चुनावी मौसम में जनता के प्रति नेताओं का इश्क और अपनी पार्टी के प्रति उनकी अपनी सोच का खुलासा होता रहता है। जनता के बीच हाथ जोड़कर घूमते नेताओं को देखना अजीब नहीं लगता क्योंकि हर पांच साल में यह सीन रिपीट होते रहने की वजह से इसकी आदत पड़ गयी है। उसी तरह टिकट कटने की स्थिति में दूसरी पार्टी में चले जाना भी अब जंग लगी तकनीक बन चुकी है। इतनी बार इसे देखा गया कि अब किसी के भी कहीं चले जाने पर अचरज नहीं होता क्योंकि कोरोना महामारी ने साबित कर दिया है कि आखिर सरकार में होने का असली फायदा कौन और कैसे उठाता है। महामारी के दौरान जब जनता ने पैसे देना बंद कर दिया था तो सभी सरकारों की सांसे फूलने लगी थी। तो निष्कर्ष यही है कि सारा ताम झाम जनता के पैसों से ऐश करने का है।
फिलहाल जम्मू कश्मीर और हरियाणा में चुनाव होने वाला है। दोनों ही राज्यों में हालात केंद्र सरकार के अनुकूल तो नजर नहीं आते और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व का करिश्मा भी चूकने लगा है। ऐसी हालत में सीट कैसी जीती जाए,यह सत्तारूढ़ दल के लिए कठिन चुनौती है। राज्यों का चुनाव जीतना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि दिल्ली में जो मिली जुली सरकार है, उसके दो पाये कभी भी खिसक सकते हैं तो टेंशन होना वाजिब है। हरियाणा में महिला पहलवान विनेश फोगाट का चुनावी मैदान में उतर जाना अकेले पहलवाली के लिए ही नहीं बल्कि पूरे खेल जगत की राजनीति के लिए भी बड़ा उलटफेर कर सकती है। कई स्तरों पर पीटी ऊषा और मेरी कॉम की भूमिका पर सवाल उठ चुके हैं। ऐसे में अगर वहां भी पहलवान ने पटखनी मार दी तो दूसरे राज्यों से भी ऐसी ही चुनौती मिलन लगेगी, इस बात की बहुत अधिक आशंका है। अपना मोटा भाई यह सोचकर परेशान हो रहे हैं कि बाकी खेल तो ठीक है पर क्रिकेट में बवाल हुआ तो उनके पुत्र का क्या होगा। श्रीमान अब बीसीसीआई छोड़कर आईसीसी प्रमुख की कुर्सी पर जा बैठे हैं। सरकार बदली तो भाई लोग कान पकड़कर उसे भी निकाल देने में वक्त नही गवांयेंगे।
इसी बात पर फिल्म ब्रह्मास्त्र का एक गीत याद आने लगा है। यह अरिजीत सिंह के सुपरहिट गीतों में से एक है। इसे लिखा था अमिताभ भट्टाचार्य ने और संगीत में ढाला था प्रीतम ने। आज के दौर के प्रसिद्ध गायक अरिजीत सिंह ने इसे स्वर दिया है। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।
मुझको…. इतना बताये कोई कैसे तुझसे…. दिल ना लगाए कोई
रब्बा ने तुझको बनाने में कर दी है हुस्न की खाली तिजोरियाँ
काजल की सियाही से लिखी है तूने जाने कितनो की लव स्टोरियाँ
केसरिया तेरा, इश्क है पिया रंग जाऊं जो मैं हाथ लगाऊँ
दिन बीते सारा, तेरी फिक्र में रैन सारी तेरी खैर मनाऊँ
केसरिया तेरा, इश्क है पिया रंग जाऊँ जो मैं हाथ लगाऊँ
दिन बीते सारा, तेरी फिक्र में रैन सारी तेरी खैर मनाऊँ
पतझड़ के मौसम में भी रंगी चनारो जैसी
झनके सन्नाटो में तू वीणा के तारों जैसी….
हम्म….सदियों से भी लम्बी ये मन की अमावसे है
और तू फुलझड़ियों वाले त्योहारों जैसी
चंदा भी दीवाना है तेरा जलती है तुझसे, सारी चकोरियाँ…..
काजल की सियाही से लिखी हैं तूने जाने
कितनो की लव स्टोरियाँ…..
केसरिया तेरा, इश्क है पिया रंग जाऊँ जो मैं हाथ लगाऊँ
दिन बीते सारा, तेरी फिक्र में रैन सारी तेरी खैर मनाऊँ
केसरिया तेरा, इश्क है पिया रंग जाऊँ जो मैं हाथ लगाऊँ
दिन बीते सारा, तेरी फिक्र में रैन सारी तेरी खैर मनाऊँ
केसरिया तेरा इश्क है पिया इश्क है पिया….
केसरिया तेरा इश्क है पिया इश्क है पिया….
पिया.. इश्क है पिया.. इश्क है पिया….
केसरिया…..तेरा…. इश्क है पिया…
रंग जाऊँ जो मैं…..हाथ लगाऊँ…..
इन चुनावों के पीछे पीछे महाराष्ट्र और झारखंड का चुनाव आ रहा है।
दोनों ही राज्यों में मोदी सरकार के लिए अच्छे संकेत नहीं मिल रहे हैं। चुनौतियां बढ़ी हुई है और टिकट बांटने में चूक हुई तो उलटफेर होना तय है। दोनों ही राज्यों का ऑपरेशन लोट्स कितना कामयाब होगा, इसकी परख भी होनी है। अगर फेल हो गये तो आगे यह दांव भी नहीं चलेगा। बिहार में सांझा गाड़ी चल तो रही है पर कितने दिनों तक चलेगी, यह नहीं कहा जा सकता है। जितने पुराने दांव थे, सब एक एक कर फेल हो रहे हैं। अब कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा क्योंकि अब तो अरविंद केजरीवाल भी जेल से बाहर आ चुके है। केंद्रीय एजेंसियों का जो खौफ बनाया गया था, वह जादू भी उतर चुका है। तो कौन किसके रंग में रंग जाता है, यह तो देखन वाली बात होगी।