बरसात में एक और ऑपरेशन लोट्स शायद फेल हो गया। वइसे इस खेल में शामिल मीडिया वाले अब चंपई सोरेन की अलग पार्टी बनाकर कोल्हान में झामुमो की सीट छीनने की बात कह रहे हैं पर अब लगता है कि दूध का उफान जा चुका है। अलबत्ता उनलोगों की शामत आने वाली है जो पर्दे के पीछे थे लेकिन घटनाक्रमों ने उनकी इसमें भूमिका को स्पष्ट कर दिया है।
जी हां मैं झारखंड की ही बात कर रहा हूं। लेकिन बात यही पर समाप्त नहीं होती है। दरअसल इसका दूसरा पहलु यह भी है कि पूरी सीन में झारखंड भाजपा के नेताओं की भागीदारी नहीं होने से भाजपा के अंदर का हाल भी उजागर हो गया है। यानी भाजपा के बड़े कद्दावर नेताओं के मुकाबले एक मीडिया का व्यक्ति कइसे हिमंता के करीब पहुंच गया, इस सवाल का उत्तर तलाशा जा रहा है। कुल मिलाकर खेल के सारे रहस्य उजागर हो गये क्योंकि एक नये प्रेस सलाहकार ने चंपई सोरेन को न घर का रहने दिया और न घाट का।
इसी बात पर एक पुरानी फिल्म का गीत याद आ रहा है। वर्ष 1949 में बनी ब्लैक एंड ह्वाइट फिल्म बरसात के इस गीत को लिखा था शैलेंद्र ने और संगीत में ढाला था शंकर जयकिशन ने। इसे लता मंगेशकर ने अपना स्वर दिया था।
तक धिना-धिन, धिना-धिन
तक धिना-धिन, धिना-धिन, तक धिना-धिन
बरसात में (तक धिना-धिन) बरसात में हमसे मिले तुम, सजन
तुमसे मिले हम बरसात में (तक धिना-धिन)
बरसात में हमसे मिले तुम, सजन तुमसे मिले हम बरसात में (तक धिना-धिन)
नैनों से झाँके जी मस्त जवानी मेरी मस्त जवानी
कहती फिरे दुनिया से दिल की कहानी मेरे दिल की कहानी
उनकी जो मैं उनसे कैसी शरम उनकी जो मैं उनसे कैसी शरम, कैसी शरम
बरसात में (तक धिना-धिन) बरसात में हमसे मिले तुम, सजन
तुमसे मिले हम बरसात में (तक धिना-धिन)
प्रीत ने सिंगार किया, मैं बनी दुल्हन मैं बनी दुल्हन
सपनों की रिमझिम में नाच उठा मन मेरा नाच उठा मन
आज मैं तुम्हारी हुई, तुम मेरे, सनम
आज मैं तुम्हारी हुई, तुम मेरे, सनम
तुम मेरे, सनम
बरसात में (तक धिना-धिन) बरसात में हमसे मिले तुम, सजन
तुमसे मिले हम बरसात में (तक धिना-धिन)
ये समाँ है, जा रहे हो, कैसे मनाऊँ? कैसे मनाऊँ?
ये समाँ है, जा रहे हो, कैसे मनाऊँ? कैसे मनाऊँ?
मैं तुम्हारी राह में ये नैन बिछाऊँ, नैन बिछाऊँ
जो ना आओ तुमको मेरी जान की क़सम
जान की क़सम
बरसात में… बरसात में हमसे मिले तुम, सजन
तुमसे मिले हम बरसात में
देर ना करना कहीं ये आस टूट जाए
साँस छूट जाए
देर ना करना कहीं ये आस टूट जाए साँस छूट जाए
तुम ना आओ दिल की लगी मुझको ही जलाए
ख़ाक़ में मिलाए
आग की लपटों में पुकारे ये मेरा ग़म
मिल ना सके, हाय, मिल ना सके हम
मिल ना सके, हाय, मिल ना सके हम
खैर चुनावी मौसम आ चुका है तो बरसात के मौसम में हरियाणा के दंगल की बात कर लें। विनेश फोगाट की वजह से हरियाणा में भाजपा को क्या नुकसान होगा, यह देखने वाली बात होगी। एक अकेले बृजभूषण सिंह के चक्कर में कितनी सीटों का नुकसान होगा, यह तो नरेंद्र मोदी और अमित शाह को देखना है। हमलोग तो तमाशबीन है और बिना टिकट के ही यह तमाशा देखेंगे। इसके बाद भी कभी की उड़नपरी पीटी उषा अब उस सम्मान के लायक नहीं रही जो उन्होंने अपनी दौड़ से हासिल किया था। कुर्सी पर बैठने के बाद से वह खिलाड़ियों का हित कम और अपनी कुर्सी सुरक्षित रखने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाती रही। दूसरी तरफ बृजभूषण का साथ देने का कोई खास लाभ तो यूपी के लोकसभा चुनाव में भी नहीं मिला। तो क्या समझा जाए कि अब बृजभूषण सिंह का भी राजनीतिक एक्सपायरी डेट करीब आ रहा है।
अब चलते चलते सेबी की भी बात कर लें तो बारिश के बीच ही हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बादल विस्फोट से माधवी बूच के साथ साथ कई लोग घायल हो चुके हैं, यह जगजाहिर है। राहुल गांधी ने मौके का फायदा उठाकर चौका लगाने में कोई चूक नहीं की है। वह कह चुके हैं कि इस पूरे मामले में जेपीसी की जांच नरेंद्र मोदी क्यों नहीं चाहते, इसका राज खुल चुका है। जनता के मन में उठ रहे सवालों से भागती सरकार की स्थिति शायद और बिगड़ रही है। दूसरी तरफ पहली बार ममता बनर्जी भी कोलकाता अस्पताल की दुखद घटना को लेकर परेशान है। चलते चलते अडाणी जी की बिजली बिल की भी चर्चा कर लें। बांग्लादेश से अडाणी जी को बकाया बिजली का पैसा कब और कैसे मिलेगा, यह बड़ा सवाल है। फिर भी देश में बिजली बेचने की छूट मिल चुकी है तो आगे शायद घाटा नहीं होगा।