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ईडी का राजनीतिक उपयोग अधिक

आम तौर पर चुनाव के वक्त इस किस्म की छापामारी पहले सिर्फ आयकर विभाग किया करती थी ताकि चुनाव में इस्तेमाल होने वाले काला धन को पकड़ा जा सके। अब ईडी द्वारा एक साथ कई राज्यों में इस किस्म की छापामारी की जा रही है। जहां तक पश्चिम बंगाल के मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक की गिरफ्तारी का सवाल है तो उनसे जुड़ी संपत्ति का खुलासा ईडी के द्वारा अनधिकृत तौर पर किया जा रहा है।

आम लोग भी इनमें से कई संपत्ति के बारे में जानते हैं। इसलिए इस छापामारी को सिर्फ राजनीतिक बदला नहीं करार दिया जा सकता। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में मनीष सिसोदिया की जमानत रद्द होने के बाद भी जनता की नजरों में मनीष सिसोदिया के पास से जब्त रकम शून्य है। सिर्फ अदालत ने ऐसा पाया है कि पैसे का एक रास्ता मनीष सिसोदिया के माध्यम से होकर गुजरा है। फिर भी अदालत ने अगले छह महीनों में यह जांच पूरी करने की बात कही है।

जो यह साबित करेगी कि वाकई ऐसा कोई घोटाला हुआ भी था या नहीं। इसी मामले में आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह भी इनदिनों जेल में बंद हैं। उधर राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, मौजूदा विधानसभा सदस्य (एमएलए) और नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में सीकर के लक्ष्मणगढ़ से पार्टी के उम्मीदवार गोविंद सिंह डोटासरा और निर्दलीय विधायक ओम प्रकाश हुडला के परिसरों की तलाशी ली गई, जिन्हें मैदान में उतारा गया है।

इस बार महुआ से कांग्रेस ने एक बार फिर केंद्रीय एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पर ध्यान केंद्रित किया है, जिस पर विपक्षी नेताओं को चुनिंदा तरीके से निशाना बनाने का आरोप है। ईडी की मनी-लॉन्ड्रिंग जांच वरिष्ठ शिक्षक ग्रेड II प्रतियोगी परीक्षा (2022) के सामान्य ज्ञान के पेपर के कथित लीक की जांच के लिए राजस्थान पुलिस द्वारा स्थापित मामलों पर आधारित है, जिसे राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा रद्द और पुनर्निर्धारित किया गया था।

ईडी ने कथित विदेशी मुद्रा उल्लंघन मामले में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को भी तलब किया है। राजस्थान में आमतौर पर मौजूदा सरकारें सत्ता से बाहर हो जाती हैं, लेकिन श्रीमान।।। इस बार कई नई कल्याणकारी योजनाओं और प्रचार अभियान के जरिए गहलोत ने उस धारणा को प्रभावी ढंग से चुनौती दी है। कांग्रेस में गुटबाजी पर काबू पा लिया गया है और श्रीमान।।। गहलोत और पार्टी सहयोगी सचिन पायलट एकजुट हैं।

दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी अपने खेमे में बढ़ती खींचतान से जूझ रही है। कांग्रेस ने चुनावी राज्य में ईडी की कार्रवाई को बीजेपी की हताशा का संकेत बताया है। भाजपा का यह दावा कि ईडी की सभी कार्रवाइयां पूरी तरह से भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिए हैं, केवल तभी अंकित मूल्य पर लिया जा सकता था यदि वे समतापूर्ण और निष्पक्ष होते। ईडी की कार्रवाई और निष्क्रियता का पैटर्न ऐसे किसी भी अनुमान की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता है।

राजनीतिक भ्रष्टाचार को आगे बढ़ाने में ईडी का उत्साह उतार-चढ़ाव वाला है। यह भी बहुत बड़ा संयोग है कि ईडी को केवल विपक्ष शासित राज्यों और भाजपा के विरोधी नेताओं पर ही भ्रष्टाचार का संदेह है। बहुत कम लोग इस तर्क को स्वीकार करेंगे, अगर भाजपा या ईडी ऐसा कोई तर्क दे रही है कि पार्टी या उसके नेताओं द्वारा शासित राज्यों में कोई भ्रष्टाचार नहीं है। हाल के वर्षों में निर्वाचित प्रतिनिधियों के बड़े पैमाने पर दलबदल से भाजपा एकमात्र लाभार्थी रही है। कोई भी यह तर्क नहीं दे सकता कि एजेंसियों को अपना काम नहीं करना चाहिए और कानून लागू नहीं करना चाहिए।

लेकिन जब राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कानून के शासन को हथियार बनाया जाता है तो शासन और लोकतंत्र दोनों कमजोर हो जाते हैं, जब चुनाव के बीच में राजनीतिक खिलाड़ियों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है, तो यह संभावित रूप से तराजू को झुका सकता है। भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए मौजूदा कानूनी व्यवस्था – और उस मामले में आतंकवाद के खिलाफ भी – तेजी से उन लोगों की मनमानी नजरबंदी में बदल रही है जो सत्तारूढ़ दल के लिए असुविधाजनक हैं।

इसे ख़त्म करने की ज़रूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने भी पीएमएलए कानून के तहत होने वाली गिरफ्तारी पर विचार करने की बात कही है। इससे साफ है कि अब भारतीय समाज भी ईडी की इन कार्रवाइयों को लेकर संदेह भरी नजरों से केंद्र सरकार को देखने लगी है। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि खुद मोदी की नजरों में जो भ्रष्टाचारी लोग थे, वे भाजपा की वाशिंग मशीन से गुजरने के बाद पाक साफ कैसे हो गये, यह बड़ा सवाल अब जनता के बीच है। सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण होता जा रहा है क्योंकि अडाणी पर उठ रहे प्रश्नों का कोई संतोषजनक उत्तर ना तो सरकार और ना भाजपा दे पा रही है। जाहिर है कि आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में इसका कुछ तो असर हमें देखने को मिलेगा।

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