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संभल के मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में अपील स्वीकार

जिला अदालत की कार्यवाही पर रोक लगी

  • शांति और सद्भाव बनाये रखें दोनो पक्ष

  • बाकी याचिका उच्च न्यायालय में दर्ज करें

  • दावा है कि मंदिर तोड़कर बना है ढांचा

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के संभल की शाही जामा मस्जिद सर्वेक्षण विवाद के मामले शुक्रवार को जिला अदालत से कहा कि वह उच्च न्यायालय में सुनवाई होने तक कोई कार्यवाही न करें। इसके साथ ही याचिकाकर्ता शाही जामा मस्जिद समिति को इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने और राज्य सरकार को इलाके में शांति और सद्भाव बनाए रखने का निर्देश दिया।

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और संजय कुमार की पीठ ने उत्तर प्रदेश को उस क्षेत्र में शांति और सद्भाव बनाए रखने का निर्देश दिया, जहां भारी पथराव के दौरान चार प्रदर्शनकारियों की पिछले दिनों मृत्यु हो गई थी।  पीठ ने आदेश दिया कि यदि कोई पुनरीक्षण आवेदन दाखिल किया जाता है, तो उसे उच्च न्यायालय के समक्ष तीन दिनों के अंदर सुनवाई की जानी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने यह भी आदेश दिया कि अधिवक्ता आयुक्त की रिपोर्ट की सर्वेक्षण रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में रखी जाए। पीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा, हम नहीं चाहते कि इस बीच कुछ भी हो, उन्हें (शाही जामा मस्जिद समिति) उचित उपाय करने दें। हम इसे लंबित रखेंगे।

पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि यह आदेश (सर्वेक्षण करने का) जनता को बहुत नुकसान पहुंचा सकता है। उन्होंने कहा कि देश भर में 10 ऐसे मुकदमे लंबित हैं, जिनमें सर्वेक्षण कराने की मांग की गई है।  पीठ ने कहा, हमें उम्मीद है और भरोसा है कि ट्रायल कोर्ट कोई कार्यवाही नहीं करेगा…हमने गुण-दोष के आधार पर कोई राय नहीं दी है।

पीठ ने मामले को छह जनवरी से शुरू होने वाले सप्ताह में विचार के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। पीठ के समक्ष वादी हरि शंकर जैन और अन्य की ओर से पेश हुए अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा था कि सिविल जज (वरिष्ठ प्रभाग) के समक्ष सुनवाई की अगली तारीख आठ जनवरी तय की गई है।

पीठ ने संभल मामले में निर्देश देने से पहले शुरुआत में कहा कि उसे सिविल जज (वरिष्ठ प्रभाग) द्वारा 19 नवंबर को पारित आदेश पर कुछ आपत्तियां हैं।  शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार का पक्ष रख रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज से कहा कि जिला प्रशासन को तटस्थ रहना होगा और क्षेत्र में शांति बनाए रखनी होगी।

इसके अलावा शीर्ष अदालत ने वादी को कोई भी कागजात दाखिल न करने का निर्देश दिया। अदालत ने यह भी आदेश दिया कि अधिवक्ता आयुक्त की रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में रखा जाना चाहिए। याचिकाकर्ता समिति ने कम समय में आदेशित सर्वेक्षण की वैधता पर सवाल उठाया है और कहा कि इसी वजह से इलाके में हिंसा भड़क उठी और चार प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई।

याचिका में जल्दबाजी (सर्वेक्षण करने में) पर सवाल उठाया गया है, जिसमें सर्वेक्षण की अनुमति दी गई और एक दिन के भीतर ही सर्वेक्षण किया गया। अचानक दो दिनों के बाद बमुश्किल छह घंटे के नोटिस पर दूसरा सर्वेक्षण किया गया, जिसमें दावा किया गया कि इससे व्यापक सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ है और देश के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताने-बाने को खतरा है।

अधिवक्ता हरि शंकर जैन और अन्य द्वारा दायर एक मुकदमे पर सिविल जज (वरिष्ठ डिवीजन) ने सर्वेक्षण करने का आदेश पारित किया था। वादीगण के अनुसार, चंदौसी में शाही जामा मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह बाबर ने श्री हरिहर मंदिर को ध्वस्त कर 1526 में करवाया था।

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