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झामुमो की जीत पर आजसू की चुनौती

  • भाजपा के सारे नेताओँ की आलोचना

  • कोरोना काल में भी सक्रिय थे सुदेश

  • रघुवर दास के काल में बिगड़े रिश्ते

राष्ट्रीय खबर

रांचीः डुमरी विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव में राज्य की मंत्री बेबी देवी ने जीत दर्ज कर ली है। उन्हें कुल 100317 वोट मिले और उन्होंने आजसू प्रत्याशी यशोदा देवी से 17153 वोट अधिक हासिल किये। यह कहा जा सकता है कि यह चुनाव हर चक्र की गिनती के साथ ही उतार चढ़ाव वाला बना रहा।

बीच में आजसू प्रत्याशी ने काफी बढ़त भी बना ली थी लेकिन बाद के दौर में वह इस बढ़त को कायम नहीं रख पायी। इस चुनाव परिणाम ने एक नहीं दो संकेत साफ कर दिये हैं। इनमें से एक का उल्लेख झामुमो के नेताओं ने अपने बयान में भी किया है। झामुमो नेताओँ ने कहा है कि भाजपा के तीन पूर्व मुख्यमंत्री और आजसू का एक पूर्व उप मुख्यमंत्री भी एनडीए प्रत्याशी की जीत में कोई भूमिका निभा नहीं पाया। लेकिन इसके साथ जो मुद्दा जुड़ा है वह स्वर्गीय जगरनाथ महतो की स्थानीय स्तर पर कायम लोकप्रियता की रही है।

जमीन पर जबर्दस्त तरीके से पकड़ रखने वाले जगरनाथ महतो के निधन के बाद आम मानसिकता उन्हें श्रद्धांजलि देने के बहाने उनके परिवार को समर्थन देने की होती है, यह भी जगजाहिर बात है। इसलिए बेबी देवी की जीत में स्वर्गीय जगरनाथ महतो की लोकप्रियता की भी भूमिका रही है। अगले चुनाव में यह सोच शायद काम नहीं कर पायेगी। इसके बाद से नवनिर्वाचित विधायक को अपने बलबूते पर अपनी जमीन बनाने की जरूरत कहीं न कहीं हेमंत सोरेन की भी एक भावी चुनौती के भंवर में डालने जा रही है।

अब दूसरी तरफ की बात करें तो आजसू प्रमुख सुदेश महतो ने यह साबित कर दिया है कि कोरोना काल से ही चुपचाप अपने संगठन को मजबूत करने की दिशा में काम करने का परिणाम अब सामने आने लगा है। इस बात को लेकर बहस की कोई गुंजाइश नहीं है कि वह एकमात्र नेता रहे, जिन्होंने कोरोना लॉकडाउन के दौरान भी लगातार अपने संगठन को मजबूत करने की दिशा में काम किया।

डुमरी का चुनाव भी इसी प्रयास का एक छोटा सा नतीजा है। इसलिए आने वाले दिनों की चुनावी राजनीति पर आकलन करें तो यह स्पष्ट होता जा रहा है कि किसी भी दल के लिए आजसू का निरंतर बढ़ता संगठन एक बड़ी चुनौती बनकर उभर सकता है।
सुदेश महतो की कार्यशैली पर गौर करें तो बसपा नेता स्वर्गीय कांसी राम की बात याद आती है। उन्होंने अपने संगठन को मजबूत करने की दिशा में अपने समर्थकों को यह मंत्र दिया था कि पहले हारो, फिर हराओ तब जीतो। इसका राजनीतिक निहितार्थ बहुत स्पष्ट है। यूपी के घोसी उपचुनाव में मायावती का चुप्पी साध लेना भी इसका एक नमूना भर है। इसलिए यह तय माना जाना चाहिए कि आने वाले दिनों में सुदेश महतो किसी भी राजनीतिक गठबंधन, चाहे वह एनडीए हो अथवा इंडिया हो, सभी के बीच एक नई ताकत के साथ उभरते चले जा रहे हैं।

इसके बीच सुदेश महतो अपने ही राजनीतिक गठबंधन यानी एनडीए के शीर्ष नेतृत्व को भी यह संदेश देने में कामयाब रहे हैं कि भाजपा के कई कद्दावर नेताओँ के मुकाबले जमीनी स्तर पर उनकी पकड़ मजबूत है। दरअसल रघुवर दास के शासनकाल में भी सुदेश महतो के साथ रघुवर दास के रिश्ते इतने कड़वे हो चुके थे कि आम तौर पर सुदेश भाजपा के रघुवर दास समर्थ गुट से दूरी बनाकर चलते हैं। पिछले चुनाव के दौरान भी उन्होंने सीटों का फैसला दिल्ली जाकर किया था। इससे साफ है कि राज्य के युवा नेताओं में हेमंत सोरेन के लिए अब सुदेश महतो एक बड़ी चुनौती बनकर उभर रहे हैं।

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