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पुकारो मुझे फिर पुकारो.. .. ..

अपने दिल्ली वाले सीएम को सीबीआई ने पुकारा है। रविवार को पेश है, मामला है दिल्ली के आबकारी घोटाले का। पता नहीं क्यों इतनी शोर गुल के बीच भी यह बात समझ में नहीं आ रही है कि आखिर घोटाला अगर हुआ है तो मैंगो मैन की समझ में आने लायक साक्ष्य सार्वजनिक क्यों नहीं होते हैं। खैर कोई बात नहीं अगर अंदर कर दिया तो वहां पहले से ही मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन साथ देने के लिए मौजूद हैं। इस बीच कहीं तेलेंगना के सीएम की पुत्री भी बंध गयी तो आबकारी घोटाला के कई वीआईपी अभियुक्त एक साथ वहां दरबार लगा सकते हैं।

पुकारने का काम तो बिहार में भी चल रही है। डिप्टी सीएम तेजस्वी और उनके परिवार के लोगों को बार बार केंद्रीय एजेंसियां बुलावा भेज रही हैं। तेजस्वी ने अच्छी सलाह दी थी कि उनके आवास पर ही एक अस्थायी कार्यालय खोल लें ताकि बार बार की दिक्कत नहीं रहे। लेकिन एगो कंफ्यूजन है कि सीबीआई वाले सृजन घोटाले में किसी को पुकार क्यों नहीं रहे हैं। क्या उस मामले में भाजपा वाशिंग मशीन का कोई शख्स भी शामिल है।

पुकारने की बात चली तो कर्नाटक में राजनीतिक दल एक दूसरे के सैनिकों को पुकार रहे हैं। अपना गुट भारी करना है, इसलिए कोई भी किधर चला जा रहा है। टिकट नहीं मिलने की नाराजगी क्या होती है, यह बात समझ में आती है। अब अगर यही हाल रहा तो लोकसभा का इलेक्शन आते आते कौन सा खेमा किस हाल में होगा, यह कहना कठिन है।

गनीमत है कि मोदी जी की सरकार ने विपक्ष की बात नहीं मानी। वरना अगर अडाणी प्रकरण में जेपीसी का गठन हो जाता तो पता नहीं यह संयुक्त संसदीय कमेटी किस किस को पुकार लेती। इस समिति की पुकार को नजरअंदाज करना भी कठिन नहीं होता क्योंकि उसमें कई पेंच है। ठीक ही हुआ कि मोदी जी ने विरोधियों के सामने हथियार नहीं डाले।

लेकिन इससे परेशानी कम होती तो नजर नहीं आती। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और उनके मुलाजिमों को अलग अलग मामले में पुकारा है। ईडी के निदेशक के सेवाविस्तार मामले में सरकार को बताने को  कहा है। दूसरी तरफ दिल्ली के उप राज्यपाल से पूछा है कि बिना सरकार की सहमति के दिल्ली नगर निगम में पार्षद कैसे मनोनित कर दिये।

इन दोनों पुकारों का हल्के में तो कतई नहीं लिया जा सकता। वह भी इस मौके पर जब अडाणी मुद्दे पर भी सुप्रीम कोर्ट अपने तरीके से जांच कर ही रही है। कहीं से एक नट भी खुल गया तो पूरी मशीन के भरभराने लगेगी। मशीन का पूरा वजन नरेंद्र मोदी पर ही है। पर वह भी इतना अधिक बोझ कैसे संभाल रहे हैं, यह पुकार कर समझने वाली बात है। ऊपर से आम आदमी पार्टी वाले बार बार हांक लगाकर अपनी डिग्रियां दिखा रहे हैं और कह रहे हैं कि चुनावी हलफनामा की डिग्री अगर फर्जी साबित हुई तो क्या करेंगे। इस सबसे नई राष्ट्रीय पार्टी ने वाकई मोदी जी की नाक में दम कर रखा है।

इसी बात पर पुरानी फिल्म बुनियाद का यह गीत याद आने लगा है। इस गीत को लिखा था आनंद बक्षी ने और उसे संगीत में ढाला था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की जोड़ी ने। इस गीत को किशोर कुमार और लता मंगेशकर ने अपना स्वर दिया था। गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।

ओ ओ
पुकारो मुझे फिर पुकारो पुकारों मुझे फिर पुकारो
मेरे दिल के आईने में जुल्फ़ें आज सवारों

पुकारों मुझे फिर पुकारो पुकारों मुझे फिर पुकारो
मेरी जुल्कों के साए में आज की रात गुज़ारो

पुकारों मुझे फिर पुकारो

गुलशन में ऐसी छाँव ऐसी धूप नहीं
गुलशन में ऐसी छाँव ऐसी धूप नहीं
कलियों मे ऐसा रंग ऐसा रुप नहीं
जाओ मेरे यार सा फूल कोई लेके आओ बहारो
पुकारों मुझे फिर पुकारों

चांदनी की इस अंधेरे में जरूरत नहीं
चांदनी की इस अंधेरे में जरूरत नहीं
कुछ सोचे कुछ देखें हमको फुरसत नहीं
जाओ कहीं जा के छुप जाओ आज की रात सितारों
पुकारो

अपने खाबों की दुनिया बसायेंगे हम
अपने खाबों की दुनिया बसायेंगे हम

आसमानो से भी आगे निकल जायेंगे हम

साथ हमारे तुम चलना ऐ हसीन नजारों

साथ हमारे तुम चलना ऐ हसीन नजारों

पुकारों मुझे फिर पुकारो पुकारों मुझे फिर पुकारो

अब झारखंड की भी बात कर लें तो बार बार ईडी की मंशा हेमंत सोरेन को पुकारने की होती है। हर एंगल से ठोंक बजाकर छापामारी होती है। अधिकारी फंस भी जाते हैं।

यह अलग बात है कि जनता को जो बातें बहुत पहले से मालूम हैं, उन बातों को जानने में सरकारी एजेंसियों को इतना टैम क्यों लगता है। लेकिन ईडी की अपनी परेशानी अलग है। अलग थलग बैठे सरयू राय बार बार ऐसी कोशिशों पर पानी फेर देते हैं। एक छापा हुआ नहीं कि उससे जुड़ी चार अन्य बातों का उल्लेख वह कर देते हैं और मामला फिर से फंस जाता है।

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