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पुरुलिया के अस्थि पहाड़ पर डायनासोर के अवशेष

आनंदमार्ग की टीम के दावों की पुष्टि नहीं हुई अब तक

राष्ट्रीय खबर

कोलकाताः पश्चिम बंगाल का विविधतापूर्ण पुरुलिया जिला। इस जिले में हर जगह कई ऐतिहासिक स्मारक बिखरे हुए हैं। इस बार पुरुलिया में हैरान कर देने वाली जानकारी मिली। जिससे हर तरफ हड़कंप मच गया। इसके बाद से कई सवाल खड़े हो गए हैं। झारखंड की सीमा से लगे छोटानागपुर पठार, पुरुलिया की अस्थि पहाड़ियों में प्रागैतिहासिक डायनासोर के जीवाश्म पाए गए हैं। इस क्षेत्र में डायनासोर की मौजूदगी का दावा आनंदमार्गियों ने किया है। तो लाल मिट्टी वाले इस जिले का क्या इतिहास है।

झालदा ब्लॉक नंबर दो की चितमुग्राम पंचायत के ताहेरबेड़ा गांव से सटे मरामू मौजा में करीब 200 फीट की ऊंचाई पर हड्डी पहाड़ी पर जीवाश्म बिखरे हुए हैं। जो एक बड़े सरीसृप विलुप्त डायनासोर की पूँछ प्रतीत होती है। यह दावा है आनंदमार्ग प्रचारक संघ का।

इस संबंध में आनंदमार्ग मुख्यालय के रेक्टर मास्टर आचार्य नारायणानंद ने कहा कि अस्ति पहाड़ में मिले जीवाश्म डायनासोर के जीवाश्म हैं। यह हिमयुग के बाद का जीवाश्म है। अस्थि पहाड़ से बरामद डायनासोर की पूंछ का जीवाश्म भाग कोलकाता के लेक गार्डन स्थित गुरुदेव आनंद मूर्तिजी के निवास मधुमालांच के संग्रहालय में रखा गया है। इस हड्डी पहाड़ी से कुछ और जीवाश्मों की खोज की गई है।

उदाहरण के लिए, पहले के साल के पेड़, बड़े जानवरों की कमर, बाघों का मुँह, शेरों के पैरों का निचला हिस्सा। साथ ही बहुत पुरानी ठोस चट्टान। चाँदी के साथ-साथ अभ्रक मिश्रित चट्टानें। और यही कारण है कि इस पहाड़ी को अस्थि पहाड़ कहा जाता है। हम चाहते हैं कि पहाड़ों में सभी जीवाश्मों का परीक्षण किया जाए, कार्बन मूल्यांकन किया जाए, अन्वेषण किया जाए, शोध किया जाए।

नहीं तो इतिहास का एक बड़ा हिस्सा मिट जाएगा। पुरुलिया जिला प्रशासन ने आनंदमार्गियों के इस दावे को खारिज नहीं किया। आनंदमार्ग की इस मांग के बाद पुरुलिया जिला प्रशासन ने अन्वेषण या अन्वेषण की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

पश्चिम बंगाल खनिज विकास और व्यापार निगम लिमिटेड ने शुरुआत में भारतीय सांख्यिकी संस्थान के जीवाश्म विज्ञान विशेषज्ञों से बात की। मेला ने बोन हिल से जीवाश्मों की तस्वीरें भेजीं। पुरुलिया जिला प्रशासन को इसके आधार पर रिपोर्ट भेजने को कहा गया है।

इस संबंध में पुरुलिया जिला आयुक्त रजत नंदा ने कहा, हम पहले से ही कदम उठा रहे हैं। उचित स्थान पर मामले की जानकारी दी जायेगी। बनमहल के इस जिले में सरीसृपों के इन जीवाश्मों पर लंबे समय से शोध चल रहा है।

भारतीय सांख्यिकी संस्थान के जीवाश्म विज्ञानी दामोदर नदी के किनारे संतुरी के मधुकुंड में पाए गए जीवाश्मों पर काम कर रहे हैं। इसलिए उभयचर से लेकर सरीसृप तक के जीवाश्मों का कायापलट हुआ। जो डायनासोर के समसामयिक है। इसकी कोई गारंटी नहीं है कि यह यहां नहीं मिलेगा।

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