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यूक्रेन पर रूस का हमला अभी और खतरनाक मोड़ पर पहुंचेगा

कियेबः रूसी सेना की तैयारियों को देखकर यह स्पष्ट होता जा रहा है कि यूक्रेन पर हमले के लिए वे बर्फवारी के रूकने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस बीच चार प्रांतों पर रूसी सेना अपना नियंत्रण मजबूत करती जा रही है।

वैसे रणनीति के जानकार यह मान रहे हैं कि रूसी सेना सिर्फ इस मौसम में हुई बर्फवारी के पिघल जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। आगामी दिनों के बहुत बड़े हमले के लिए गोला बारूद एकत्रित किया जा रहा है। दूसरी तरफ यूक्रेन तथा उसकी मदद करने वाले नाटो के सदस्य देश अब हथियारों को लेकर चिंतित हैं।

रूसी टैंकों का मुकाबला करने के लिए यूक्रेन के पास कोई हथियार नहीं है। दूसरी तरफ जर्मनी अब तक अपने लेपर्ड टैंक देने में आनाकानी कर रहा है। इसे लेकर नाटो के सदस्य देशों के बीच भी मतभेद उभरते हुए नजर आने लगे हैं। यूक्रेन का अनुमान है कि इस बीच रूसी सेना फिर से कियेब पर हमला करने की तैयारियों में जुटी है।

रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन द्वारा पांच लाख अतिरिक्त सैनिकों को इस मोर्चे पर लगाने के एलान से ही यह बात साफ हो रही है। अभी ठंड के मौसम में अनेक इलाके बर्फ से दबे हुए हैं। इसलिए जब बर्फ पिघलना प्रारंभ होते ही रूसी सेना उन इलाको पर हमला करेगी, जहां अभी तक जोरदार हमला नहीं हुआ है।

यह अलग बात है कि मॉस्को ने अतिरिक्त सेना की तैनाती की खबरों को गलत बताया है। नाटो के सदस्य देशों के अलावा यूरोप के सारे देश इस स्थिति से चिंतित हैं क्योंकि रूस के आगे बढ़ने की हालत में दूसरे देशों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाएगा। यह स्थिति तब होगी जबकि वहां पर पूर्व के सोवियत संघ जमाने के कई देश तथा उस दौर के सोवियत समर्थक देश मौजूद हैं।

जर्मनी द्वारा अपने लेपर्ड टैंक नहीं देने की वजह से यूक्रेन को इस लड़ाई में नुकसान हो रहा है। दूसरी तरफ जर्मनी ने शर्त रख दी है कि वह तभी यह टैंक यूक्रेन भेजेगा जब अमेरिका भी कुछ टैंक यूक्रेन को देगी।

जर्मनी को इस बात की चिंता है कि अपने देश के भारी भरकम टैंक यूक्रेन को देने से रूस के साथ उसके अपने रिश्ते बिगड़ सकते हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान रूस के समर्थन की वजह से वहां की जनता का बहुमत अब भी रूस के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के खिलाफ है।

पोलैंड के पास भी ऐसे टैंक हैं लेकिन जर्मनी की सहमति के बिना वह इन टैकों को यूक्रेन नहीं भेज सकता। दूसरी तरफ बाल्टिक क्षेत्र के देश लाटिविया, एस्टोनिया और लिथुआनिया इस स्थिति से अत्यधिक चिंतित हैं क्योंकि उन्हें भी अपने सर पर खतरा मंडराता हुआ दिख रहा है।

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