शह और मात के खेल में उलझ गया है भाजपा संगठन
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समय काट रहे हैं सभी बड़े नेता
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सोशल मीडिया पर आरोपों का दौर
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दिल्ली के फैसले पर टिकी है नजर
राष्ट्रीय खबर
रांचीः झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस अपने अपने संगठन को मजबूत करने के लिए जमीनी स्तर पर कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। इसके ठीक विपरित भारतीय जनता पार्टी में अजीब सन्नाटा पसरा हुआ है। अपवादों को छोड़ दें तो पार्टी के तमाम बड़े नेता बड़े कार्यक्रमों से दूरी बनाकर चल रहे हैं।
नियमित तौर पर कुछ न कुछ कार्यक्रम आयोजित कर कार्यकर्ताओं को व्यस्त रखने वाली पार्टी में फिलहाल अगले प्रदेश अध्यक्ष का ही शायद इंतजार हो रहा है। इसके बीच खेमाबंदी का असर भी सोशल मीडिया पर साफ झलक रहा है जबकि किसी खास नेता को निशाना बनाकर लगातार पोस्ट किये जा रहे हैं और कुछ परिचित चेहरे भी इस अभियान को हवा दे रहे हैं।
दरअसल पूर्व मुख्यमंत्री और उड़ीसा के पूर्व राज्यपाल रघुवर दास के पार्टी में लौटते ही यह चर्चा तेज हो गयी थी कि प्रदेश संगठन में फेरबदल होगा। इस चर्चा को रघुवर दास समर्थकों ने ही हवा दी थी और आगे बढ़कर यह भी दावा कर दिया गया था कि दरअसल रघुवर दास को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाने वाला है।
उसके बाद दिल्ली चुनाव की वजह से पार्टी में फेरबदल की चर्चा को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब दिल्ली में भी भाजपा की सरकार बन जाने की वजह से राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के नये चेहरे के साथ ही अनेक प्रदेशों में चेहरों के बदल जाने की चर्चा तेज हो गयी है।
झारखंड भाजपा की अभी यह स्थिति है कि विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद पार्टी अब तक संभल भी नहीं पायी है और पार्टी ने जो दावे किये थे, वे किसी भी स्तर पर पूरे नहीं हुए। खास तौर पर आदिवासी और महतो वोट के अचानक दूसरी तरफ खिसक जाने की वजह से भी पार्टी को चुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
अब खोयी जमीन को वापस पाने की सोच में क्या कुछ तय किया जाएगा, इस पर सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है। पार्टी के जानकार मानते हैं कि अगर सरकार गठन की नौबत आती तो भाजपा आलाकमान किसी नये चेहरे को अचानक से खड़ा कर देता। ठीक ऐसा ही मध्यप्रदेश, राजस्थान और हरियाणा के बाद अब दिल्ली में भी हुआ है। यानी शीर्ष नेतृत्व किसी कद्दावर नेता को नये सिरे से किसी प्रदेश में ताकतवर बनने की छूट नहीं देना चाहता। लिहाजा अब राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन में मोदी और शाह के मुकाबले संघ की कितनी चलेगी, यह देखने वाली बात होगी।
इसी समीकरण के आधार पर झारखंड का भाजपा संगठन भी परिवर्तन को देखेगा। इस संभावित फेरबदल को भाजपा के सभी खेमा के नेता अच्छी तरह समझ रहे हैं। इसलिए सभी ने मौके की नजाकत को भांपते हुए खुद की गति को धीमा कर लिया है। ऊपर से चुनाव के वक्त असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने जो तकनीक आजमायी थी, उसकी वजह से भी जमीनी स्तर पर संगठन के लोग अब स्थानीय नेताओं को अधिक तरजीह नहीं दे रहे हैं।