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सांसदों और धनकुबेरों की बिजली काटने की चेतावनी

पेरिसः फ्रांस में सरकार के खिलाफ श्रमिक संगठनों का आक्रोश बढ़ गया है। इसी वजह से वहां की एक ताकतवर श्रमिक संगठन सीजीटी ने एलान किया है कि सरकार अगर नहीं सुधरी तो वे सारे सांसदों और देश के खरबपरियों के घरों की बिजली काट देंगे। इस क्रम में आज यानी गुरुवार को वहां जोरदार प्रदर्शन भी किया गया है।

दरअसल यह नाराजगी सरकार के उस फैसले को लेकर है, जिसमें रिटायर होने की उम्र को 62 साल से बढाकर 64 साल कर दिया गया है। देश के लोग पहले से ही महंगाई की वजह से नाराज चल रहे थे। सरकार ने पिछले सप्ताह इस नये प्रावधान को लागू करने का एलान कर श्रमिकों को नाराज कर लिया है।

श्रमिक यह मान रहे हैं कि दरअसर सरकार की मंशा पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए देश के सारे मजदूरों का हक मारना है। इस बदलाव के जरिए वे मजदूरों के पेंशन का पैसा हड़पने की साजिश रच रहे हैं। श्रमिक संगठनों का आरोप है कि देश का मजदूर वर्ग पहले से ही किसी तरह जिंदा रहने के जद्दोजहद में फंसा है। उस पर सरकार मजदूर विरोधी फैसला ले रही है।

सभी श्रमिक संगठनों की तरफ से सरकार के इस फैसले के खिलाफ हड़ताल का आह्वान किया गया है। इस वजह से ऐसा माना जा रहा है कि राष्ट्रपति इमानूएल मैक्रों को पहली बार जनता की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। इस एक फैसले ने उनकी लोकप्रियता का ग्राफ ही उलटकर रख दिया है।

इस हड़ताल में देश के तीन चौथाई शिक्षक भी शामिल हो रहे हैं, जिसकी वजह से स्कूलों में पहले ही बंदी का एलान कर दिया गया है। साथ ही परिवहन और स्वास्थ्य सेवा से जुड़े कर्मचारी यूनियनों ने भी इसका समर्थन कर दिया है। इस कारण ट्रेन और मेट्रो का परिचालन बंद हो गया है। इसके साथ साथ देश के ट्रक चालकों ने भी अपना समर्थन व्यक्त करते हुए चक्का जाम कर दिया है।

दूसरी तरफ देश के तेलशोधक कारखानों के श्रमिक भी इस हड़ताल में शामिल हो रहे हैं। इसके अलावा देश के सिनेमाघरों, संगीत कार्यक्रमों और यहां तक कि बैंकों को कर्मचारी भी इसमें शामिल होने की वजह से एक तरीके से यह माना जा रहा है कि जनजीवन पूरी तरह ठप हो गया है।

देश में इस पर एक सर्वेक्षण भी कराया गया था, जिसमें जनता ने सरकार के फैसले का विरोध किया है। देश के 68 प्रतिशत लोगों ने सरकार के इस फैसले के विरोध में मत दिया है। फ्रांस में 12 वर्षों के बाद पहली बार इस तरीके से सभी सरकारी संस्थानों की श्रमिक संगठन एक साथ हड़ताल पर आये हैं।

इससे पहले देश को कभी भी ऐसी परिस्थिति का सामना नहीं करना पड़ा था। समझा जाता है कि जो लोग इस हड़ताल में शामिल नहीं हैं वे भी शायद अपने काम पर नहीं पहुंच पायेंगे क्योंकि सभी सरकारी सेवाएं बंद रहेंगी। सरकार ने अपने इस फैसले को लागू करने का एलान किया है, जिससे टकराव की स्थिति बन आयी है। फ्रांस में इससे पहले भी पेंशन योजना को बदलने की कोशिश हुई है लेकिन हर बार जनता के आक्रोश को देखते हुए पूर्व के राष्ट्रपतियों ने अपने फैसले को लागू नहीं किया था।

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