चुनावी वेदर में वादों की बारिश हो रही है। चुनाव खत्म होने के साथ साथ यह चुनावी बादल भी छंट जाएंगे, यह पब्लिक पहले से ही जानती है। लेकिन फिर भी पंद्रह लाख नहीं मिले तो ना सही इस बार दोनों तरफ से पैसा देने का आश्वासन तो दिया जा रहे है। अब यह मत पूछ लीजिए कि यह पैसा आखिर आयेगा कहां से। जाहिर है कि आप ही की जेब से निकालकर हुजूर लोग एहसान जतायेंगे और बाद में कहेंगे कि इतने करोड़ लोगों का भला कर दिया है। अरे भाई कुछ करना ही था तो पहले से कर देते तो कमसे कम अभी हाथ जोड़कर दरवाजे दरवाजे भटकने की नौबत तो नहीं आती।
खैर कुछ भी हो अब छठ पर्व के बीत जाने के बाद चुनावी तापमान बढ़ने लगा है। लगातार जनसभा, पदयात्रा और प्रचार की गाड़ियों में गूंजते गीत, कुछ मिलाकर फिल्मी सीन जैसा माहौल बना हुआ है। उधर अमेरिका में भी अपने ट्रंप भइया चुनाव जीत गये हैं, उसकी अलग खुशी है। कमसे कम एक कोई तो जीता पर इस खुशी में लोग भूल गये कि वह चुनाव प्रचार में तमाम अप्रवासियों को, जो गलत तरीके से उनके देश में आ गये हैं, उन्हें निकालने का वादा कर आये है। इसके पहले भी ट्रंप भइया ने सार्वजनिक मंच से यह सवाल किया है कि जब भारत अपने यहां अमेरिकी उत्पादों पर अत्यधिक कर लगाता है तो अमेरिका में भी ठीक ऐसा ही किया जाना चाहिए। इसलिए ट्रंप वादशाह की ताजपोशी के बाद क्या होगा, उसे ठोंक ठांक कर समझ लीजिए। वह भारत नहीं अमेरिका है, जहां पूंजीवादी व्यवस्था है और अमेरिका के लिए अपना फायदा सबसे बड़ी बात है।
खैर देश लौट आते हैं। झारखंड और महाराष्ट्र में चुनावी माहौल चल रहा है जबकि बिहार और दिल्ली में माहौल बनाने का काम चल रहा है। नेता लोग जी जान से चुनाव प्रचार में जुटे हैं। इसके बीच ही बागियों के बिगड़े सुर भी सुनाई देने लगे हैं। पता नहीं कुर्सी क्या क्या कुकर्म करा देती है। नेताजी भी बड़े बेआबरू होकर निकल रहे हैं। उन्हें भी पता है कि चंद दिनों की ही बात है। उसके बाद तो यही पब्लिक उनके दरवाजे पर खड़ी मिलेगी।
जीत गये तो बल्ले बल्ले, अगली बार हार भी गये तो पेंशन पक्की है। इसी बात पर फिल्म ससुराल के इस गीत की याद आने लगी है। इस गीत को लिखा था हसरत जयपुरी ने और संगीत में ढाला था शंकर जयकिशन ने। इसे मुकेश ने अपना स्वर दिया था।
जाना तुम्हारे प्यार में शैतान बन गया हूँ
क्या क्या बनना चाहा था बेईमान बना गया हूँ
हम तो दीवाने है तेरे नाम के दिल लूटा बैठे है जिगर थाम के
इश्क़ ने हमको निक्कमा क्र दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के
कितना मैं गिर चूका हूँ कि नादान बन गया हूँ
अब तो बस पत्थरकी एक तस्वीर हूँ
या समझ लो एक बूत-ए-बे-पीर हूँ
अपने पैरो बंध गई जो प्यार में
ऐसी एक उलझी हुई ज़ंजीर हूँ
हालत को अपनी देख के हैरान बन गया हूँ
इसलिए शैतान, हैरान और नादान के बीच का यह झगड़ा तो चलता ही रहेगा। हमलोग चुनावी वादों की बारिश में से अपनी पसंद के ओले संभालकर फ्रीज में रख लें। चुनाव निपट जाने के दो चार महीने बाद यही सवाल नेताजी से किया जाएगा कि हुजूर आपके वादों का क्या हुआ। यह सवाल पूछते वक्त नेताजी के चेहरे से ध्यान मत हटाइयेगा। देखियेगा कैसे रंग बदलता है।सबसे बड़ा नेता जी यानी अपने मोदी जी ने महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी के बारे में कहा है कि इसमें तो चक्का और ब्रेक ही नहीं है। हर कोई सिर्फ स्टियरिंग पकड़ना चाहता है लेकिन मोदी जी की अपनी पार्टी में तो अनेक घोड़े पार्टी का अस्तबल छोड़कर बाहर निकल गये हैं और बतौर निर्दलीय मैदान में डट गये हैं। इनलोगों ने वोट काट दिया तो दोबारा सरकार बनाने की मंशा पर पानी फिर जाएगा। दूसरी खेमा में भी लगाम तोड़कर भागने वाले घोड़ों की कमी नहीं है। इसलिए वोट कटवा प्रत्याशी दोनों तरफ से खड़े हैं।
झारखंड की बात करें तो यहां लड़ाई साफ तौर पर हेमंत वनाम हिमंता की हो गयी है। दोनों मुख्यमंत्रियों के टक्कर में भाजपा के मंडल प्रमुखों की चांदी है। ऑफिस का खर्च चलाने के नाम पर माल मिल रहा है तो पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी चाय पानी मिलने लगा है। इसके बीच ही मईया और गोगो की लड़ाई में आम महिलाएं खुश है। कोई जीते इससे क्या अपने वादे के मुताबिक कुछ तो माल ढीला करेगा। इसलिए भाई साब, नदी के किनारे बैठकर बहती धारा का आनंद लीजिए और चुनावी नेताओं के अभिनय को सराहते रहिए। कोई एक तो जीत ही जाएगा।