अंकाराः तुर्किश के राष्ट्रपति तैय्यब एर्देगॉन अपने देश के आतंकवादियों की मांग पर अड़ गये हैं। उन्होंने कहा है कि फिनलैंड को नाटो की सदस्यता के प्रस्ताव को वह तभी मंजूरी देंगे जब वहां शरण लिये हुए आतंकवादियों को उनके सुपुर्द किया जाएगा। उन्होंने साफ कर दिया है कि अगले दिनो होने वाली बैठक में वह फिनलैंड और स्वीडन की सदस्यता का विरोध करने वाले हैं। नाटो के सदस्य देशों का नियम है कि किसी भी देश को इसमें शामिल करने के लिए सर्वसम्मति आवश्यक है।
यदि तुर्की इस प्रस्ताव का विरोध कर देता है तो स्वीडन और फिनलैंड की नाटो की सदस्यता फिर से खटाई में पड़ जाएगी। राष्ट्रपति एर्देगॉन ने साफ साफ कहा कि फिनलैंड में हमारे देश के 130 आतंकवादी शरण लिये हुए हैं। इस बारे में हर पक्ष को पहले से जानकारी है।
इसलिए फिनलैंड को पहले उन आतंकवादियों को सौंपना होगा। इसके बिना वह ऐसे प्रस्ताव को अपनी सहमति नहीं देंगे। रूस की सीमा पर स्थित दोनों देशों ने यूक्रेन की हालत देखकर नाटो की सदस्यता लेने का फैसला किया है। इन दोनों देशों की सैनिक स्थिति रूस के मुकाबले कुछ भी नहीं है।
दूसरी तरफ तुर्किश का काफी लंबे समय से कुर्दिश विद्रोहियों के साथ टकराव चल रहा है। सेना और कुर्दिश आतंकवादियों के बीच काफी लंबे अरसे से संघर्ष जारी है। इन विद्रोहियों को फिनलैंड में भी शरण दिये जाने का तुर्किश ने पहले भी जोरदार तरीके से विरोध किया था।
आरोप है कि इन आतंकवादियों ने देश के भीतर भी कई बड़ी आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया है। तुर्किश की सरकार इन कुर्दिश विद्रोहियों को अपने देश में आतंकवादी मानती है और उनकी सूची जारी कर चुकी है। उत्तरी अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन का तुर्किश भी एक सदस्य है।
इस संगठन यानी नाटो ने पहले से ही यह नियम बना रखा है कि किसी नये देश को इसकी सदस्यता देने के ले सभी तीस सदस्य देशों की सहमति आवश्यक है। नाटो संधि के तहत उसके सदस्य देशों पर होने वाले किसी भी हमले पर पूरा नाटो संगठन एक साथ मिलकर युद्ध करता है। अब एर्देगॉन की मांग की वजह से दो देशों की सदस्यता पर सवालिया निशान लग गये हैं। ऐसा तब हो रहा है जबकि दोनों देशों के नाटो में शामिल होने के फैसले के बाद अब रूसी सेना इनकी सीमा पर सक्रिय हो चुकी है।