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झामुमो के सवालों से घिरी ‘ ईडी की कार्रवाई’

प्रवर्तन निदेशालय ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सतर्क कर रखा है क्योंकि वह उनके और उनके करीबी सहयोगियों के खिलाफ आरोपों की जांच कर रहा है। आरोप आदिवासी भूमि हस्तांतरण और अवैध खनन से संबंधित हैं। पिछले सात समन के बाद भी श्री सोरेन ईडी के समक्ष उपस्थित नहीं हुए हैं।

अब जाकर उन्होंने सवाल लेकर आने की बात कही है। ईडी के अलावा भाजपा का प्रचार यह है कि उन्हें लोकसभा चुनाव से पहले अपनी गिरफ्तारी का डर है और वे भ्रष्टाचार के इन आरोपों को राजनीतिक लड़ाई में बदलने के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं। मुख्यमंत्री राज्य का दौरा कर रहे हैं और आपकी योजना, आपकी सरकार आपके द्वार, यानी, आपकी योजना, आपकी सरकार, आपके द्वार के नारे के साथ अपनी सरकार के कल्याणकारी उपायों के बारे में लोगों को एकजुट कर रहे हैं।

कुछ न्यायिक राहत पाने के उनके प्रयासों को बहुत सीमित सफलता मिली है। अगस्त में ईडी के पहले समन के बाद, श्री सोरेन ने इसकी वैधता पर सवाल उठाते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। अदालत ने उन्हें झारखंड उच्च न्यायालय में जाने का निर्देश दिया जिसने 13 अक्टूबर को उनकी याचिका खारिज कर दी और ईडी को अपनी जांच जारी रखने की अनुमति दे दी।

यह मामला 2020 और 2022 के बीच आदिवासी भूमि की खरीद और बिक्री से संबंधित है, जो कथित तौर पर ऐसे लेनदेन को प्रतिबंधित करने वाले कानूनों का उल्लंघन है। एक खनन पट्टा आवंटन मामले में, वह नवंबर 2022 में रांची में ईडी कार्यालय के सामने पेश हुए। उन पर खान विभाग का प्रभार संभालते हुए अपने, अपनी पत्नी और भाभी के लिए खनन पट्टे आवंटित करने का आरोप था।

उच्च न्यायालय ने हाल ही में उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिसमें इस मामले की केंद्रीय जांच ब्यूरो से जांच की मांग की गई थी। इन मामलों में कई अन्य लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई हुई है। भारतीय जनता पार्टी श्री सोरेन की संभावित गिरफ्तारी पर भरोसा कर रही है और राजनीतिक गर्मी बरकरार रख रही है। ईडी की जांच अक्सर भाजपा के लिए काफी सुविधाजनक साबित होती है।

पार्टी ने श्री सोरेन की गिरफ्तारी की स्थिति में उनकी जगह मुख्यमंत्री पद पर उनकी पत्नी कल्पना सोरेन की नियुक्ति की संभावना को खत्म करने के लिए एक अभियान शुरू किया है। सुश्री सोरेन ओडिशा में एक आदिवासी समुदाय से हैं, और वह झारखंड में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने के लिए पात्र नहीं हो सकती हैं।

1 जनवरी, 2024 को सामान्य सीट गांडेय से झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक सरफराज अहमद के अचानक इस्तीफे ने इन अटकलों को कुछ हद तक बल दिया है कि बढ़ती कानूनी परेशानियों के कारण सोरेन परिवार बदलाव की तैयारी कर रहे हैं। भाजपा ने राज्यपाल से कहा है कि किसी भी गैर विधायक को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की इजाजत न दी जाए।

इस बीच, 3 जनवरी को श्री सोरेन के आधिकारिक आवास पर झामुमो, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के विधायकों की एक बैठक में सर्वसम्मति से उन्हें पद पर बने रहने का आह्वान किया गया, चाहे मामला किसी भी तरह का हो। भ्रष्टाचार लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती है, लेकिन राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ चयनात्मक जांच भी कम नहीं है। एक तरफ के इन घटनाक्रमों के बाद अंततः झामुमो ने ईडी की तरफ वह तीर छोड़ा है, जिससे वह सदैव बचना चाहती है।

पश्चिम बंगाल में ईडी के अधिकारियों पर हमला के बाद ईडी को भी अब संभलकर चलना पड़ रहा है क्योंकि उसका भाजपा प्रेम अब उजागर होता जा रहा है। झामुमो प्रवक्त सुप्रियो भट्टाचार्य ने ईडी से जो सवाल किये हैं, वे जायज हैं कि आखिर किसी कार्रवाई में क्या हुआ उसकी जानकारी मीडिया तक किस माध्यम से पहुंचती है जबकि ईडी औपचारिक तौर पर इस बारे मे कोई जानकारी नहीं देती।

यह मुद्दा पहले भी उठा था जब मीडिया के लोग भी भाजपा सांसद निशिकांत दुबे से मिलने वाली सूचनाओं पर आश्रित हो गये थे। जाहिर है कि अंदर का कोई अधिकारी ही अपने आप को छिपाते हुए यह सूचनाएं बाहर पहुंचाता है। सिर्फ ईडी ही नहीं अन्य केंद्रीय एजेंसियों के बारे में भी यही सवाल प्रासंगिक है।

इसलिए पहली बार ईडी के सामने वह सवाल खड़े हो गये हैं, जिनका उत्तर उन्हें देना है क्योंकि आखिर उनकी भी कोई जिम्मेदारी बनती है। कानपुर अथवा उड़ीसा में आयकर की रेड हो, छत्तीसगढ़ में सीबीआई की रेड हो अथवा देश के कई हिस्सों में ईडी की रेड हो, इनकी जानकारी और तस्वीर मीडिया तक वही पहुंचा सकता है जो वहां मौजूद हो, यह स्थापित सत्य है। इसलिए अब अगर झामुमो ने ईडी की सूचनाएं पहले ही मीडिया तक पहुंचाने पर सवाल उठाया है तो यह अब ईडी की जिम्मेदारी बनती है कि वह इसका उत्तर दे। आखिर उनकी भी कोई जिम्मेदारी तो बनती ही है।

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