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पूर्व सरकार के सिवरेज परियोजना से भ्रष्टाचार की बदबू

  • रघुवर दास सरकार में मेनहर्ट पर सवाल

  • कंपनी के दोनों हस्ताक्षर फर्जी पाये गये

  • पूर्व सांसद पोद्दार ने पहले ही शिकायत की थी

राष्ट्रीय खबर

रांची: प्रधान महालेखाकार (लेखापरीक्षा), झारखंड के कार्यालय ने पूर्ववर्ती रघुबर दास सरकार और राज्य की पिछली सरकारों के दौरान रांची नगर निगम (आरएमसी) के तहत दो प्रमुख विकास परियोजनाओं में वित्तीय विसंगतियों की ओर इशारा किया है। 31 मार्च, 2021 को समाप्त वर्ष के लिए प्रदर्शन और अनुपालन ऑडिट पर भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में रांची में सीवरेज और जल निकासी प्रणाली के प्रबंधन, कायाकल्प पर अनुपालन ऑडिट पर अपने ऑडिट में आपत्तिजनक वित्तीय लेनदेन पाया गया है और हरमू नदी का संरक्षण में भी गड़बड़ी की बात कही है। वरिष्ठ उप महालेखाकार अजय कुमार ने कहा, विसंगतियों को विधिवत राज्य सरकार के ध्यान में लाया गया है, जिसने इस पर गौर करने का वादा किया है।

वैसे याद दिला दें कि रघुवर दास सरकार के होने के दौरान ही पूर्व राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने इस गड़बड़ी की तरफ सरकार का ध्यान आकृष्ट किया था। उन्होंने तत्कालीन मुख्य सचिव सुधीर त्रिपाठी को इस बारे में पत्र भी लिखा था। अब सीएजी की तरफ से कुमार ने कहा कि झारखंड में 10 शहरी स्थानीय निकायों (आरएमसी) के पिछले वित्तीय वर्ष में ऑडिट के दौरान, सीएजी ने विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) में विसंगतियों को देखा, जो एक बार 2005 में और फिर 2007 और 2014 के बीच तैयार की गई थी, जहां एक निजी कंपनी मेनहर्ट नामक कंपनी ने परियोजना के पहले चरण के लिए एक सर्वेक्षण किया था।

सर्वेक्षण के लिए मेनहार्ट को 16 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था, लेकिन इसका सर्वेक्षण बिंदु परियोजना के पहले चरण के लिए किए गए बाद के सर्वेक्षण से मेल नहीं खाता है। चरण की निविदा दो बार की गई थी और दोनों बार हमने हस्ताक्षर को फर्जी पाया।  आरएमसी ने सीवेज पंपिंग स्टेशन के लिए 4.2 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान किया (75.40 लाख रुपये के निर्धारित मानदंडों के स्थान पर) तूफान जल निकासी प्रणालियों के आंशिक निष्पादन में 48 करोड़ रुपये बर्बाद किए।

महालेखाकार के सचिव चंपक रॉय ने दावा किया कि सरकार ने 2014 में 100 करोड़ रुपये के अगले खर्च पर हरमू नदी के संरक्षण और पुनर्जीवन का काम शुरू किया था, लेकिन केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय नदी संरक्षण के तहत केंद्रीय निधि मांगने की मंजूरी को ठुकरा दिया था। सीवरेज नेटवर्क को मूल रूप से प्रति दिन 22.15 मिलियन लीटर सीवेज को चैनलाइज करने के लिए डिज़ाइन किया गया था, जबकि इसकी योजना प्रति दिन 47.12 मिलियन लीटर सीवेज को चैनलाइज करने की थी।

परियोजना को नदी के कुल जलग्रहण क्षेत्र 22.59 वर्ग किमी के मुकाबले 8.49 वर्ग किमी के कम जलग्रहण क्षेत्र के आधार पर भी डिजाइन किया गया था। अधिकारियों ने आठ एसटीपी की स्वीकृत क्षमता के मुकाबले सात सीवरेज ट्रिटमेंट संयंत्र भी स्थापित किए। ये एसटीपी प्रतिदिन केवल 2.89 एमएलडी कचरे का उपचार कर रहे हैं। कैग ने कायाकल्प परियोजना को विफल करार देते हुए कहा कि विभाग अनुमानित 6 लाख रुपये प्रति वर्ष के बजाय 33 लाख रुपये प्रति वर्ष के बढ़े हुए बिजली बिल का भुगतान कर रहा है।

पूर्व राज्यसभा सदस्य महेश पोद्दार ने पहले ही कहा था कि रांची शहर के लिए सीवरेज-ड्रेनेज परियोजना 2006 में शुरू हुई थी। सिंगापुर की मैनहर्ट कंपनी ने डिजाईन और डीपीआर तैयार किया था। 12 साल बाद भी पुरानी डिजाईन और डीपीआर के आधार पर ही टेंडर हो गया और परियोजना का क्रियान्वयन हो रहा है। इसकी प्राक्कलित राशि 359 करोड़ रुपये है।

लेकिन अब कन्फर्मेटरी सर्वे के साथ नए तथ्य और डाटा जुड़ रहे हैं, उसके हिसाब से ही राशि में भी परिवर्तन हो रहा है। हालत यह है कि परियोजना के क्रियान्वयन में लगी पूरी टीम में से संभवतः किसी को नहीं पता कि इस परियोजना पर कुल कितनी राशि खर्च होगी। पहले सीवरेज लाइन की कुल लम्बाई 192 किलोमीटर थी जो अबतक बढ़कर 280 किलोमीटर हो चुकी है। परियोजना कहने को तो सीवरेज–ड्रेनेज से सम्बंधित है लेकिन काम केवल सीवरेज का ही हो रहा है। मात्र 3.5 किलोमीटर लम्बे ड्रेनेज का ही निर्माण हो रहा है।

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