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भारतीय चावल और विधानसभा चुनाव का रिश्ता

भारत ने चावल निर्यात क्या रोक दिया, अमेरिका के डिपार्टमेंटल स्टोरों में चावल खरीदने की होड़ मच गयी। यह होड़ कुछ ऐसी मची कि दुकानों को यह फैसला करना पड़ा कि हर ग्राहक को सिर्फ एक पैकेट चावल ही मिलेगा। दूसरी तरफ भारत से विदेश जाने वाले लोग भी अपने साथ भर भरकर चावल ले जाने लगे। दरअसल इसका एक कारण अप्रवासी भारतीयों की बहुत बड़ी आबादी का अब भी विदेशों में चावल पर निर्भरता है।

इनमें दक्षिण भारतीय अप्रवासियों की संख्या अधिक है। यह सभी जानते हैं कि भारत पिछले कुछ समय में दुनिया का शीर्ष चावल निर्यातक रहा है और उसने वैश्विक व्यापार का करीब 40 फीसदी अनाज निर्यात किया। वर्ष 2022-23 में उसने 2.23 करोड़ टन चावल निर्यात किया। सरकार ने बासमती तथा उसना चावल को छोड़कर हर प्रकार के चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है।

ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार का यह निर्णय राजनीतिक बाध्यताओं से प्रेरित है। ऐसा शायद इसलिए किया गया है ताकि कुछ अहम राज्यों के विधानसभा चुनावों और अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले घरेलू आपूर्ति और कीमतों का बचाव किया जा सके। परंतु इसका असर पूरी दुनिया में महसूस किया जा रहा है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में चावल की कीमतें 11 वर्ष के उच्चतम स्तर पर हैं तथा उनमें और इजाफा होने लगा है। कुछ मामलों में तो जो माल रास्ते में है उसकी कीमत भी 50 से 100 डॉलर प्रति टन तक बढ़ गई है। इसकी दूसरी वजह यूक्रेन के अनाज निर्यात पर रूसी प्रतिबंध है क्योंकि क्रीमिया ब्रिज पर हमले के बाद नाराज रूस ने इस अनाज निर्यात समझौते से बाहर आने का एलान कर दिया था।

इसी वजह से पश्चिमी देश यह आरोप भी लगा चुके हैं कि दरअसल रूस अब यूक्रेन के खिलाफ अपने जारी युद्ध में भूख को भी बतौर एक हथियार इस्तेमाल कर रहा है। भारत की बात पर लौटें तो भारत के अचानक इस बाजार से बाहर हो जाने से वैश्विक आपूर्ति में करीब एक करोड़ टन की कमी आएगी। गैर खुशबूदार चावल के अन्य निर्यातकों में थाईलैंड और वियतनाम के पास इस कमी को पूरा करने के लिए पर्याप्त चावल का भंडार नहीं है।

इसके परिणामस्वरूप खाद्यान्न की अंतरराष्ट्रीय कीमतें जो पहले ही मौसम के कारण उपज से जुड़ी अनिश्चितताओं, रूस द्वारा यूक्रेन को काला सागर बंदरगाहों के जरिये अनाज निर्यात की इजाजत वापस लेने के कारण बढ़ी हुई थीं उनमें और तेजी आई है। इससे खाद्यान्न संकट से जूझ रहे देशों की चिंताएं बढ़ेंगी।

खासतौर पर छोटे अफ्रीकी देशों की जो भारत से आने वाले अनाज पर निर्भर करते हैं। आश्चर्य नहीं कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भारत द्वारा निर्यात प्रतिबंध को लेकर आक्रामक रुख दिखाया और कहा कि इससे वैश्विक खाद्य कीमतों की अस्थिरता की स्थिति और बिगड़ सकती है। उन्होंने भारत से कहा है कि उसे यह प्रतिबंध हटा लेना चाहिए। देश में भी सरकार के कदम को समझदारी भरा नहीं माना जा रहा है।

इसकी कई वजह हैं। एक बात तो यह कही जा रही है कि ऐसा करके भारत आकर्षक वैश्विक कीमतों से फायदा उठाने से चूक रहा है। इसके अलावा यह इस लिहाज से भी नुकसानदेह हो सकता है क्योंकि किसान धान की खेती का रकबा बढ़ाने को लेकर हतोत्साहित होंगे और वे उपज बढ़ाने वाले साधनों का प्रयोग भी नहीं करेंगे। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इससे खाद्यान्न के विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता और विश्वसनीय व्यापारिक साझेदार की भारत की छवि को भी नुकसान पहुंचेगा।

इसमें दो राय नहीं है कि चावल की घरेलू कीमतों में साल भर में करीब 11.5 फीसदी का इजाफा हुआ है लेकिन इस इजाफे की एक वजह न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा भी है। निश्चित रूप से स्थानीय बाजारों में चावल की कोई कमी नहीं है। इसी प्रकार भारतीय खाद्य निगम के कुल अनाज भंडार में कमी आई है लेकिन चावल का भंडार अभी भी 4.1 करोड़ टन से अधिक है यानी 1.35 करोड़ टन की बफर स्टॉक सीमा से काफी अधिक।

यह सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए सरकार की 3.6 से 3.8 करोड़ टन की आवश्यकता से काफी अधिक है। यह आशंका भी कमजोर हुई है कि उभरते अल नीनो प्रभाव के कारण मॉनसून तथा धान की खेती प्रभावित होगी। अब तक तो मॉनसून देश भर में सामान्य से बेहतर रहा है और धान की बोआई उन इलाकों में भी काफी अच्छी है जहां पिछले साल यह इस समय कमजोर रही थी। ऐसे में सरकार को यही सलाह होगी कि वह बाजार को ऐसे झटके देने वाले निर्णय न ले और यह सुनिश्चित करे कि घरेलू और बाहरी खाद्यान्न व्यापार नीतियों में स्थिरता बरकरार रहे। चुनाव सर पर होने की वजह से केंद्र सरकार महंगाई के  मुद्दे पर जनता की और नाराजगी झेलना नहीं चाहती। इसी वजह से अब चावल की कीमतों को और बढ़ने से रोकने का यह सरल तरीका है।

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