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दिल्ली शराब घोटाला पर ईडी की अग्निपरीक्षा

साफ शब्दों में कहें तो कानूनी परिभाषाओं में जकड़े इस दिल्ली के कथित शराब घोटाला में दरअसल घोटाला क्या हुआ है, यह जनता की समझ से बाहर है। आम तौर पर किसी भी घोटाले की जांच होने पर देश की आम जनता को जांच की उपलब्धियों से थोड़ी बहुत जानकारी मिल जाती है कि कहां से पैसा निकला और किसकी जेब में गया।

दिल्ली के इस घोटाले को सिर्फ जांच एजेंसियां और भाजपा ही समझ पा रही है। आम जनता अब तक यह समझने की कोशिश ही कर रही है कि दरअसल घोटाला हुआ तो वह पैसा किस रास्ते से गोवा जाकर खर्च किया गया। ईडी का दावा है कि साउथ लॉबी से यह पैसा लिया गया था और गोवा के विधानसभा चुनाव में इसे खर्च किया गया है।

यानी कमसे कम यह स्पष्ट है कि पैसे की कोई बरामदगी नहीं हुई है। निचली से लेकर उच्च अदालत तक ईडी की दलीलों को स्वीकार किया गया है। लेकिन अब आप सांसद संजय सिंह को जमानत मिलने से न केवल उनकी पार्टी बल्कि विपक्षी दल इंडिया को भी लोकसभा चुनाव से पहले राहत मिली है। दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उन्हें राहत देते हुए, सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने कहा कि उनके कब्जे से कोई पैसा बरामद नहीं हुआ था और इसका कोई निशान या सुराग नहीं था।

जमानत तब दी गई जब प्रवर्तन निदेशालय, जिसने पिछले साल अक्टूबर में सांसद को गिरफ्तार किया था, ने कहा कि उसे जमानत पर रिहा करने पर कोई आपत्ति नहीं है। हालाँकि, बेंच का यह दावा कि उसके फैसले को एक मिसाल के रूप में नहीं माना जाएगा, जेल में बंद अन्य आप नेताओं, जैसे कि अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की उम्मीदों पर पानी फेर सकता है।

फिर भी, आप और अन्य विपक्षी दल संजय के मामले में विकास को एक नैतिक जीत और अपनी घोषित स्थिति की पुष्टि के रूप में देख रहे हैं कि सत्तारूढ़ भाजपा राजनीतिक हिसाब-किताब बराबर करने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। ईडी, जिसकी कार्रवाई न्यायिक जांच के अधीन है, को उचित संदेह से परे संजय और अन्य आप नेताओं के अपराध को साबित करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक द्वारा की गई जांच से विपक्ष को सरकार पर हमला करने के लिए और अधिक मौका मिल गया है। इसमें पाया गया है कि 2014 के बाद से, जब भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए सत्ता में आया, कथित भ्रष्टाचार के लिए केंद्रीय एजेंसियों के रडार पर 25 प्रमुख राजनेता भगवा पार्टी के खेमे में चले गए हैं। इनमें 10 कांग्रेस के और बाकी क्षेत्रीय दलों के शामिल हैं। इनमें से 23 मामलों में, उनकी वफादारी बदलने के परिणामस्वरूप राहत मिली है।

ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग ने बड़े पैमाने पर ऐसे मामलों को बंद कर दिया है या उन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया है। चुनाव की पूर्वसंध्या पर दल-बदल का सिलसिला भी विपक्ष के दबाव और बदले में बदले के आरोपों को बल दे रहा है। इस मुद्दे पर अब मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर दोबारा पहुंच रहा है, जहां दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत पर सुनवाई होनी है।

जाहिर है कि यहां फिर से जांच एजेंसियों को अदालत के इस सवाल का सामना करना पड़ेगा कि आखिर पैसे के लेनदेन के सबूत कहां है। सिर्फ किसी सरकारी गवाहों के बयान पर खड़ा यह केस फिर से नई चुनौतियों का सामना करेगा क्योंकि अब तक वैसा कोई सबूत जनता के सामने नहीं आया है जो इस कथित लेनदेन को प्रमाणित करता हो।

कई तरीकों से इस शराब नीति के जरिए शराब निर्माताओं को फायदा पहुंचाने का आरोप सबसे पहले भाजपा की तरफ से लगाया गया था। इस आरोप के लगने के दौरान खुद भाजपा के लोग भी यह तय नहीं कर पाये थे कि यह कथित घोटाला आखिर कितनी रकम का है। अब सरकारी गवाह सरथ रेड्डी द्वारा भाजपा को चुनावी बॉंड के जरिए चंदा देने का सबूत सभी के सामने है। ऐसे में ईडी अथवा दूसरी जांच एजेंसियों को इस चंदा के बारे में भी अदालती सवाल का सामना करना पड़ सकता है।

लोकसभा चुनाव के पहले आम आदमी पार्टी का भाजपा पर राजनीतिक बदला साधने अथवा उनकी सरकार को जबरन गिराने के आरोप के बीच यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। जाहिर है कि अगर इस मामले में कोई नया सबूत नहीं पेश होता तो फिर से पीएमएलए कानून के दुरुपयोग की बात होगी। खुद इस कानून को बनाने की पहल करने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदांवरम भी कह चुके हैं कि उन्हें ऐसे गलत इस्तेमाल की उम्मीद कभी नहीं थी।

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