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मांसाहारी पौधे के साथ सही आचरण किया
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चूहे के दिल की धड़कन बदलने में सफल रहा
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नसों के अलावा दिमागी बीमारियों का निदान संभव
राष्ट्रीय खबर
रांचीः वैज्ञानिकों ने वैसे कृत्रिम नर्व सेल यानी नसों के कोष बनाने में सफलता पायी है जो आचरण में बिल्कुल जैविक कोष के जैसे हैं। इसके आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि शीघ्र ही चिकित्सा जगत में इसके जरिए नस संबंधी कई किस्म की बीमारियों का निदान अब हो पायेगा।
इस काम पर अंतिम परीक्षण का दौर वर्ष 2022 से ही चल रहा था। अब जाकर उसके अंतिम परिणाम सामने आये हैं। परीक्षण में यह भी पाया गया है कि प्राकृतिक जैविक कोष के साथ इसका मात्र बीस मं से दो का अंतर अभी है। इस अंतर को भी अभी दूर करने के प्रयास चल रहा है।
अच्छी बात यह है कि इन्हें पूरी तरह प्रयोगशाला में विकसित किया गया है। तैयार होने के बाद से सही तरीके से काम भी कर रहे हैं। शोध का यह काम लैबरोटरी फॉर आर्गेनिक इलेक्ट्रानिक्स में एसोसियेट प्रोफसर सिमोन फैबियानो की देखरेख में किया गया है।
इस शोध दल ने अपने परीक्षण में यह भी पाया है कि यह कृत्रिम आर्गेनिक सेल भी न्यूरॉन के स्तर पर सही काम कर हा है। इस क्रम में शोध दल ने एक जीवित मांसाहारी पौधे के सेल के साथ इसे आजमाया था। यह पाया गया कि इसके जरिए उस पौधे का शिकार के लिए अपना मुंह खोलने और बंद करने का काम सफलतापूर्वक पूरा किया जा सका है।
प्रसिद्द वैज्ञानिक पत्रिका नेचर मैटेरियल्स में इस बारे में जानकारी दी गयी है। कृत्रिम सेल का बाद में न्यूरॉन के स्तर पर भी समानता की जांच की गयी थी। जिसमें पाया गया था कि यह प्राकृतिक सेल के न्यूरॉनों के बीस में से 15 काम को बिल्कुल सही तरीके से अंजाम दे रहा है।
इससे पहले सिलिकॉन आधारित जितने भी सेल बनाये गये थे वे आचरण में तो बिल्कुल असली थे लेकिन सुक्ष्म स्तर पर यानी न्यूरॉन के स्तर पर वे प्राकृतिक सेलों के साथ नियमित संपर्क नहीं रख पाते थे। जबकि सेलों के अंदर अति सुक्ष्म स्तर पर न्यूरॉनों का आपसी संवाद एक महत्वपूर्ण विषय होता है।
इसी काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए लिंकोपिंग विश्वविद्यालय के शोध दल ने पहले आर्गेनिक इलेक्ट्रा मैकानिकल ट्रांसजिटर तैयार किये। पॉलिमरों की मदद से इस शोध दल ने हजारों ऐसे ट्रांसजिटर बनाये थे। इसके जरिए कृत्रिम नर्व सेल को विकसित करने का काम वर्ष 2018 से ही चल रहा था।
लेकिन न्यूरॉन के स्तर पर इसमें कभी भी सफलता इससे पहले नहीं मिल पायी थी। एक बहुत ही पतले प्लास्टिक की पर्त पर हजारों ऐसे ट्रांसजिटर छापे जा सकते हैं और इस विधि के सफल होने के बाद उन्हें और उन्नत बनाने का काम प्रगति पर है।
अभी परीक्षण में जो कृत्रिम न्यूरॉन तैयार किया गया है, उससे बिजली करंट गुजर सकती है। इसमें वोल्टेज के उतार चढ़ाव पर आधारित संकेत पैदा हो रहे हैं। इसी वजह से यह कृत्रिम सेल परीक्षा में शामिल किये गये प्राकृतिक सेलों के साथ संवाद कायम कर पाने में सफल रहा है। इसी वजह से शोध दल को इस उपलब्धि से काफी उम्मीदें हैं।
परीक्षण के दौरान यह देखा गया है कि यह कृत्रिम सेल चूहे के नसों में वह बदलाव पैदा कर पाने में कामयाब हुआ है जिससे उसके दिल की धड़कन में साढ़े चार प्रतिशत का बदलाव हुआ है। यानी यह विधि किसी कृत्रिम नस को भी असली नस के जैसा आचरण करने का निर्देश दे सकती है।
चिकित्सा जगत में इसी वजह से इस खोज की अलग अहमियत महसूस की गयी है। इंसानों अथवा दूसरे जीवित प्राणियों में नसों से संबंधित जो भी बीमारियां हैं, उसे इस विधि से पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। चूंकि यह ऑर्गेनिक है इसलिए यह किसी भी जीवित कोष के साथ घुल मिल जाता है।
अब इस विधि में इनके ऊर्जा की खपत को कम करने पर काम चल रहा है क्योंकि यह पाया गया है कि इंसान के प्राकृति नर्व सेल के मुकाबले यह अधिक ऊर्जा खर्च करती है। वैसे इतनी अधिक समानता की वजह से वैज्ञानिक यह उम्मीद कर रहे हैं कि इसके जरिए इंसानी शरीर के सबसे जटिल अंग यानी ब्रेन को भी समझना आसान हो जाएगा। उसके बाद ब्रेन संबंधित बीमारियों का ईलाज भी संभव होगा।