उत्तराखंड में एक सुरंग के धंस जाने क बाद अंदर फंसे मजदूरों को निकालने का अब तक का सारा दावा गलत साबित हुआ है। इस काम में अत्याधुनिक मशीन भी लगायी गयी थी, जो टूट गयी। अब ऊपर से छेद किया जा रहा है और बाद में मजदूरों द्वारा शेष पत्थर को खोदकर अंदर फंसे मजदूरों तक पहुंचने की बात कही गयी है।
इससे साफ हो गया है कि सड़क निर्माण के लिए वहां बन रहे सुरंग में ऐसा कोई हादसा होने पर विकल्प क्या होगा, इस पर कोई योजना पहले से नहीं थी। इसीलिए एक एक कर सारे प्रयास विफल होते चले गये हैं। अच्छी बात यह है कि किसी तरह इन मजदूरों तक जीने लायक साधन पहुंचे हैं और उन्हें पता है कि बाहर से उन्हें निकालने का प्रयास जारी है।
अभी की जानकारी के मुताबिक मैनुअल ड्रिल कल रात शुरू हुई। हालांकि इससे पहले वर्टिकल ड्रिल शुरू हो गई। उत्तरकाशी सुरंग बचाव कार्य में ऑगर मशीन खराब होने से दोनों तरफ फंसे मजदूरों को निकालने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। ध्यान रहे कि बरमा मशीन पिछले शनिवार को खराब हो गई थी।
इसके बाद बचावकर्मियों ने उत्तरकाशी में सुरंग से 41 श्रमिकों को बचाने के लिए वैकल्पिक रास्ता अपनाया। माइक्रो टनलिंग विशेषज्ञ क्रिस कुमार ने कहा, कल रात काम अच्छी गति से आगे बढ़ा। हम पहले ही 50 मीटर पार कर चुके हैं। अब हमें सिर्फ 5 से 6 मीटर ही जाना है। हमें कल रात कोई परेशानी नहीं हुई। पहाड़ी की चोटी से यह गड्ढा करीब 36 मीटर गहरा है
। यदि कार्य इसी गति से चलता रहा तो गुरुवार तक इसके पूर्ण होने की आशा है। लेकिन अगर आख़िर में देखा जाए तो बचाव कार्य इस तरह पूरा नहीं होता, तो? बताया जा रहा है कि तब ड्रिफ्ट तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। इस विधि में पत्थरों को काटकर आवश्यक आकार के अनुसार छोटी-छोटी सुरंगें बनाई जाती हैं।
ऐसे में 170 मीटर की दूरी तय करनी होगी। इस बीच पहाड़ों में ब्लास्टिंग तकनीक से सुरंग बनाने का काम चल रहा है। रोजाना तीन धमाके किए जा रहे हैं। इस तरह रेस्क्यू टीम को 483 मीटर की दूरी तय करनी पड़ी। इसके अलावा बरकोट के किनारे से लंबवत खुदाई कर मजदूरों तक पहुंचने का प्रयास किया जा सकता है। ऐसे में 24 मीटर खोदाई होनी चाहिए। इसके लिए फिर पांच किलोमीटर सड़क की जरूरत है। उस सड़क का निर्माण कार्य जोरों से चल रहा है। इस बीच ही मैनुअल ड्रिल चल रही है।
कुल 41 श्रमिक पिछले 15 दिनों से उत्तरकाशी सुरंग में फंसे हुए हैं। बचाव कार्य में हिमालय की विचित्रताओं के कारण, ड्रिलिंग कार्य बार-बार रुका है। शुक्रवार को एक बार फिर ड्रिलिंग के दौरान बचावकर्मियों को पहाड़ में एक धातु की वस्तु का सामना करना पड़ा। इससे ड्रिल मशीन बंद हो जाती है। ऐसा लगा कि बुधवार रात किसी भी समय फंसे हुए 41 श्रमिकों को निकालना संभव होगा।
इस बीच शनिवार को घोषणा कर दी गई कि अब ऑगर मशीनों की मदद से ड्रिलिंग नहीं की जाएगी। सिल्कियारा और डंडालगांव के बीच बनाई जा रही सुरंग 12 नवंबर को सुबह-सुबह ढह गई। यह पूरी सुरंग साढ़े चार किलोमीटर लंबी बताई जाती है। इनमें सुबह 4 बजे तक भूस्खलन ने 150 मीटर लंबे इलाके को अपनी चपेट में ले लिया।
मालूम हो कि सुरंग के सामने से लेकर अंदर की ओर करीब 150 मीटर जमीन धंस गई थी। यानी सुरंग की छत ढह जाती है। उसी में मजदूर फंस गए। यह यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग चारधाम सड़क परियोजना का हिस्सा है। यह सड़क सभी प्रकार की प्रतिकूल मौसम स्थितियों में पूरे वर्ष चालू रहेगी। यदि यह सड़क बन जाती है तो उत्तरकाशी और यमुनोत्री के बीच की दूरी 26 किमी कम हो जाएगी।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी सहित अन्य लोग तरह-तरह के बहाने दे रहे हैं, लेकिन बचाव अभियान में दो सप्ताह तक चली इस विफलता एक भयानक अमानवीय चूक है। इसलिए चंद्रयान की सफलता, विश्वगुरु, पांचवी अर्थव्यवस्था के तमाम दावों के बीच हम धरातल पर कहां खड़े हैं, यह साफ हो चुका है।
सरकार अपने ही देश में अपने ही नागरिकों की जान बचाने में बुरी तरह असमर्थ हैं। भले ही कार्यकर्ताओं को आख़िरकार खदेड़ा जा सके, लेकिन इन कुछ दिनों में जो भारी कमज़ोरी और अक्षमता सामने आई है, वह माफ़ी से परे है। गलतियाँ हुई हैं, कई स्तरों पर हो रही हैं।
जैसे ही मौजूदा संकट की खबर आई है, हिमाचल प्रदेश के कुछ नेता यह जानने के लिए दौड़ पड़े हैं कि हिमाचल प्रदेश के शिमला और सोलन क्षेत्रों में सुरंग निर्माण कार्य कैसे चल रहा है। साफ है कि बयानवीरों के बयान के अलावा असली काम में सुरक्षा के विकल्प को नजरअंदाज किया गया है, इसकी जिम्मेदारी किसकी है, यह सवाल मजदूरों के सुरक्षित निकल जाने के बाद का है।