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आरबीआई ने नोटबंदी से इंकार कर दिया था

  • सूचना के अधिकार से दूसरा खुलासा

  • सभी पक्षों मे दाखिल किया है हलफनामा

  • आरबीआई के दस्तावेज केंद्र सरकार के खिलाफ

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी के औचित्य पर जारी मामले में केंद्र सरकार की एक के बार एक फजीहत हो रही है। केंद्र सरकार ने अपनी तरफ से आरबीआई के निदेशक मंडल की बैठक का हवाला देते हुए इस नोटबंदी के फैसले को जायज ठहराया था। इस मामले में शीघ्र ही फैसला आने वाला है। उसके पहले ही फिर से सूचना के अधिकार से हासिल दस्तावेजों ने इस दलील को गलत साबित कर दिया है।

सरकार ने अदालत में कहा है कि नोटबंदी करने का फैसला आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की विशेष सिफ़ारिश पर लिया गया था। हालांकि आरटीआई के माध्यम से सामने आए निष्कर्ष केंद्र सरकार द्वारा शीर्ष अदालत में प्रस्तुत किए गए इस हलफ़नामे के विपरीत हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 के नोटों को प्रचलन से बंद करने की घोषणा की थी। अब पता चल रहा है कि 15 मार्च 2016 को प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और आरबीआई गवर्नर को लिखे एक पत्र में कर्नाटक की भ्रष्टाचार विरोधी समिति ने काले धन की समस्या से निपटने के लिए 500 और 1,000 रुपये के बैंक नोट पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया था।

जिसके जवाब में आरबीआई ने कहा था, 500 और 1,000 रुपये मूल्यवर्ग के नोट प्रचलन में मौजूद नोटों के मूल्य का 85 फीसदी हैं और जनता की नकदी संबंधी जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इसे देखते हुए वर्तमान में 500 और 1,000 रुपये के उच्च मूल्य-वर्ग के बैंक नोटों को वापस लेना व्यवहार्य नहीं होगा। उक्त पत्र 12 जनवरी 2016 को बेंगलुरु की एंटी-लैंड ग्रैबिंग एक्शन कमेटी द्वारा लिखा गया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे गए इस पत्र में समिति ने ‘भारत में काले धन की समस्या से निपटने के लिए किए जाने वाले उपायों’ के बारे में लिखा था। इसने तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली और आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन को भी पत्र की एक प्रति भेजी थी।

महाप्रबंधक ई. बागे द्वारा भेजे गए पत्र में कहा गया था कि ऐसा फैसला लेना उचित नहीं होगा क्योंकि अधिकांश धन आम आदमी के पास है। इसमें आगे कहा गया, इसके अतिरिक्त जैसा कि आरबीआई अधिनियम-1934 की धारा 24 कहती है, बैंक नोटों के मूल्य-वर्ग/उन्हें जारी न करने/बंद करने से संबंधी सभी फैसले केंद्र सरकार की मंजूरी से लिए जाते हैं। आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के लिए काम करते हुए नोटबंदी की प्रक्रिया और इसके परिणामों को बड़े पैमाने पर आरटीआई के माध्यम से आगे बढ़ाया था।

उन्होंने कहा कि आरबीआई के निदेशकों ने सरकार के रुख के विपरीत राय दी थी कि अधिकांश काला धन नकदी के रूप में नहीं, बल्कि सोने या अचल संपत्ति जैसी संपत्ति के रूप में रखा जाता है। नायक द्वारा लगाई गई आरटीआई के जवाब में आरबीआई ने कहा था कि उसे 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले की व्यवहार्यता, लागत-लाभ विश्लेषण या प्रभाव का विश्लेषण करने के लिए किए गए किसी भी अध्ययन की जानकारी नहीं है।

वहीं, ज्ञात हो कि जह रघुराम राजन आरबीआई के गवर्नर हुआ करते थे, तब इस केंद्रीय बैंक ने केंद्र सरकार के नोटबंदी के कदम को खारिज कर दिया था। हालांकि, राजन द्वारा 4 सितंबर 2016 को अपने पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद सरकार ने नोटबंदी की कार्रवाई को आगे बढ़ाया।

सुप्रीम कोर्ट 58 याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई कर रहा था, जिन्होंने सरकार के नोटबंदी के कदम को चुनौती दी थी। हलफनामे में सरकार ने दावा किया था, ‘सिफारिश और मसौदा योजना पर केंद्र सरकार द्वारा विधिवत विचार किया गया था और उसके आधार पर अधिसूचना को भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया गया था, जिसमें यह घोषणा की गई थी कि निर्दिष्ट बैंक नोट कानूनी निविदा नहीं रहेंगे।

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