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कई लोगों का व्यक्तित्व ही बदल गया कोरोना की वजह से

  • ऑनलाइन सर्वेक्षण का निष्कर्ष निकाला गया है

  • युवाओं पर इसका प्रतिकूल प्रभाव अधिक पड़ा

  • सहमति के गुणों में उल्लेखनीय कमी देखा

राष्ट्रीय खबर

रांचीः पूरी दुनिया पर कोरोना महामारी का कहर हर किसी को पता है। अब यह महामारी वैक्सिन और बुस्टर डोज की वजह से काफी नियंत्रण में है। इसके अलावा पहले दो चऱणों में पूरी दुनिया को हुए जान माल के नुकसान की वजह से जागरूकता भी बढ़ी है। इसके बाद भी कोविड के दीर्घकालिन प्रभावों पर शोध अभी जारी है। साथ ही वैज्ञानिक इस बात की भी कड़ी निगरानी कर रहे हैं कि कहीं यह वायरस फिर से कोई घातक स्वरुप ना धारण कर लें।

निरंतर जारी शोध से ही पता चला है कि इस कोरोना महामारी ने अनेक लोगों पर मानसिक प्रभाव भी छोड़ा है। इसकी वजह से कोरोना की चपेट में आने वालों के अलावा लगातार लॉकडाउन के दौरान घरों में कैद रहने का भी मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है। दूसरे शब्दों में कहें तो अनेक लोगों का व्यक्तित्व ही इस महामारी के दौरान पूरी तरह बदल गया है।

शोधकर्ता मानते हैं कि यही इसका अंत नहीं है। कोरोना के दीर्घकालीन प्रभावों को लॉंग कोविड के नाम से पुकारा जाने लगा है। इसी लॉंग कोविड के नये नये प्रभावों का आकलन करने का क्रम अब भी जारी है। इसके तहत यह स्पष्ट किया गया है कि जिन लोगों के मन की गहराई में इस महामारी का असर हुआ है, उनमें भले ही अभी कोई प्रभाव नहीं दिखे लेकिन यकीनी तौर पर यह नहीं कहा जा सकता है कि भविष्य में उनके अंदर भी बदलाव नजर नहीं आयेगा।

प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका पीएलओएस में इस बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की गयी है। इसमें खास तौर पर अमेरिका में हासिल किये गये आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। उसका नतीजा है कि मनोवैज्ञानिक तौर पर इसका कुप्रभाव कम उम्र के युवाओं पर अधिक दिखने लगा है। वहां के फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी की तरफ से एंजेलिना सुटिन ने यह रिपोर्ट पेश की है।

इसका निष्कर्ष यह है कि लगातार मानसिक दबाव में रहने की वजह से इंसानों में ऐसा बदलाव होता है। कोविड के दौरान हर कोई इसी दबाव से गुजरा है और अब जाकर उसके कुपरिणाम धीरे धीरे सामने आने लगे हैं। वैसे इस बात की जानकारी पहले भी थी कि अत्यधिक मानसिक दबाव अथवा चुनौतियों से जूझने के दौरान ऐसे बदलाव होते हैं। इससे पहले भूकंप अथवा चक्रवाती तूफान की चपेट में आने वालों पर भी ऐसा असर देखा गया है। लेकिन पहली बार पूरी दुनिया में एक साथ इस किस्म का बुरा प्रभाव कोरोना महामारी की वजह से ही दिखा है।

अमेरिका के शोध में 7109 लोगों से ऑनलाइन जानकारी मांगी गयी थी। इनलोगों से कई किस्म के प्रश्न पूछे गये थे। लोगों द्वारा दिये गये उत्तरों का विश्लेषण करने के बाद भी यह नतीजा निकला है कि लोगों का व्यक्तित्व बदल गया है। इस सर्वेक्षण में 18 से लेकर 109 वर्ष तक के लोग शामिल किये गये थे। अलग अलग कालखंड से जुड़े सवालों के उत्तर से यह स्पष्ट हो गया कि कैसे धीरे धीरे सामने वाले का व्यक्तित्व कोरोना की वजह से प्रभावित होता चला गया है।

शोध का निष्कर्ष है कि प्रारंभिक दौर में यह बदलाव बहुत ही कम था लेकिन समय बीतने के साथ साथ इसके लक्षण और प्रकट होते चले गये हैं। यह पाया गया है कि लोगों के व्यक्तित्व में औसतन दस प्रतिशत का बदलाव आया है जबकि अपवाद में वैसे लोग भी हैं, जिनमें यह बदलाव बहुत अधिक देखा गया है। युवाओं में उम्र बढ़ने का असर नजर आना कोई अच्छी बात नहीं है लेकिन कोरोना की वजह से ऐसा हुआ है और कम उम्र के युवाओं पर उम्र का असर भी दिखा है।

इसकी वजह से खास तौर पर युवाओं में एकता और सहमति की स्थिति बहुत कम हो गयी है। दूसरी तरफ अधिक उम्र के लोगों ने इस चुनौती को बेहतर तरीके से झेला है और उनमें यह बदलाव अपेक्षाकृत कम रहा है।

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