Breaking News in Hindi

फ्लू जैसे वायरसों के लिए वैक्सिन बनाने का काम

  • बीस किस्म के वायरसों के लिए एक ईलाज

  • चूहों पर किया गया प्रयोग सफल साबित हुआ

  • कोरोना वैक्सिन की तर्ज पर हो रहा विकसित

राष्ट्रीय खबर

रांचीः कोरोना महामारी से दुनिया में जो तबाही आयी थी, उसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। दुनियाभर के वैज्ञानिक भी ऐसे किसी खतरे के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। दूसरी तरफ जैविक हथियारों की चर्चा के बीच अब इस किस्म के वायरस हमले से बचाव के लिए युद्धस्तर पर काम हो रहा है। इसमें लोग खास तौर पर फ्लू जैसे किसी भी वायरस के इस वैश्विक प्रकोप से बचने के लिए वैक्सिन खोजने में जुट गये हैं।

इस दिशा में इसी एमआरएनए फ्लू वैक्सिन के बीस प्रकारों पर काम जारी है। इसका मकसद भविष्य में कभी भी दोबारा ऐसी चुनौती आने के पहले ही उसकी रोकथाम का उपाय कर लेना है। शोध दल इस बात पर काम कर रहा है कि कोई एक ऐसा वैक्सिन विकसित हो जो हर ऐसी प्रजाति के वायरस पर काम कर सके।  इसकी खोज का मकसद दोबारा दुनिया को कोरोना जैसी किसी महामारी के प्रकोप से बचाना है।

यूनिवर्सिटी ऑफ पेनिनसिल्वानिया में यह काम चल रहा है। इसके लिए सर्दी बुखार के जरिए संक्रमण फैलाने वाले सभी फ्लू वायरसों से बचाव का तरीका तलाशा जा रहा है। दरअसल कोरोना वायरस भी इसी फ्लू वायरस की ही एक प्रजाति है। जो किसी माध्यम से चमगादड़ों से इंसानों तक आ पहुंची थी। वैसे आज तक यह रहस्य ही बना हुआ है कि यह वायरस अचानक इंसानों के बीच कैसे फैलती चली गयी।

यूनिवर्सिटी के पेरेलमैन स्कूल ऑफ मेडिसीन में इस पर अभी काम चल रहा है। इस शोध के बारे में साइंस पत्रिका में एक प्रबंध प्रकाशित की गयी है। जिसमें बताया गया है कि इस प्रस्तावित विधि में भी कोरोना वैक्सिन के तौर तरीकों को भी इस्तेमाल किया जाएगा। जिस तरीके से कोरोना की वैक्सिन फाइजर और मॉर्डना ने बनायी है, उसी तर्ज पर इसे विकसित करने की कोशिश की जा रही है। इसमें एमआरएनए तकनीक का ही इस्तेमाल किया गया है।

जानवरों पर हुए प्रयोग से इस वैक्सिन के उत्साहजनक परिणाम मिले हैं, ऐसा दावा किया गया है। शोध दल के मुताबिक वैक्सिन के प्रभाव से इन पशुओं पर बीमारी के लक्षण कम हुए हैं। इसकी मदद से मौत के आंकड़े को भी बहुत कम करने में मदद मिली है। इस शोध दल के नेता और वहां के प्रोफसर डॉ स्कॉट हेंसली ने कहा कि इसे विकसित करने का मकसद भविष्य में फ्लू जैसी किसी महामारी के खिलाफ दुनिया को एक बचाव का रास्ता देना है।

इस काम में शोध दल ने पूर्व में हुए ऐसे वायरस हमलों के आंकड़ों को भी परखा है। वर्ष 1918-19 में भी यूरोप में स्पैनिश फ्लू का कहर बरपा था। इस काल में भी लाखों लोग इसकी चपेट में आकर मारे गये थे। यह फ्लू वायरस पक्षी, सुअर या किसी दूसरे जानवर से भी फैल सकता है। इसलिए सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह काम किया जा रहा है।

इस किस्म के सभी वायरसों के खिलाफ हर व्यक्ति के अंदर एक प्रतिरोधक शक्ति का विकास इस वैक्सिन के जरिए किया जा सकेगा।

वैसी स्थिति में वायरस की चपेट में आने के बाद भी आदमी गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़ेगा। शरीर में विकसित प्रतिरोधक शक्ति ही हर ऐसे वायरस से बचाव का काम करेगी। परीक्षण में हेमागग्लूटिनिन प्रोटिन पैदा कर वायरस के आचरण को समझने में मदद मिली है। इसमें इंफ्लूयेंजा के टाइप 1 और टाइप 2 के सभी वायरसों की रोकथाम का उपाय किया जा रहा है।

चूहों पर हुए प्रयोग से यह पाया गया है कि वैक्सिन लगने के बाद उनके शरीर में प्रतिरोधक क्षमता का विकास हुआ और यह स्तर करीब चार महीने तक शीर्ष पर बना रहा। यह सभी किस्म के फ्लू वायरसों पर असरदार भी पाया गया। लेकिन वैज्ञानिक अभी इसे और देख परख लेना चाहते हैं।

Leave A Reply

Your email address will not be published.