संविधान को जब जब अपनी मर्जी के चलाने की कोशिश हुई है, अधिकांश मामलों में देश की न्यायपालिका ने इस तानाशाही में अड़चन लगायी है। अदालती फैसलों की वजह से देश की राजनीति ही बदली है।
इस बार भी कुछ वैसी ही स्थिति बनी है जबकि सभी राजनीतिक दलों की नजर सुप्रीम कोर्ट पर टिकी है। इस शीर्ष अदालत में राहुल गांधी के मानहानि मामले के अलावा महाराष्ट्र के एकनाथ शिंदे तथा साथ में एनसीपी में टूट के अलावा कश्मीर में धारा 370 का मामला शामिल है।
इसके अलावा भी पेगासूस और अडाणी समूह के मामले भी देश की चुनावी राजनीति को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट तब भी सुन रहा है जबकि केंद्र सरकार ने इन पर आपत्ति जतायी थी। कांग्रेस ने गुजरात हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद ही राहुल गांधी के मामले में सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाने का एलान कर दिया था।
कांग्रेस ने शुक्रवार को उच्च न्यायालय के आदेश को बेहद निराशाजनक, लेकिन अप्रत्याशित नहीं बताया। कांग्रेस नेता और वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, न्यायालय जो विकसित हो रहे हैं वह अद्वितीय है और मानहानि कानूनों के विषय पर पारित किसी भी अन्य फैसले के साथ इसकी कोई मिसाल या समानता नहीं है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा, श्री राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि मामले का पूरा उद्देश्य उन्हें संसद से अयोग्य घोषित करना था।
इसके बाद जो कुछ भी हुआ वह अयोग्यता को उचित ठहराने का एक प्रयास है। भारतीय दंड संहिता लागू होने के 132 वर्षों में, बदनामी (मौखिक मानहानि) का कोई मामला नहीं आया है जहां किसी अदालत ने 2 साल की अधिकतम सजा दी हो। यह तथ्य मामले और ट्रायल कोर्ट के फैसले के बारे में सब कुछ बताता है।
पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि कोई भी कांग्रेस नेता या कार्यकर्ता भाजपा की राजनीतिक साजिश से नहीं डरता। उन्होंने कहा कि गांधीजी हमेशा सच्चाई के लिए लड़ते रहे हैं और आगे भी लड़ते रहेंगे। कल यानी 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने 31 जुलाई को शिव सेना (यूबीटी) नेता उद्धव ठाकरे द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की, जिसमें भारत के चुनाव आयोग के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पार्टी का नाम शिवसेना और चुनाव चिन्ह धनुष और तीर उनके नेतृत्व वाले धड़े को आवंटित किया गया था।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. के समक्ष पेश वकील अमित आनंद तिवारी ने कहा कि मामले की आखिरी सुनवाई 22 फरवरी को हुई थी और अगले तीन सप्ताह के भीतर सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया था। हालाँकि, मामला सामने नहीं आ सका। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि निर्धारित तारीख 31 जुलाई है और मामले की सुनवाई तब की जाएगी।
संजय राउत का दावा है कि , शिंदे खेमे ने 2,000 करोड़ रुपये में खरीदा शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह। संविधान पीठ ने माना था कि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा लंबित अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने के बाद चुनाव आयोग का आदेश केवल संभावित रूप से प्रभावी होगा।
श्री ठाकरे ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक अलग याचिका दायर की थी, जिसमें स्पीकर पर अयोग्यता की कार्यवाही में जानबूझकर देरी करने का आरोप लगाया गया था। भारत के सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. की अध्यक्षता में शीर्ष अदालत की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ।
चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस.के. शामिल थे। कौल, संजीव खन्ना, बी.आर. गवई और सूर्यकांत ने मामले की सुनवाई की और प्रक्रियात्मक औपचारिकताएं पूरी करने और सुनवाई की अगली तारीख 2 अगस्त तय करने का निर्देश दिया। चूंकि सुविधा संकलन पहले से ही तैयार है, अगर कोई कुछ जोड़ना चाहता है, तो उसे 27 जुलाई से पहले किया जाएगा। लिखित प्रस्तुतियाँ भी 27 जुलाई को या उससे पहले दायर की जाएंगी। उसके बाद कोई दस्तावेज़ स्वीकार नहीं किया जाएगा, ऐसा मुख्य न्यायाधीश ने कहा।
इसके अलावा दिल्ली सेवा अध्यादेश का मामला भी शीर्ष अदालत तक पहुंच चुका है। यह सारे ऐसे मामले हैं, जिनपर अगर कोई भी फैसला केंद्र सरकार अथवा भाजपा अथवा उसके सहयोगियों के खिलाफ गया तो देश की राजनीति में बदलाव तत्काल नजर आयेंगे। ऑपरेशन लोट्स अब जगजाहिर बात है।
ऐसे में अगर इस पर न्यायालय का अंकुश लगता है तो लोकसभा चुनाव के पहले ही ढेर सारे समीकरण बदल जाएंगे, यह एक तय बात है। दूसरी तरफ किसी भी मामले में फैसला अगर सरकार के खिलाफ गया तो भाजपा विरोधी दलों के एकजुट होने की प्रक्रिया में भी तेजी आयेगी। वैसे यह अच्छी बात है कि भारतवर्ष में हर फैसले के ऊपर देश का संविधान है और इसी संविधान की विवेचना बार बार सुप्रीम कोर्ट में होती है।