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चुनाव से पहले सांप्रदायिकता का पुराना खेल

हरियाणा में सांप्रदायिक तनाव और लोगों की हत्या के परस्पर विरोधी दावे हो रहे हैं। इसके बीच ही दो कुख्यात नामों का सार्वजनिक हो जाना यह संकेत देता है कि इन अपराधों के पीछे कोई सोची समझी साजिश भी हो सकती है। यह कोई नया दांव नहीं है बल्कि कई बार देश ने इस दांव का परीक्षण देखा है।

इसलिए पहली बार ऐसा हो रहा है कि जनता इस बुखार से बहुत जल्दी मुक्ति पा गयी है। फिर भी यह सोचने का विषय है कि हिंदू कार्ड खेलने के लिए भाजपा अब कैसे चेहरों को आगे कर रही है। यानी भाजपा की नजरों में हिंदू समाज की अगुवाई करने वाले फरार अपराधी हैं तो क्या इसे देशहित में स्वीकारा जा सकता है।

नूह का सांप्रदायिक अंधकार फिलहाल शांत लग सकता है, लेकिन आगे क्या होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सरकारों को यह तय करना होगा कि किसी भी नफरत भरे भाषण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। माहौल उत्तेजित नहीं होना चाहिए। यह निर्देश तो शायद टीवी चैनलों को अधिक प्रभावित करेगा।

अतिरिक्त सुरक्षा बलों को तैनात करना होगा क्योंकि हिंसा की कोई संभावना नहीं है। शांति और सद्भाव कायम रहना चाहिए। ये जिम्मेदारी हरियाणा, दिल्ली, यूपी और केंद्र सरकार पर तय है। अदालत ने जुलूसों, रैलियों, प्रदर्शनों आदि की वीडियोग्राफी और रिकॉर्डिंग का भी आदेश दिया। फिलहाल सुनवाई चल रही है।

नूंह हिंसा के पूरे प्रकरण में कथित गौरक्षकों मोनू मानेसर और बिट्टू बजरंगी को खलनायक के रूप में चित्रित किया गया था। क्या सिर्फ दो हिंदुत्व चेहरों की वजह से हरियाणा का एक संवेदनशील इलाका हिंसा और दंगों की चपेट में आ गया? क्या साम्प्रदायिक संघर्ष के हालात पैदा किये गये थे? छह निर्दोष लोग मारे गए और 70 से अधिक घायल हो गए।

जिला अदालत की अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अंजलि जैन को अपनी तीन साल की बेटी के साथ घंटों तक वर्कशॉप में छिपना पड़ा। उनकी कार पर 100 से ज्यादा दंगाइयों ने पथराव करते हुए हमला किया था। एक जज सांप्रदायिक हो गया है? क्या मनु-बिट्टू के भड़काऊ वीडियो की वजह से हुआ है ये हमला? अब नूह के प्रवासी मजदूर भी पलायन करने लगे हैं। इनमें कई मुसलमान भी हैं। गुरुग्राम के पास एक गुरुकुल पर दो बार हमले की कोशिश की गई।

उन गुमनाम ग्रामीणों को बहुत-बहुत धन्यवाद जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर गुरुकुल को विनाश से बचाया। निर्दोष दुकानदारों और व्यापारियों को लूटा गया, उनके प्रतिष्ठान जलाकर राख कर दिए गए, करोड़ों रुपये की संपत्ति नष्ट कर दी गई और कुछ व्यापारियों को मारकर सड़क के किनारे फेंक दिया गया।

क्या मनु और बिट्टू की वजह से बन सकती है ऐसी स्थिति? कौन हैं ये दो चेहरे।।।? उनके खिलाफ हरियाणा में भी आपराधिक मामला दर्ज है, फिर भी उन्हें जमातर की तरह सुरक्षा क्यों दी जा रही है? इस संबंध में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री के बयानों में विरोधाभास है। यह भाजपा और हरियाणा सरकार का मूल अपराध है। दरअसल, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर हर घटना और झड़प के दौरान विफल साबित हुए हैं।

चाहे वह जाट संरक्षण आंदोलन हो या राम रहीम को अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद भड़की सार्वजनिक हिंसा! नूह हिंसा को लेकर मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि न तो पुलिस और न ही सेना हर व्यक्ति को सुरक्षा दे सकती है। यह हकीकत हरियाणा और देश की जनता भी जानती है, लेकिन सरकार का अपना ही कबूलनामा है। कानून एवं व्यवस्था एवं खुफिया से क्या तात्पर्य है?

अगर सरकार आम नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकती तो इस्तीफा दे दे। लेकिन चुनाव में जनता फैसला करेगी। हैरानी की बात है कि सरकार इस आंकड़े का हिसाब लगा रही है कि पिछले 5 सालों में यानी 2017-22 के बीच नूह शहर में कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ। हालाँकि, शेष हरियाणा में सांप्रदायिक हिंसा और दंगों की 211 घटनाएँ हुईं। इस आधे सच पर भी कोर्ट में चर्चा होनी चाहिए। नफरत की लपटें गुरुग्राम, फ़रीदाबाद, सोहना, पलवल आदि शहरों में फैल गई हैं।

गुरुग्राम में ब्लू चिप बहुराष्ट्रीय कंपनियों का बमुश्किल कोई कार्यालय बचा है। लेकिन दुनिया में हमारी साइबर सिटी की साख कम हो गई होगी! नूहा के सवाल और शिकायतें मनु, बिट्टू तक सीमित नहीं हैं। यह जिला एक मिनी टेरिस्तान भी है। हिंसा के दौरान भीड़ ने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए।

आरोप है कि नूंह से महज 20 किलोमीटर दूर एक गांव में लश्कर-ए-तैयबाद्वारा फंडिंग से एक मस्जिद बनाई जा रही थी। इसीलिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने मस्जिद पर छापा मारा। वह मामला अभी भी चल रहा है, लेकिन मस्जिद का निर्माण रुक गया है। नूह हरियाणा का दूसरा सबसे गरीब और सबसे पिछड़ा जिला है। पर सांप्रदायिकता में शीर्ष पर हैं। गनीमत है कि जनता बार बार के इस दांव के आगे अपनी सोच को कमजोर नहीं होने दे रही है।

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