विधानसभा में विश्वास मत में भी महागठबंधन का बोलबाला
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वीडियो से चार ज्यादा विधायक जुटे
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एक विधायक बीमार है तो नहीं आये
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हेमंत सोरेन ने फिर सबका ध्यान खींचा
राष्ट्रीय खबर
रांचीः मुख्य धारा के टीवी चैनलों को फिर से निराशा हाथ लगी क्योंकि झारखंड विधानसभा में सरकार ने बड़ी आसानी से विश्वासमत हासिल कर लिया। कई चैनलों और समाचार पत्रों ने झामुमो में फूट होने, कांग्रेस के विधायकों के नाराज होने जैसे कई समीकरणों का प्रचार किया था। यहां तक कि हेमंत सोरेन के अपने परिवार में फूट होने तथा नाराज विधायक लोबिन हेम्ब्रम के इस्तीफा देने का भी प्रचार किया गया था। विधानसभा में यह सारे बातें गलत साबित हुई।
राज्यपाल राधाकृष्णन द्वारा सत्ता पक्ष के नये नेता चंपई सोरेन को शपथ लेने का आमंत्रण नहीं देने की वजह से इस गुट के नेताओं ने आपस में ही गिनती करने का एक वीडियो बनाकर सार्वजनिक कर दिया था। उस वीडियो में 43 विधायक मौजूद थे। आज विधानसभा के अंदर जब विश्वास मत के लिए प्रस्ताव रखा गया तो इसके पक्ष में 47 वोट प्राप्त हुए जबकि विपक्ष में 29 वोट थे। झामुमो के रामदास सोरेन बीमार होने की वजह से अनुपस्थित रहे। सरयू राय सहित शेष ने खुद को इस मतदान में तटस्थ रखा।
वैसे इस बात की उम्मीद पहले से ही थी कि यह विश्वासमत सिर्फ औपचारिकता है क्योंकि नाराज बताये गये विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने कल ही रांची आकर अपनी बात साफ कर दी थी। आज विधानसभा के ठीक बाहर मीडिया ने सीता सोरेन को भी घेरकर उनके विवाद पर कुछ बुलवाने की पूरी कोशिश की पर विधायक सीता सोरेन ने भी उन्हें किसी नये विवाद को जन्म देने का मौका नहीं दिया।
सदन के भीतर चुनावी पलड़ा को भांपते हुए विपक्ष के नेता अमर कुमार बाउरी ने कांग्रेस को हर गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार ठहराया लेकिन उनकी बातों का सदन के अंदर कोई खास प्रभाव नहीं देखा गया। विधानसभा अध्यक्ष ने इस विश्वास मत के लिए सभी को हाथ उठाकर सार्वजनिक रूप से अपने समर्थन अथवा विरोध को दर्ज कराने की बात कही। सदन के कर्मचारियों ने इन सदस्यों की गिनती की और अध्यक्ष को प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में पड़े मतों की जानकारी दी।
दो दिवसीय सत्र के पहले दिन मीडिया का अधिक ध्यान ईडी की हिरासत में लाये जाने वाले हेमंत सोरेन पर थी। हेमंत सोरेन ने बड़े ही दमदार तरीके से अपनी बात सदन के भीतर रखी और वर्तमान मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के समर्थन का खुलकर एलान कर उस बुलबुले को फोड़ दिया, जिसे राष्ट्रीय मीडिया का एक बड़ा वर्ग लगातार उभारने की कोशिश कर रहा था। आज के इस विश्वास मत की वजह से अब यह साफ हो गया है कि अगले छह माह तक चंपई सोरेन की सरकार चलेगा और इसके बीच ही लोकसभा का चुनाव होगा। इसलिए जिस मकसद से हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया गया है, उस राजनीतिक मकसद को भाजपा शायद हासिल नहीं कर पायेगी। दूसरी तरफ इस गिरफ्तारी ने नाराज आदिवासी समुदाय के गुस्से का सामना भी भाजपा को चुनाव में करना पड़ सकता है।