रांचीः झारखंड के राज्यपाल द्वारा 1932 के आधार पर स्थानीय नीति विधेयक को पुनर्समीक्षा हेतु वापस कर देने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए टीएसी के पूर्व सदस्य रतन तिर्की ने कहा कि राज्यपाल को पांचवीं अनुसूची के अनुपालन पर ही आपत्ति है। इसलिये उन्होंने स्थानीय नीति को लौटाया है। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टियों को इस पर राजनीति नहीं करनी चाहिए।
रतन तिर्की ने कहा कि वर्ष 2002 में झारखंड हाईकोर्ट ने कहा था कि झारखंड सरकार चाहे तो वह अपनी स्थानीय नीति बना सकती है। लेकिन राज्यपाल ने सर्वोच्च न्यायालय का हवाला देकर इसे वापस कर दिया है जो राज्य के आदिवासियों और खतियानी झाड़खंडियों के संवैधानिक अधिकारों का हनन है।
श्री तिर्की ने कहा है कि झारखंड उच्च न्यायालय के महाअधिवक्ता राजीव रंजन को इसपर सरकार को सुझाव देना चाहिए। रतन तिर्की ने कहा कि झारखंड सरकार को स्थानीय नीति पर जल्द ही अध्यादेश लाना चाहिये। राज्य के आदिवासी और झाड़खंडी राज्यपाल के नकारात्मक रूख से नाराज़ है।
रतन तिर्की ने यह भी कहा है कि भाजपा कांग्रेस आजसू राजद और वामपंथी दलों को भी अपनी पार्टियों का स्थानीय नीति पर रुख स्पष्ट करना चाहिए। रतन तिर्की ने कहा कि राज्यपाल ने अभी तो स्थानीय नीति विधेयक वापस लौटाया है।
अगर रही रवैया रहा तो सरना धर्म कोड मामला भी वापस लौटा दिया जायेगा। उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सुझाव देते हुए कहा है कि जोहार यात्रा के दौरान अपार जनसमर्थन 1932 के स्थानीय नीति को लेकर ही मिल रहा है इसलिए हर हाल में स्थानीय नीति पर अध्यादेश आगे लाने की ओर कदम बढ़ाते।
झारखंड के राज्यपाल द्वारा राज्य सरकार की ओर से 1932 के आधार पर स्थानीय नीति बनाए जानें के निर्णय से संबंधित फाइल पर अपनी असहमति जताते हुए लौटाए जानें का मामला दुर्भागपूर्ण एवम राजनीती से प्रेरित है। अंततः राज्य की स्थानीय जनता के साथ फिर धोखा हुआ है।
वैसे भी जब से राज्य का निर्माण हुआ है और निर्माण से पहले राज्यपाल की ओर से आदिवासियों और अन्य स्थानीय लोगों के हित में किसी भी मामले पर कोई ठोस नीतियां नहीं बनी बल्कि बनने वाली नीतियों को बाधित ही किया गया। पांचवी अनुसूची का क्षेत्र होने के नाते राजयपाल की जिम्मेवारी बनती है की यहां के आदिवासियों एवम अन्य स्थानीय लोगों के विकास की नीति तय करें।
बड़े शर्म की बात है की राज्य सरकार और राज्य भवन की राजनीति शिकार आम जनता हो रही है। हम यही कहना चाहते हैं की झारखंड की आदिवासी एवम स्थानीय जनता के विकास के लिए ठोस नीति आवश्यक है। यह कैसे होगा यह राज भवन और राज्य सरकार को तय करना है। अगर ऐसा नहीं होता है तो आम जनता को मजबूरन सड़कों पर उतरना होगा ।