-
एंटी बॉयोटिक दवाइयों का कुप्रभाव खत्म होगा
-
जिनोम के सुक्ष्म स्तर पर हर चीज को देखना संभव
-
क्रायो इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी का भी प्रयोग किया गया है
राष्ट्रीय खबर
रांची: वायरस की चर्चा कोरोना महामारी की वजह से दुनिया में अधिक हुई है। इसी चर्चा की वजह से वे लोग भी इस बारे में काफी कुछ जान चुके हैं जो अब तक इस अति सुक्ष्म विषाणु के बारे में या तो कम जानते थे या कुछ भी नहीं जानते थे।
खुली आंखों से नजर भी नहीं आने वाला यह विषाणु इंसानी जीवन के लिए कितना खतरनाक बन सकता है, इसका प्रमाण दुनिया को मिल चुका है। यह अलग बात है कि इस बात पर आज भी बहस चल रही है कि कोरोना का वायरस प्रयोगशाला से फैला अथवा यह प्राकृतिक तौर पर ही चमगादड़ों से इंसानों तक आ पहुंचा।
जो वायरस चमगादड़ों के लिए खतरा नहीं था वह पूरी दुनिया के लिए जान लेवा बन गया था। अब भी चीन में इसका कहर जारी है जबकि वहां से इस बारे में बहुत कम सूचनाएं बाहर आ रही हैं। फिर भी जेनेटिक विज्ञान को इस एक घटना ने वायरस को और बेहतर तरीके से समझने को प्रेरित किया है।
इस बात का परिणाम है कि अब वैज्ञानिकों ने एक जिंदा वायरस की थ्री डी प्रिंटिंग की है तथा उसकी रासायनिक संरचना और काम काज को समझने का काम प्रारंभ किया है। समझा जाता है कि इस शोध से वायरस से उत्पन्न होने वाली परेशानियों को भविष्य में सुलझाने में मदद मिलेगी।
शोध दल यह भी उम्मीद करता है कि शायद इस शोध का परिणाम सामने आने के बाद अलग अलग किस्म की बीमारियों में ईलाज के लिए इस्तेमाल होने वाले एंटीबॉयोटिक्स का इस्तेमाल ही बंद हो जाए। उसके बदले एंटी बैक्टेरियल प्रतिरोध के सहारे बीमारियों का ईलाज प्रारंभ हो जाए।
वर्तमान में खास किस्म की बीमारियों के विषाणु पूर्व में इस्तेमाल किये जाने वाले दवाइयों का प्रतिरोधक अपने अंदर पैदा कर चुके हैं। उदाहरण के तौर पर टीबी के विषाणु को लिया जा सकता है। इसके इलाज के लिए पहले जिन दवाइयों का इस्तेमाल होता था, अब वे कारगर नहीं रहे हैं। इसलिए भी जिंदा वायरस की इस थ्री डी मॉडल से नया शोध प्रारंभ किया गया है।
जिंदा वायरस का ऐसा मॉडल बनाकर शोध दल उसकी हर गतिविधि को दर्ज कर रहा है। इसके तहत उसकी पूरी जिनोम श्रृंखला को ही दर्ज किया गया है। यह काम एस्टॉन यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड फिजिकल साइंस में किया गया है। इस शोध दल का नेतृत्व डॉ दिमित्री नेरूख कर रहे हैं।
इस शोध के बारे में एक प्रमुख वैज्ञानिक पत्रिका में जानकारी प्रकाशित की गयी है। शोध दल ने क्रायो इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी के जरिए वायरस की संरचना में मौजद आंकड़ों को भी दर्ज किया है। ब्रिटेन और जापान के सुपर कंप्यूटरों की मदद से तीन साल के अथक प्रयास के बाद उसका थ्री डी मॉडल बनाया जा सका है।
वैसे इस थ्री डी मॉडल में सारे जिनोम नहीं होने की वजह से अलग से उनपर शोध किया जा रहा है। इस शोध के जरिए वायरस कैसे हमला करता है और कहां क्या कुछ असर डालता है, उसे समझ पाना आसान हो गया है।
अनुमान है कि इस शोध के जरिए हर किस्म के वायरस को खतरनाक बनने से रोकने का नया रास्ता मिल जाएगा। इस बारे में खुद डॉ नेरूख ने कहा कि इससे पहले किसी ने भी प्राकृतिक वायरस का ऐसा मॉडल तैया नहीं किया था। अब जो मॉडल बनकर तैयार हुआ है वह आणविक स्तर पर हर चीज को बयां कर सकता है।
इसके जरिए अब जिनोम के अति सुक्ष्म स्तर पर क्या कुछ होता है उसे भी समझा जा सकता है। वरना इससे पहले जिनोम के स्तर पर क्या कुछ होता है, इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसके माध्यम से कमसे कम उस चुनौती से निपटना आसान होगा, जो वर्तमान में एंटी बॉयोटिक दवाइयों के इस्तेमाल से वायरस में उत्पन्न होने वाली प्रतिरोधक शक्तियों का है।
इसके जरिए उन बैक्टेरिया का भी सफाया किया जा सकता है, जो इंसानी जीवन के लिए खतरनाक है। बिना एंटीबॉयोटिक से यह काम होने पर वायरस अथवा बैक्टेरिया को भी अपने अंदर प्रतिरोधक विकसित करने का मौका ही नहीं मिल पायेगा।