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रिम्स की बदहाली पर सूचना अधिकार मंच ने नाराजगी जतायी

रांचीः झारखंड राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में प्रतिमाह 934  साल में 11,205 गरीब- गुरबा मरीजों की मौत हो उस राज्य के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए।

उपरोक्त बातें आज झारखंडी सूचना अधिकार मंच के केंद्रीय अध्यक्ष -सह- कांके विधानसभा क्षेत्र के पूर्व प्रत्याशी विजय शंकर नायक ने आज कहीं। इन्होंने यह भी कहा कि राज्य के झारखंडी नेता-मंत्री-अधिकारी अपने परिवारों को प्राइवेट व उच्च गुणवत्ता वाले राज्य के बाहर  अस्पताल में इलाज करा कर अपने परिवारों की जान बचाने का कार्य कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर झारखंडी गरीब गुरबा मरीजों को मरने के लिए अव्यवस्था का शिकार रिम्स अस्पताल को नारकीय स्थिति में बना कर रखे हुए हैं।

रिम्स को अगर सुचारू रूप से झारखंड की सरकार नहीं चला पा रही है तो कम से कम अब रिम्स को (सेना के हवाले) एम.ओ.यू कर सौंप दिया जाना चाहिए ताकि गरीब गुरबा मरीजों की जान को बचाया जा सके।

श्री नायक ने आगे कहा कि झारखंड राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में पिछले वर्ष 2022 के जनवरी से दिसंबर तक 11,205 गरीब गुरबा असहाय झारखंडी मरीजों की मौत हुई है मौत का आंकड़ा कुल भर्ती मरीजों 79,302 की तुलना में 14.14 फ़ीसदी है

चिंता और आक्रोश का विषय यह है कि सबसे ज्यादा मरीजों की मौत न्यू ट्रामा सेंटर में हुई है जहां 604 मरीजों को भर्ती किया गया  जिसमें 342 लोगों की मौत हो गई , मौत का प्रतिशत 56.6 है और तो और मेडिसिन विभाग में भी मौत का आंकड़ा 6,010 है जो विभाग में कुल भर्ती मरीजों का 24.76 फीसदी है यहां 24,277 मरीजों को 1 वर्ष में भर्ती किया गया था।

श्री नायक ने यह भी आगे बताया कि न्यूरो सर्जरी विभाग में 1 वर्ष में 1,963 मरीजों की मौत हुई यह मौत कुल भर्ती मरीज 8,644 की तुलना में 22.71 फीसदी है तो रिम्स के सर्जरी विभाग में 10,723 मरीजों को ऑपरेशन के लिए भर्ती किया गया जिसमें 946 लोगों की मौत इलाज के दौरान हो गई।

कार्डियोलॉजी में 5,961 का इलाज किया गया जिसमें से 238 की मौत हो गई। आज स्थिति इतना भयावह है कि 2015 में जारी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार एम्स में जहां रोजाना 10 मरीजों की मौत होती है वही रिम्स में यह आंकड़ा 30 मरीजों का है जबकि एम्स में प्रतिवर्ष 2•50 लाख से ज्यादा मरीज भर्ती होते हैं और रिम्स में लगभग 80 हजार मरीज।

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