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दिल्ली सेवा अध्यादेश में केंद्र सरकार को नोटिस जारी

  • अभिषेक मनु सिंघवी ने दी दलील

  • अदालत ने सोमवार की सुनवाई तय की

  • पूर्व फैसले के बाद ही आया था यह अध्यादेश

राष्ट्रीय खबर

नईदिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सेवा अध्यादेश, 437 सलाहकारों की बर्खास्तगी के खिलाफ AAP सरकार की याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह 17 जुलाई को अंतरिम राहत की प्रार्थना पर सुनवाई करेगा जिसमें अध्यादेश पर रोक के साथ-साथ दिल्ली सरकार द्वारा नियुक्त 437 सलाहकारों को बर्खास्त करने के एलजी के फैसले पर रोक भी शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली सरकार की उस याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा, जिसमें दिल्ली सेवा अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है, जो दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) को सिविल सेवकों के तबादलों और पोस्टिंग की निगरानी करने की अधिभावी शक्तियां देता है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) विनय कुमार सक्सेना को मामले में प्रतिवादी बनाया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह 17 जुलाई को अंतरिम राहत की प्रार्थना पर सुनवाई करेगा जिसमें अध्यादेश पर रोक के साथ-साथ दिल्ली सरकार द्वारा नियुक्त 437 सलाहकारों को बर्खास्त करने के एलजी के फैसले पर रोक भी शामिल है।

आम आदमी पार्टी (आप) सरकार की याचिका में कहा गया है कि अध्यादेश दिल्ली में कार्यरत सिविल सेवकों का नियंत्रण दिल्ली की निर्वाचित सरकार से छीनकर अनिर्वाचित उपराज्यपाल को दे देता है। यह अध्यादेश मई में लागू किया गया था, एक हफ्ते से कुछ अधिक समय बाद जब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा था कि यह दिल्ली सरकार है जो राष्ट्रीय राजधानी में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारियों सहित सभी सेवाओं पर नियंत्रण करने की हकदार है।

उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया था कि राज्यों की चुनी हुई सरकारों का शासन केंद्र सरकार अपने हाथ में नहीं ले सकती। उसके बाद ही केंद्र सरकार यह अध्यादेश लेकर आयी थी। याचिकादाता के वकील शादान फरासत के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर याचिका में कहा गया है कि अध्यादेश, संविधान के अनुच्छेद 239एए में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए संघीय, लोकतांत्रिक शासन की योजना का उल्लंघन करता है, संवैधानिक पीठ के फैसले को विधायी रूप से खारिज कर देता है या उसकी समीक्षा करता है, संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश बनाने की शक्तियों का एक अनुचित और असंवैधानिक दुरुपयोग है।

आज सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अध्यादेश दिल्ली के मुख्य सचिव को दिल्ली की चुनी हुई सरकार की अवज्ञा करने की छूट देता है। उन्होंने मांग की, ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज आदि द्वारा नियुक्त किए गए स्वतंत्र सलाहकारों को एलजी ने निकाल दिया है।

इस अदालत ने कितनी बार संसद के अधिनियम पर रोक लगाई है, अध्यादेश की तो बात ही छोड़िए? संविधान के फैसले को कैसे रद्द किया जा सकता है। सिंघवी ने इस पर रोक लगाने की भी मांग की। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने कहा कि सलाहकारों को हटाने का फैसला कुछ चौंकाने वाले तथ्यों पर आधारित था।

सिंघवी ने जवाब दिया, कृपया एक योग्य स्टे दें और इसे शुक्रवार को बुलाएं। सिंघवी ने जवाब दिया, चुनी हुई सरकार उनका नियोक्ता है और सलाहकारों ने सरकार से संपर्क किया है।  एसजी ने कहा, नियुक्त व्यक्तियों में से एक विधायक की पत्नी थी और अन्य पार्टी कार्यकर्ता थे। पीठ ने स्पष्ट किया, ‘हम अंतरिम राहत के सवाल पर अगले सोमवार को विचार करेंगे। पीठ ने कहा, वह अध्यादेश पर रोक लगाने के लिए भी दबाव बना रहे हैं। हम उस अधिकार को कम नहीं कर सकते। आप इस पर गौर कर सकते हैं। हम सोमवार को सुनवाई करेंगे।

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