Breaking News in Hindi

मल्टीस्टोरी के चक्कर में पानी को तरस गये रांची के लोग

  • साउथ ऑफिस पाड़ा से प्रारंभ हुई संस्कृति

  • वर्धवान कंपाउंड में सुबह से शाम तक टैंकर

  • बरसात प्रारंभ होने के बाद भी स्थिति नहीं सुधरी

राष्ट्रीय खबर

रांचीः रांची में चार अथवा उससे अधिक मंजिलों वाले इमारतों को बनाने का सिलसिला साउथ ऑफिस पाड़ा से हुआ था। दरअसल एजी ऑफिस खुलने की वजह से वहां चालीस के दशक में अनेक बंगाली परिवार आकर बस गये थे। इसलिए सस्ते मे जमीन खरीदकर उन्होंने अपना खुला खुला घर बनाया था।

घर में सदस्य बढ़ने तथा कई स्तरों पर बंटवारा ने यहां मल्टीस्टोरी बिल्डिंग की संस्कृति को बढ़ावा दिया। देखते ही देखते वहां ऐसे भवनों की कतार खड़ी हो गयी। लेकिन पिछले दस वर्षों से वहां जलसंकट एक स्थायी समस्या बनी हुई है। दरअसल वहां भी प्रारंभ में वही गलती दोहरायी गयी, जो आज जलसंकट की मूल वजह बन चुकी है।

लोगों ने अधिक जमीन पर घर बनाने की लालच में कुआं बंद कर दिये। उसके बाद अधिकाधिक जमीन पर बहुमंजिली इमारत खड़ी करने के बाद सफाई और सुंदरता के नाम पर शेष जमीन पर टाइल्स और सीमेंट की ढलाई कर दी। इससे जमीन के अंदर पानी का रिसाव बंद हो गया। वह ऐसा दौर था, जब रेन वाटर हार्वेस्टिंग की जानकारी भी नहीं थी।

नतीजा दस वर्षों के बाद नजर आया जब हर साल गर्मी के प्रारंभ से ही जल संकट दिखने लगा। जरूरत के हिसाब ने लोगों न अधिक गहराई तक बोरिंग कराया तो पानी मिला पर वहां के जल भंडार को रिचार्ज करने का कोई इंतजाम नहीं होने की वजह से वे भी क्रमवार तरीके से फेल होते चले गये।

गौरीशंकर नगर में रहने वाले एजी ऑफिस के पूर्व कर्मचारी और सामाजिक कार्यकर्ता भवेश घोषाल कहते हैं कि इस पूरे इलाके यानी साउथ ऑफिस पाड़ा, नार्थ ऑफिस पाड़ा और गौरी शंकर नगर का अब एक जैसा हाल हो गया है। कुछ में तो गर्मी प्रारंभ होते ही जलसंकट प्रारंभ हो जाता है। अभी हालत यह है कि बरसात होने क बाद भी जलस्तर में कोई सुधार नहीं हुआ है। अब भी लोग टैंकर अथवा दूसरे माध्यमों से ही जल खरीद रहे हैं।

उसके बाद बंगालियों के दूसरी आबादी के इलाके वर्धमान कंपाउंड का नंबर आया। वहां भी लोगों ने साउथ ऑफिस पाड़ा के बदलाव को देखते हुए बहुमंजिली इमारतों की प्राथमिकता दी। यहां की जमीन के अनेक मालिक रांची छोड़कर अन्यत्र चले गये थे तो बिल्डरों ने उनसे संपर्क कर जमीन हासिल किये और इस पूरे इलाके में भी एक एक कर बहुमंजिली इमारतों का जाल बिछता चला गया।

वहां के सामाजिक कार्यकर्ता तथा कांग्रेस के नेता निरंजन शर्मा के मुताबिक अब तो पूरे इलाके में भीषण जलसंकट के बीच लोग पूरी तरह टैंकरों पर निर्भर हो गये हैं। बारिश और अधिक होगी तभी यहां हर साल स्थिति में सुधार होता है। उन्होंने कहा कि अब तक नई भवनों में छह सौ फीट तक बोरिंग करना पड़ रहा है। हालात इतने बिगड़ गये हैं कि अगर बगल वाली जमीन पर नई बिल्डिंग के लिए बोरिंग हुई तो पड़ोस की इमारतों की बोरिंग का पानी सूख जाता है। अभी भी वहां सुबह से शाम तक टैंकरों का आना जाना देखा जाता है।

उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा।