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यह धरती किसी नये युग में प्रवेश कर रही है

  • पहले भी धरती ने कई बार बदलाव देखा है

  • डॉयनासोरों की समाप्ति के बाद शीतकाल आया

  • आगे क्या होगा, उसका आकलन कर पाना संभव नहीं

राष्ट्रीय खबर

रांचीः पूरी दुनिया का मौसम पहले के मुकाबले बदला बदला सा दिख रहा है। इसकी चेतावनी तो पहले ही दी गयी थी लेकिन इस तरीके से मौसम के बदलाव का कहर सारी दुनिया पर होगा, इसकी कल्पना नहीं की गयी थी। अमेरिका और यूरोप के इलाके कड़ाके की ठंड की चपेट में है। पूरे अमेरिका में फिर से कड़ाके की ठंड की चेतावनी जारी की गयी है।

उत्तरी छोर से आने वाले ठंडी हवा की वजह से ऐसा होगा और इसी वजह से इस मौसम में बर्फवारी भी औसत से अधिक हो जाएगी। अभी हाल ही में दो दिनों तक बर्फवारी की वजह से अमेरिका और यूरोप के अनेक स्थानो पर हवाई यात्रा बाधित हो गयी थी। इस बार आने वाली परेशानी उससे अधिक होने की आशंका व्यक्त की गयी है। कनाडा के तरफ से निम्न दबाव का इलाका आगे बढ़ रहा है।

इस कारण इस बार फ्लोरिडा तक इसका कुप्रभाव पड़ेगा। मौसम वैज्ञानिकों ने कहा है कि अभी आसमान पर जो हालात बने हैं उसके मुताबिक ऐसा कहर अगले दो सप्ताह तक जारी रहेगा। क्रिसमस के करीब आने के बीच ही इस चेतावनी से बाहर जाने वालों को संभलने की हिदायत दी गयी है। वरना क्रिसमस के मौके पर लोग अवकाश के दौरान कहीं भी छुट्टी मनाने के लिए निकल जाते है।

यह बताया गया है कि इडाहो से लेकर मिन्नोसोटा तक दस से तीस डिग्री तक तापमान औसत से नीचे रहेगा। अमेरिका के उत्तरी हिस्सों में अधिकतम तापमान दहाई अंक तक नहीं पहुंचेगा जबकि न्यूनतम तापमान अनेक इलाकों  में शून्य से काफी नीचे चला जाएगा।

इससे पहले एशिया महाद्वीप के कई देशों में अत्यधिक बारिश की वजह से आयी बाढ़ और भूस्खलन का नुकसान भी हम देख चुके हैं। पाकिस्तान अपने यहां की विनाशकारी बाढ़ से हुए नुकसान से अब तक उबर नहीं पाया है। अमेरिकी महाद्वीप में तेज हवा चलने की वजह से भी लोगों को अधिक ठंड महसूस होगी। हवा का तापमान भी शून्य से तीस डिग्री नीचे होने की वजह से बर्फवारी की चपेट में यह सभी इलाके आ जाएंगे।

राष्ट्रीय मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक बुधवार की रात को यह तापमान शून्य से पचास डिग्री तक नीचे जा सकता है। इन बदलावों पर ध्यान देने वाले वैज्ञानिकों के मुताबिक यह धरती पर किसी नये युग के प्रारंभ का संकेत भी हो सकता है। उनलोगों ने बताया कि धरती पर ऐसे बदलाव पहले भी हो चुके हैं।

कभी सूर्य से टूटकर अलग हुए आग के गोला के ठंड होने के बाद धरती पर डायनासोर का युग आया था। उसके बाद लगातार दो उल्कापिंडों के गिरने से तबाही आयी थी और धरती फिर से शीतकाल के आगोश में चला गया था। वर्तमान दौर तक पहुंचने में धरती कई बदलावों के दौर से गुजर चुका है। इसी वजह से धरती पर जीवन के विकास की प्रक्रिया भी बदली है।

अब इसी क्रम में जो कुछ धरती पर होता हुआ दिख रहा है, हो सकता है कि वह किसी नये युग की शुरूआत है। चूंकि वैज्ञानिक परिभाषा में इस युग की कोई समय सीमा अब तक तय नहीं की जा सकी है। इसलिए बदलाव का यह क्रम प्रारंभ होने के बाद कितने दिनों तक चलेगा, इसका अनुमान भी लगाना कठिन है। वैसे आधुनिक विज्ञान के सहारे यह सुनिश्चित किया जा चुका है कि वर्तमान धरती का दौर आज से करीब ग्यारह हजार सात सौ वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था।

इसलिए शोध दल यह भी मानता है कि हो सकता है कि वर्तमान जीवन इस बदलाव की प्रक्रिया के कुछ दशक गुजार चुका है। अब सब कुछ सामान्य से अधिक होने की वजह से हमें यह बदलाव महसूस होने लगा है। इस पर कनाडा के ब्रोक यूनिवर्सिटी का शोध दल काम कर रहा है। अंतरिक्ष के लिहाज से चलने वाले समय में यह बदलाव निर्भर है इसलिए इंसानों से सिर्फ शायद अत्यधिक प्रदूषण फैलाकर अपने लिए यह परेशानी मोल ली है।

अब हर प्रजाति में हो रहे बदलाव के लिए भी अलग अलग दल बनाकर इस पर आंकड़े एकत्रित किये जा रहे हैं। हो सकता है कि इस बदलाव की प्रक्रिया में पृथ्वी की भौगोलिक संरचना फिर से बदल जाए क्योंकि ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है। लेकिन यह बदलाव कैसा होगा, उसका आकलन अभी संभव नहीं है। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि बदलाव की इस प्रक्रिया के साथ लगातार ज्वालामुखी विस्फोटों का भी कोई रिश्ता हो सकता है।

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