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वायरस का स्वरुप बदलने का क्रम जारी है
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पहले हार्ट पर असर डालने का पता चला था
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चालीस मिलियन आंकड़ों का विश्लेषण किया
राष्ट्रीय खबर
रांचीः वैश्विक महामारी कोविड ने दुनिया में अपना दीर्घकालीन प्रभाव छोड़ा है। जैसे जैसे इस संबंध में वैज्ञानिक शोध की गाड़ी आगे बढ़ रही है, वैसे वैसे इस बारे में नई जानकारियां सामने आ रही हैं। यूं तो इस महामारी ने पूरी दुनिया में लाखों लोगों को असमय ही मौत के मुंह में धकेल दिया है। इसके बाद भी लगातार भेष बदलते इस वायरस का असर होना अभी जारी है। इसके बीच वायरस ने कई बार अपना स्वरुप बदला है।
वैक्सिन की वजह से अब वह उतना खतरा पैदा नहीं कर पाया है। वैसे वायरस विशेषज्ञ मानते हैं कि वायरस की प्रकृति के मुताबिक यह कभी भी दोबारा स्वरुप बदलने के बाद फिर से मारक बन सकता है। ऐसा हर वायरस के साथ होता है तथा इसकी रोकथाम के लिए बनने वाली दवाइयों का असर भी घट जाता है। ऐसा हमलोग पहले भी मलेरिया और टीबी के मामले में देख चुके हैं, जिनके विषाणु अब पहले की दवाइयों से खत्म नहीं होते हैं।
कोविड के असर के बारे में पता चला है कि इसके प्रभाव से बाद में मरीजों को पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद भी हार्ट संबंधी परेशानियां हो रही है। एक प्रमुख उद्योगपति के सुबह साइकिल चलाते वक्त हुई मौत इसी प्रभाव का नमूना रहा है। अब बताया जा रहा है कि मधुमेह का असंतुलन भी इसके एक और देन है। इस बारे में बीएमसी मेडिसीन जर्नल में प्रकाशित एक लेख में विस्तार से इसके बारे में बताया गया है।
इसमें शोध दल ने पाया है कि कोविड के बाद मरीज को टाइप वन और टाइप टू दोनों किस्म के डायबेटिक्स का खतरा बढ़ जाता है। इस बारे में कई तरीके से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण कर लेने के बाद ही वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए दुनिया भर के करीब चालीस मिलियन आंकड़ों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है। यह शोध नौ चरणों में अलग अलग तरीके से किया गया था। शोध में अमेरिका के अलावा इंग्लैंड और जर्मनी के आंकड़े भी शामिल थे। सात परीक्षणों में सिर्फ वयस्कों को शामिल किया गया था।
जिन लोगों को कोरोना का संक्रमण हुआ था उनके अंदर मधुमेह की परेशानियां बढ़ी थी। इसमें उम्र की कोई सीमा नहीं थी क्योंकि कई अल्पवयस्क मरीजों को भी इस परेशानी से गुजरना पड़ा है। यह परेशानी एक वर्ष के भीतर विकसित हुई है, ऐसा पाया गया है। आंकड़ों के मुताबिक एक हजार में से पंद्रह लोगों को यह परेशानी अत्यधिक हुई है। शोधदल के मुताबिक इससे पहले इतने बड़े पैमाने पर कोई सर्वेक्षण नहीं किया गया था।
इसलिए आंकड़ों के विश्लेषण से जो नतीजा निकला है, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। कोविड का वायरस चले जाने के तीन महीने के भीतर यह गड़बड़ी बहुत अधिक हुई है और यह क्रम लगातार एक वर्ष तक जारी रहा है। वैसे मधुमेह के विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी भी वायरस के प्रभाव में आने के बाद खास तौर पर मरीजों में मधुमेह की परेशानियां अधिक हो जाती हैं।
ऐसा सिर्फ कोरोना के मरीजों के साथ ही नहीं हो रहा है। दूसरे वायरस से पीड़ितों में भी यह असर पहले भी देखा जा चुका है। विशेषज्ञों ने डाक्टरों को इस विषय पर अधिक ध्यान देने की बात कही है क्योंकि जिन मरीजों को कोरोना हो चुका है उनका ग्लूकोज स्तर उतार चढ़ाव के दौर में कायम पाया गया है।