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अस्तित्व बचाने के संकट से जूझ रहा मालदीव

भारत से बिगड़े रिश्तों के बीच जलवायु परिवर्तन की मार

मालेः जलवायु परिवर्तन के कारण मालदीव को अस्तित्व के संकट का सामना करना पड़ रहा है। समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण दशकों से देश पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। दरअसल सत्ता परिवर्तन के बाद इस छोटे से देश ने सीधे सीधे भारत से भी अपना रिश्ता बिगाड़ लिया है।

इस वजह से यहां के पर्यटन कारोबार पर इसका प्रतिकूल असर पड़ा है। मालदीव की कमाई का सबसे बड़ा स्रोत पर्यटन ही है। अब पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन की घटनाओं का प्रमाण मिलने के बाद मालदीव को अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यह छोटा द्वीप राष्ट्र मालदीव जलवायु परिवर्तन संकट से निपटने के लिए काम कर रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग में मालदीव का हिस्सा 0.003 प्रतिशत है। इसके बावजूद जलवायु संकट का सबसे पहला असर इसी देश पर पड़ता है। मालदीव अपने पर्यटन क्षेत्र के कारण एक विकासशील अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। पर्यटन क्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्रों की खराब हालत के कारण मालदीव भी दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है।

मालदीव के आर्थिक संस्थान जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को अपनाने में असमर्थ हैं। मालदीव का 99 प्रतिशत आर्थिक बुनियादी ढांचा पानी और 1 प्रतिशत ज़मीन है। अब किसी न किसी वजह से अगर समुद्री जलस्तर बढ़ा तो मालदीव के अनेक इलाकों को समुद्र में समाने से बचाने के लिए अतिरिक्त उपाय की आवश्यकता है और इसके लिए भी अतिरिक्त धन चाहिए।

मालदीव का मॉल न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क के आकार का है। लेकिन माले एक घनी आबादी वाला शहर है। इसीलिए हुलहुमाले नामक एक कृत्रिम द्वीप बनाया गया है। हिंद महासागर में स्थित यह द्वीप समुद्र तल से दो मीटर ऊपर है। कई जलवायु संवेदनशील विशेषताओं का श्रेय भी इस द्वीप को दिया जाता है। मालदीव के तट को भयानक लहरों से बचाने के लिए ऐसे द्वीप की आवश्यकता थी। हाल ही में रास माले नामक एक और परियोजना शुरू की गई है। हिंद महासागर का पहला इको-सिटी समुद्र तल से तीन मीटर ऊपर बनाया जा रहा है।

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