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एम के स्टालिन के बुलावे पर एक साथ बैठेंगे तमाम विरोधी दल के नेता

  • पहले के प्रयास सफल नहीं हो पाये थे

  • राहुल प्रकरण के बाद बदली राजनीति

  • बैठक कितना सफल होगा, यह तय नहीं

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः तमिलनाडू के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के आमंत्रण पर दिल्ली में विरोधी दलों की बैठक में लगभग सभी ने भाग लेने पर सहमति जतायी है। इससे पहले भी कई प्रयास हुए थे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल पायी थी। अचानक से राहुल गांधी प्रकरण के बाद विपक्षी राजनीति में जो उबाल आया है, इसमें स्टालिन द्वारा बुलायी गयी बैठक पर सभी की नजर है।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएसके प्रमुख एमके स्टालिन के निमंत्रण पर, तृणमूल प्रतिनिधि के भी कांग्रेस के साथ कार्यक्रम में उपस्थित होने की उम्मीद है। आप और बीआरएस के प्रतिनिधियों के भी रहने की उम्मीद है। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी सोमवार को गुजरात के सूरत के सेशन कोर्ट में अर्जी देने वाले हैं।

गौरतलब है कि बैठक में तृणमूल के प्रतिनिधि भी मौजूद रहने वाले हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि वे स्टालिन के निमंत्रण पर इस कार्यक्रम में शामिल हो सकते हैं। इसके अलावा तृणमूल नेता ममता बनर्जी भी अपना प्रतिनिधि भेज सकती हैं। सूत्रों के मुताबिक डेरेक ओ ब्रायन तृणमूल का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप भी बैठक में प्रतिनिधि भेज सकती है। उनकी तरफ से सांसद संजय सिंह बैठक में शामिल हो सकते हैं। केशव राव तेलंगाना के के चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस के लिए हो सकते हैं। हाल के दिनों में सोमवार के कार्यक्रम को राष्ट्रीय राजनीति में डीएमके की दूसरी कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

इससे पहले स्टालिन के 70वें जन्मदिन समारोह में शामिल होने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, तेजस्वी यादव, फारूक अब्दुल्ला चेन्नई गए थे। इस बार स्टालिन द्वारा बुलाई गई बैठक में विपक्ष के और नेताओं के मौजूद रहने की उम्मीद है। सांसद पद से राहुल को हटाये जाने के बाद के घटनाक्रमों ने विपक्ष को एकजुट करने में मदद की है।

तृणमूल, आप जैसी पार्टियों ने कांग्रेस से दूरी भूलकर करीब आने के संकेत दिए हैं। ऐसे में कई विपक्षी नेता विपक्षी एकता को मजबूत कर अगली लोकसभा की शुरुआत करना चाहते हैं। हालाँकि, उस गठबंधन के आकार के बारे में असहमति है। ऐसे में मोदी विरोधी एकता स्थापित करने का स्टालिन का प्रयास कितना सफल होगा, यह तो भविष्य ही बताएगा।

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