अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिस रिपोर्ट को गंभीरता से लिया गया है। शेयर बाजार पर जिसका साफ साफ असर दिख रहा है, उस मुद्दे पर चर्चा के लिए अतिरिक्त समय तय कर बहस हो सकती है। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है जबकि विपक्ष के विरोध की वजह से संसद का काम काज बाधित हो रहा है।
एक तरफ विपक्ष के नेता यह दावा कर रहे हैं कि भारतीय बैंकों और जीवन बीमा निगम के जरिए जनता का पैसा अडाणी के पास गया था। इसपर संसद के भीतर चर्चा होनी चाहिए ताकि देश को पता चल सके कि वास्तविक स्थिति क्या है।
दूसरी तरफ यह भी साफ नजर आ रहा है कि संसद में दो दिनों के गतिरोध की वजह से भी जनता का ही पैसा बर्बाद हो रहा है। गुरुवार के बाद संसद के दोनों सदनों को शुक्रवार को भी दोपहर के भोजन तक के लिए स्थगित कर दिया गया क्योंकि विपक्षी दलों ने दूसरे दिन अडाणी समूह के खिलाफ धोखाधड़ी के आरोपों पर चर्चा और जांच के लिए बुलाया, जिसने शेयर बाजार में भूचाल ला दिया है।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट और अडाणी समूह की सफाई के बाद भी निवेशकों को इस औद्योगक समूह के शेयरों पर भरोसा नहीं हो रहा है। दूसरी तरफ अंतर्राष्ट्रीय संस्था क्रेडिस स्विस ने भी अडाणी के शेयरों के भाव शून्य कर दिये हैं।
दरअसल यह समझ लेना होगा कि कर्ज देने वाले यह अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी प्रमुख कंपनियों के शेयरों को भी सुरक्षा के तौर पर कॉलेटरल पूंजी मानती है। क्रेडिट स्विस ने अडाणी के शेयरों को यह दर्जा दिया था, जिसे अब वापस ले लिया गया है। संसद की स्थिति यह है कि सोलह विपक्षी दलों के नेताओं ने राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के कक्षों में एक बार फिर मुलाकात की, एक दिन बाद जब संसद के दोनों सदनों को बिना किसी काम के स्थगित कर दिया गया।
कांग्रेस, डीएमके, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, भारत राष्ट्र समिति, शिवसेना, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड, सीपीआई (एम), सीपीआई, एनसीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, केसी (जोस) के सांसद मणि), केसी (थॉमस) और आरएसपी ने संसद भवन में खड़गे के कक्ष में विपक्षी दलों की बैठक में भाग लिया।
हिंडनबर्ग-अडाणी पंक्ति पर संसद में हंगामे के बाद गुरुवार को दोनों सदनों को दिन भर के लिए स्थगित कर दिया गया। कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष ने अडाणी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों की जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय या एक संयुक्त संसदीय समिति की देखरेख में निष्पक्ष जांच की मांग की।
लोकसभा और राज्यसभा दोनों में इस संबंध में कई सदस्यों द्वारा स्थगन नोटिस खारिज किए जाने के बाद विपक्षी दलों ने भी हंगामा किया, जिसके कारण सदनों को दिन के लिए स्थगित करना पड़ा। सदनों में कोई कामकाज नहीं हुआ।
इस बीच, कांग्रेस ने 6 फरवरी को देश भर के सभी जिलों में एलआईसी और एसबीआई के कार्यालयों के बाहर विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने इसे एक घोटाला करार दिया और कहा कि विपक्षी दलों ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) या उच्चतम न्यायालय की निगरानी में जनता के पैसे से जुड़े मामले की रोजाना रिपोर्टिंग की भी मांग की है।
अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा धोखाधड़ी के दावों के बाद अडाणी समूह के शेयरों में गिरावट से भारतीय निवेशकों के लिए जोखिम पर चर्चा की मांग कर रही हैं। उन्होंने एक संसदीय पैनल या सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति द्वारा जांच के लिए भी कहा।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने उनके अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया, सदस्यों से निराधार दावे नहीं करने के लिए कहा, जबकि राज्यसभा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने विपक्ष द्वारा सभी प्रस्तावों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे सही तरीके से पेश नहीं किये गये थे।
इससे नाराज विपक्षी सदस्यों ने नारेबाजी की और इस कदम का विरोध किया। गौतम अडाणी के पोर्ट-टू-एनर्जी व्यापार साम्राज्य, जो प्रमुख निवेशकों के बीच भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) और भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की गणना करता है, शुल्क लगाए जाने के बाद से मूल्य में $100 बिलियन से अधिक का नुकसान हुआ है।
विपक्ष का तर्क है कि जन हित को ध्यान में रखते हुए अडाणी मामले की गहन जांच या तो एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) या सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी वाले पैनल द्वारा की जाए।
खड़गे ने संवाददाताओं से कहा, इस मुद्दे पर जांच की दिन-प्रतिदिन की रिपोर्टिंग भी होनी चाहिए और सीबीआई अडाणी के पासपोर्ट को जब्त करने की मांग कर रही है, वरना अगर वह भी अन्य उद्योगपतियों और पूंजीपतियों की तरह देश से भाग जाता है, तो इस देश के करोड़ों लोगों के पास कुछ भी नहीं बचेगा।
इसके बीच सरकार की तरफ से चुप्पी का अर्थ यही है कि सरकार इस मुद्दे पर अभी कुछ बोलने से बच रही है। इससे भी निवेशकों को भरोसा और कम हो रहा है।