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जामताड़ा गैंग के लोगों का घर पहचानना आसान है

ठगी का पैसा जमा होता है वहां के गरीब लोगों के जनधन खातों में

  • गांव में अधिकांश लोग गरीब

  • उनके खातों का इस्तेमाल होता है

  • जालसाज मानते हैं बुद्धि से कमा रहे हैं

एस दासगुप्ता

कोलकाताः जामताड़ा गैंग अब पूरे देश में ऑनलाइन ठगी की वजह से चर्चित हुआ है। वहां के लोग भी मानते हैं कि भले ही किसी गलत वजह से लेकिन इलाके का नाम पूरा देश जान गया है। अब तो स्थानीय निवासी भी पुलिस आने पर यह देखने को उत्सुक रहते हैं कि आखिर किस राज्य की पुलिस इस बार आयी है।

मजेदार बात यह है कि ऑनलाइन ठगी का पैसा जिस खाता में गया, उसकी तलाश में आने वाली पुलिस टीम को भी हताश होना पड़ता है। अधिकांश मामलों में इस ठगी का पैसा अपराधी अपने खाते में नहीं बल्कि अपने इलाके के गरीब लोगों के जनधन खातों में जमा करते हैं। बैंक एकाउंट के जरिए वहां तक पहुंची पुलिस भी अभियुक्त की आर्थिक हालत देखकर हैरान हो जाती है।

वैसे सच यह है कि ठगी करने वालों ने अब अपना तरीका ही बदल लिया है। वे अब अपने इलाके के गरीब लोगों के बैंक खातों का इस्तेमाल कर रहे हैं। यूं तो ऐसे गांव में बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित नहीं है लेकिन वहां का माहौल जानने वाले कहते हैं कि अगर आप आये हैं तो कमसे कम यह सावधानी बरतनी होगी कि गाड़ी को कहीं भी खड़ी ना करें।

एक ऐसे ही गांव का दौरा कर असलियत जानने का मौका मिला। गांव जाने के लिए वहां की जानकारी रखने वाले मित्र का साथ मिल गया था। वीरान इलाके में गुजरते हुए इधर-उधर छोटी-छोटी पहाड़ियाँ, झाड़ियाँ नज़र आने लगीं। और बीघा के बाद बीघा असिंचित भूमि है। मैदान से धूल उड़ रही है।

इस क्षेत्र से गुजरते समय और गर्मी के मौसम में तथाकथित खेत्ज़मीर, मैंने सोचा, लोग यहाँ कैसे रहते हैं। मोटरसाइकल चला रहे दोस्त ने कहा, खेती होती है। मानसून के बाद, क्षेत्र थोड़ा ठंडा हो जाता है। मैदान में जान आ जाती है। फिर चावल और मक्का की खेती शुरू हुई। जिसकी तलाश आम लोग कर रहे हैं।

वह कह रहे थे, ‘इन्हें गरीब कहा जा सकता है।  पूरे इलाके में डेढ़ लाख लोगों का घर है। अधिकांश लोग आदिवासी समुदायों के हैं। हिंदी है तो कई लोग बांग्ला भी बोलते हैं। लेकिन आम लोगों की अपनी बोलचाल की भाषा होती है, जिसे जल्दी समझना मुश्किल होता है।

मोटरसाइकिल आगे बढ़ने पर झोपड़ियां नजर आई। मैदान में छोटे-छोटे अहाते। दूर-दराज के इलाकों की सड़कें पक्की हैं। उस रास्ते के मंडलपारा, राशिकपारा, निमटोरे जैसे इलाकों में जाकर पता चला कि पूरा इलाका कितना गरीब है। इस गरीबी की वजह से ही अपराध दर अधिक है। झोपड़ियों और पेड़ों के बीच बड़े घर भी नजर आये।

एक नहीं, दो नहीं। अनेक। किसी के सामने कार, किसी के सामने महंगी मोटरसाइकिल। इन घरों के मालिक ही साइबर अपराध के मुख्य अपराधी हैं। हालांकि, वे दिन के उजाले में विशेष रूप से दिखाई नहीं देते हैं। एक और बात ध्यान देने योग्य है कि क्षेत्र में बड़ी संख्या में मोबाइल टावर हैं।

पुलिस सूत्रों के मुताबिक लगातार कार्रवाई में कई जालसाज पकड़े गए। लोगों को भी होश आया है। नतीजतन, जामताड़ा गैंग ने ठगी के नए-नए तरीके ईजाद करने शुरू कर दिए। धोखाधड़ी का पैसा अब सीधे उनके बैंक खातों में नहीं जाता है। पुलिस के मुताबिक, बदमाशों ने गांव के गरीब लोगों के खातों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था।

पहले लूट का पैसा वहीं जमा किया जाता है। गरीब लोगों को हिसाब किराया लेने के बदले में कुछ पैसे दिए जाते थे। पुलिस के मुताबिक जालसाज इस काम में दो तरह से आगे बढ़ते हैं। सबसे पहले यह पता करें कि क्षेत्र में किसके जन धन खाते हैं। ठगों ने गरीबों के सामने यह शर्त रखी कि उन्हें लेन-देन के बदले पैसे दिए जाएंगे।

दूसरे, उन्होंने खुद इलाके के कुछ गरीब लोगों के खाते खुलवाए। उसने डेबिट कार्ड का इस्तेमाल कर वहां से अपना हिस्सा वापस ले लिया। नतीजतन, सरगनाओं के खाते पुलिस की जांच से बचते रहे। पहले तो पुलिस इस चाल को पकड़ नहीं पाई। खाते के सूत्र के मुताबिक, कुछ लोगों को गिरफ्तार करने और पूछताछ करने के बाद ही खाता किराए पर देने की बात पता चली थी।

ऐसे लोगों में ज्यादातर गरीब लोग हैं। कई मामलों में, वे नहीं जानते थे कि अपने स्वयं के खातों में धोखाधड़ी के धन का व्यापार करना अपराध है। जामताड़ा पुलिस की साइबर क्राइम ब्रांच के डीएसपी मजरुल होदा ने कहा, नियमित अभियान चलाकर गांव के गरीब परिवारों को अपराध के प्रति जागरूक करना संभव हुआ है।

लेकिन फिर भी बहुत से लोग कम पैसे के लिए जालसाजों के जाल में फंस रहे हैं। मजरूल ने जालसाजों के बारे में चौंकाने वाली बातें भी कहीं। उन्होंने कहा, साइबर क्राइम के अधिकारी शुरू में इन जालसाजों से जानना चाहते हैं कि वे इस तरह की गतिविधियों में क्यों शामिल हैं?’ जालसाजों ने तब कहा कि वे अपनी बुद्धि से कमा रहे हैं। उन्हें नहीं लगता कि यह एक अपराध है।

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