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प्राचीन काल की लिपि में दर्ज है
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कुछ पेड़ों का रस भी इसमें शामिल
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लिपि को समझने का काम जारी है
कायरोः मिस्र में दुनिया भर के पर्यटक मुख्य तौर पर वहां की पिरामिड और ममी देखने ही आते हैं। इन ममियों को तैयार कैसे किया गया था, यह अब तक रहस्य ही रहा है। पहली बार खुदाई के दौरान कुछ ऐसे साक्ष्य मिले हैं, जिससे शायद मृत इंसान को ममी बनाने की प्रक्रिया का खुलासा हो जाएगा।
आज के करीब ढाई हजार वर्ष पहले खास तौर पर वहां के शासकों को इस सोच के साथ ममी बनाया जाता था ताकि वे दूसरे जगत में भी सुख सुविधा के सारे साधन हासिल कर सके। उनकी ममी तैयार करने के बाद उन्हें एक विशाल पिरामिड के अंदर रख दिया जाता था।
अनेक पिरामिडों में मुख्य व्यक्ति के अलावा उनके सहयोगी और पालतू जानवरों को भी ममी बनाकर रखा गया था। जानकारी के लिए बता दें कि दरअसल किसी मृत व्यक्ति के आंतरिक अंगों को भी इस प्रक्रिया में सुरक्षित कर दिया जाता था। इसलिए हजारों साल तक इसी अवस्था में होने के बाद भी वे नष्ट नहीं होते थे। सिर्फ इस विधि में कौन से रसायन इस्तेमाल होते थे, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं थी।
पहले भी मिली ममियों के विश्लेषण से इन बातों की पुष्टि हो चुकी थी। वैसे वैज्ञानिक तथ्यों के मुताबिक मृत व्यक्तियों के शवों को संरक्षित करने के प्रमाण दुनिया के हर महाद्वीप में मिले हैं।
अकेले मिस्र में दस लाख से अधिक जानवरों की ममी पायी गयी है। इनकी जांच कॉर्बन डेटिंग से करने पर पता चला है कि वे 450 से 250 बीसी के काल के हैं।
इसलिए यह वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य का विषय बना हुआ था कि इन शवों को इतने अधिक समय तक बिना नष्ट हुए संरक्षित कैसे रखा जाता था। इस बारे में पता चला है कि यहां के करीब ही साकरा में कुछ खनन कार्य के दौरान प्राचीन काल के कुछ बरतन मिलने के बाद इस पर अधिक शोध हुआ है।
वहां पर 31 सिरामिक के बने जार पाये गये हैं। इस स्थान को देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि यह प्राचीन काल का कोई वर्कशाप था। यह कमरा भी जमीन की गहराई में बनाया गया था। इन बरतनों में कुछ रसायन भी मिले हैं।
प्रारंभिक परीक्षण से पता चला है कि इनमें एंटीसैप्टिक तेल, तारकोल, रेसिन और कुछ सुगंध वाले पदार्थ रहे हैं। वहां पर कुछ लिपिबद्ध जानकारी भी मिली है। जिसके बारे में अनुमान है कि वहां पर ममी कैसे बनाते हैं, इसका विवरण दर्ज किया गया है।
वैसे इस लिपि का अब तक खुलासा नहीं हो पाया है क्योंकि यह प्राचीन भाषा में है। इस शोध से जुड़ी सूसान बेक ने कहा कि जो रेसिन मिला है वह किसी पेड़ का है और वहां जो तेल के अंश मिले हैं, वह शायद इलेमी तेल के हैं। यह दोनों सिर्फ एशिया और अफ्रीका के कुछ वर्षा वनों में ही पाये जाते हैं।
वहां की प्राचीन भाषा के कुछ शब्द अब भी प्रचलित होने से यह समझा जा सका है कि मिश्रण तैयार करने की विधि इसमें बतायी गयी है।
इस बारे में इजिप्टोलॉजी विश्वविद्यालय की प्रोफसर सलीमा इकराम ने कहा कि किस पेड़ के रस से इसे बनाया जाता था, इसे जान लेने पर इस शोध की गाड़ी और आगे बढ़ पायेगी। वैसे वहां की लिपि को समझने का भी प्रयास चल रहा है। वहां के बरतन और लिपि से यह समझा जा सकता है कि यह तकनीक सार्वजनिक नहीं थी और उस काल के विशेषज्ञ चिकित्सकों को ही इसके बारे में पूरी जानकारी होती थी।