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हिमाचल में दिखने लगा सत्ता परिवर्तन का टकराव

हिमाचल प्रदेश सरकार और अडाणी समूह में टकराव की स्थिति बढ़ती जा रही है। सरकारी बयान के बाद भी वहां बंद हुए दो सीमेंट कारखानों के बारे में गतिरोध नहीं टूट पाया है। एक सप्ताह का समय होने को है, लेकिन न ट्रक यूनियनें पीछे हट रही हैं, न ही गौतम अडानी की कंपनियां। अडानी की कंपनी ने भी अब मालभाड़ा कम न होने की सूरत में सीमेंट प्लांट बंद रखने की नीति अपनाई है।

कंपनी का कहना है कि 11 रुपए 40 पैसे के रेट पर सीमेंट उठाना बाजार में बेचने के लिए सही नहीं है, इसलिए कंपनी दोनों सीमेंट प्लांट बंद रखने को मजबूर है। कंपनी के प्रवक्ता विकास ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में ट्रक यूनियनों के अडिय़ल रुख से जो स्थिति पैदा हुई है, उससे हम बेहद दुखी हैं। हिमाचल प्रदेश के लोगों के साथ हमारा चार दशक पुराना रिश्ता न केवल हमारे निर्माण कार्यों के बारे में है, बल्कि बरमाणा और दाड़लाघाट के समुदायों के कल्याण के बारे में भी है।

हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक संसाधनों से भरा राज्य है और बेहतर विकास का हकदार है। क्षेत्र के लोग सीमेंट के बेहतर दाम के हकदार हैं, लेकिन यह ट्रांसपोर्ट यूनियनों के सहयोग के बिना संभव नहीं है। उच्च परिवहन लागत के कारण पड़ोसी राज्यों की तुलना में हिमाचल के लोगों के लिए सीमेंट की कीमत बहुत अधिक है। इससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि स्थानीय परिवहन संघ अन्य ट्रांसपोर्टरों को प्रतिस्पर्धी दरों पर काम करने की अनुमति नहीं देते हैं। यह मुक्त बाजार भावना के खिलाफ है।

कंपनी की राय है कि वाहन के आकार, वहन क्षमता आदि के अनुसार मालभाड़े की दरों के लिए खुली निविदा प्रक्रिया होनी चाहिए। दूसरी तरफ ट्रक यूनियनें 2005 में अंबुजा के केस में हाईकोर्ट द्वारा रेट तय करने के लिए बनाई स्टैंडिंग कमेटी की दरें लेने को भी तैयार नहीं है। इस कमेटी की सिफारिशों को अगर देखें तो वर्तमान में सीमेंट ढुलाई का रेट 8.50 रुपए बनता है।

परिवहन विभाग के सचिव की अध्यक्षता में यह कमेटी बनाई गई थी, लेकिन इस कमेटी की सिफारिशों से भी ऊपर जाकर सीमेंट उद्योगों ने यूनियनों के साथ खुद मालभाड़ा बीच में तय किया है। सीमेंट उद्योगों की यही सबसे बड़ी गलती है और इसी वजह से राज्य सरकार भी सीधा हस्तक्षेप नहीं कर पा रही है।

बिलासपुर जिला में उपायुक्त द्वारा बुलाई गई बैठक बेनतीजा रही है और यह वार्ता का तीसरा दौर था। सोलन जिला की उपायुक्त बुधवार को यह बैठक करेगी। सबसे बड़ा सवाल यह है कि सीमेंट ढुलाई के जिस मालभाड़े के कारण एसीसी और अंबुजा में तालाबंदी हुई है, वैसी समस्या अल्ट्राटेक के सीमेंट उद्योग में क्यों नहीं हुई? अल्ट्राटेक ने जेपी से यह सीमेंट उद्योग खरीदा था, जो बागा और बघेरी में स्थित दो यूनिटों से चल रहा है।

अल्ट्राटेक से ही अब राज्य सरकार अपनी जरूरत का सीमेंट ले रही है। अल्ट्राटेक में इस वक्त ढुलाई की दरें पहाड़ी क्षेत्र के लिए 10.58 रुपए और मैदानी क्षेत्र के लिए 5.29 रुपए हैं। यह रेट 11.40 रुपए से थोड़ा कम है, जिस पर झगड़ा चल रहा है। सबसे बड़ी वजह यह है कि सीमेंट उद्योग में अब अडानी का एकाधिकार है और यह कंपनी भारी माल भाड़ा चुकाने को तैयार नहीं है।

अदाणी समूह ने एक बार फिर हिमाचल प्रदेश की ट्रक यूनियनों के अड़ियल रवैये को विवाद के लिए जिम्मेवार ठहराया है। क्षेत्र के लोगों को सीमेंट सस्ते दामों पर मिलना चाहिए, लेकिन यह ट्रांसपोर्ट यूनियनों के सहयोग के बिना संभव नहीं है। प्रदेश में ट्रांसपोर्ट की लागत अधिक होने से ही हिमाचल में सीमेंट की कीमत बहुत अधिक है।

बरमाणा और दाड़लाघाट सीमेंट संयंत्र लंबे समय से मौजूद हैं और इससे स्थानीय लोगों की आर्थिकी और राज्य के राजस्व में भी सुधार हुआ है। दोनों कंपनियां राज्य में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर सबसे बड़ी रोजगार प्रदाता हैं। परिवहन से संबधित विभिन्न अक्षमताओं के कारण समूह के दो सीमेंट संयंत्र बंद हो गए हैं। अदाणी समूह ने सीमेंट विवाद पर सरकार के नोटिस का मंगलवार तक कोई जवाब नहीं दिया है। उद्योग विभाग के माध्यम से कंपनी को सरकार ने हफ्ते बाद दूसरा नोटिस देने की तैयारी कर ली है।

सरकार और प्रशासन को विश्वास में लिए बिना कंपनी ने दोनों प्लांट शट डाउन किए हैं। इसके बाद से दाड़लाघाट और बरमाणा में ट्रक कारोबार से जुड़े लोगों और सीमेंट उद्योग से रोजगार जुटाए 30 हजार से अधिक लोगों के जीवन यापन का संकट खड़ा हो गया है।

उद्योग निदेशक ने गत 16 दिसंबर को एसीसी और अंबुजा प्रबंधन को नोटिस दिया था। राज्य के उद्योग निदेशक राके श प्रजापति ने कहा कि सरकार बुधवार को इस मामले पर विस्तार से चर्चा करके दूसरा नोटिस कंपनी को जारी करेगी।  स्पष्ट है कि भाजपा की सरकार के नहीं रहने की स्थिति में अडाणी कंपनी का  यह रवैया उस टकराव की कहानी बयां करती है, जिसकी जमीन राजनीति से जुड़ी है।

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