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युद्ध जारी रहने के बीच पश्चिमी विशेषज्ञों ने चेतावनी दी

कियेबः रूसी सेना औऱ गुप्तचर अब प्रभावशाली यूक्रेनी नागरिकों की तलाश में जुटे हैं। पश्चिमी गुप्तचर एजेंसियों ने यूक्रेन को इस बात के लिए आगाह किया है। दरअसल यूक्रेन की सीमा के अंदर भी एक तबका ऐसा है जो रूस समर्थक है। रूस द्वारा कब्जा किये गये इलाकों में ऐसे गुप्त समर्थकों के अलावा हथियारबंद विद्रोही भी हैं, जिन्हें रूसी सेना का समर्थन हासिल है।

यह सारे लोग अब मिलकर वैसे प्रभावशाली लोगों को पहचान और तलाश कर रहे हैं जिन्होंने अब तक रूसी सेना के खिलाफ जनता को संगठित होने में अग्रणी भूमिका निभायी है। इसी वजह से ऐसे लोगों को अपने घरों में नहीं रहने, अपना फोन तुरंत बदल लेने तथा हर कदम फूंककर रखने की हिदायत दी गयी है।

रूसी सेना ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर भी नजरदारी की है और वैसे लोगों की एक सूची बनायी है, जिन्होंने रूस के खिलाफ आवाज उठाने का काम किया है। अनेक स्थानों पर ऐसे लोगों को उनके नाम से तलाशा गया है। सोशल मीडिया पर उनकी तथा उनके घरवालों की अथवा परिचितों की तस्वीरें मौजूद होने की वजह से रूसी सेना का यह काम आसान हो गया है।

आरोप है कि इससे पहले युद्ध के दौरान रूसी सेना के हत्थे चढ़े अनेक लोगों को पहले ही मौत के घाट उतार दिया गया है। यूक्रेन के ऐसे लक्ष्यों में सरकारी अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, धार्मिक नेता, वकील और पत्रकार भी शामिल हैं। हर इलाके के लिए अलग सूची बनायी गयी है। जिसके आधार पर रूसी सेना अपने अपने इलाके मे ऐसे लोगों की पहचान और तलाश कर रही है।

इनमें कुछ लोग पहले ही गिरफ्तार होने के बाद से रूसी कब्जे में है। कुछ लोगों को तो यूक्रेन की सीमा से दूर रूस के अंदर ले जाया गया है। वहां उनके साथ क्या कुछ हो रहा है, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। रूस के कब्जे वाले इलाके खेरसोन, झापोरिझरिया, चेरनिहाइव और डोनेस्क इलाके में रूसी सेना को अपने स्थानीय गुप्तचरों से भी मदद मिल रही है।

आरोप की जांच के सिलसिले में अनेक ऐसे मामलों की पुष्टि भी हो चुकी है। 61 लोग ऐसे मिले हैं, जिन्हें दबाने के लिए उनके परिवार अथवा परिचितों को बंधक बनाया गया था।

इस बारे में सबसे रोचक घटना कियेब के उत्तर में स्थित एक गांव की है। आंद्रेई कुप्रास उस गांव के प्रधान है। उन्होंने युद्ध प्रारंभ होने के बाद पास के जंगल में जाकर एक गड्ढा खोद लिया था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया था कि अगर रूसी सेना का हवाई हमला हो तो जमीन के नीचे छिपने का एक स्थान उनके पास रहे।

यह बंकर तैयार करने के बाद उसे अच्छी तरह घास फूस से ढंककर वह गांव लौट आये थे। एक सप्ताह के बाद किसी अनजान नंबर से उसके पास फोन आया। रूसी भाषा में उनसे पूछा गया कि क्या वही गांव के प्रधान हैं। आंद्रेई ने कहा कि नहीं गलत नंबर है तो दूसरी तरफ से यह चेतावनी आयी कि बेहतर है कि सहयोग करें वरना आपकी पूरी जानकारी हमारे पास हैं और आज नहीं तो कल हम आपको खोज ही लेंगे।

इस धमकी के बाद वह चुपचाप कुछ सामान समेटकर जंगल के बंकर में चले गये। इसी तरह कई अन्य लोगों को भी धमकी भरे फोन आये हैं, जिससे पता चलता है कि स्थानीय स्तर पर उन्हें कौन क्या है, इसकी जानकारी स्थानीय लोग ही उपलब्ध करा रहे हैं।

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