंच पर लाया जा सके। इसके लिए एक व्यापक योजना के आधार पर एकता बनाने की जरूरत है।

2024 के आम चुनावों से पहले व्यापक एकता के लिए एक मंच पर आने की एक और झलक तब मिली जब सभी विपक्षी दल, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के खिलाफ आवाज उठाते हुए उच्चतम न्यायालय गए। वहां भी शिकायत खारिज हो चुकी है।

इस तरह के मुद्दे में बड़े पैमाने पर लामबंदी की गुंजाइश भी काफी हद तक सीमित है। विपक्षी खेमे को किसी एक मुद्दे पर एक साथ लाने की योजना के तहत ही तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने ऑल इंडिया फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस का गठन कर एक शुरुआत की।

इसके लिए सभी विपक्षी दलों को भी आमंत्रित किया गया था और जाति आधारित जनगणना की मांग की गई थी जो अपने आप में ही इस बात को लेकर स्वीकृति थी कि सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर होने वाले भेदभाव से लड़ा जाना चाहिए और यह केवल जनगणना के आधार पर किया जा सकता है जिसमें जाति शामिल है।

यह एक ऐसा मुद्दा है जिसने भाजपा को भी परेशान कर दिया है और विपक्षी नेताओं को लग रहा है कि यह मुद्दा सत्तारूढ़ पार्टी को और परेशान कर सकता है। स्टालिन की नजर मंडल जैसे संभावित आंदोलन पर है जो विशेष रूप से जाति-आधारित दलों को एक मंच पर ला सकता है। उधर आम आदमी पार्टी ने डिग्री दिखाओ अभियान चालू रखा है।

यह एक ऐसा मुद्दा है, जो देश के पढ़े लिखे लोगों को प्रभावित कर सकता है। पार्टी के अलग अलग नेता अपनी डिग्री का सार्वजनिक प्रदर्शन कर भाजपा से मोदी की डिग्री सार्वजनिक करने की मांग जारी रखे हुए हैं। ऐसा तब हो रहा है जबकि इसी मुद्दे पर गुजरात उच्च न्यायालय ने अरविंद केजरीवाल पर जुर्माना लगाया है। इसलिए विपक्ष को वैसा एक मुद्दा चाहिए जो सारे भाजपा विरोधी दलों को एक सूत्र में बांध सके। फिलहाल इसकी कमी साफ नजर आ रही है।

उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा।