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आकार में यह उल्कापिंड बहुत बड़ा है
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धरती पर तबाही मचाने की शक्ति है
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इसकी धुरी कभी तो पृथ्वी से मिलेगी
राष्ट्रीय खबर
रांचीः पृथ्वी पर फिर से एक महाविनाश का खतरा मंडरा रहा है। वैसे यह निकट भविष्य की बात नहीं है। खगोल वैज्ञानिकों ने उस उल्कापिंड की पहचान की है, जो सूर्य की रोशनी की सीध में होने की वजह से वैज्ञानिकों की नजरों से छिपा रहा है। याद दिला दें कि धरती पर डायनासोर युग का अंत भी किसी बड़े उल्कापिंड के टकराने की वजह से हुआ था।
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इस उल्कापिंड की टक्कर से भी कुछ वैसा ही होगा, यह वैज्ञानिकों ने स्पष्ट कर दिया है. इस बारे में एस्ट्रोनॉमिकल जर्नल के एक में जानकारी दी गयी है। इस बार भी यह उल्कापिंड तेजी से धरती की तरफ बढ़ रहा है लेकिन खगोल वैज्ञानिकों के मुताबिक इस बार यह पृथ्वी के काफी करीब से गुजरता हुआ आगे निकल जाएगा। यानी इस बार उसकी पृथ्वी से टक्कर होने की कोई आशंका नहीं है। इस उल्कापिंड का नाम 2022 एपी 7 है।
इसके आकार के बारे में बताया गया है कि यह करीब डेढ़ किलोमीटर चौड़ा है और अब तक पहचाने गये बड़े आकार के वैसे उल्कापिंडों में से एक है, जिनकी धरती से टक्कर हो सकती है। आम तौर पर छोटे आकार के उल्कापिंड अक्सर ही धरती की तरफ आते रहते हैं।
ऐसे छोटे आकार वाले उल्कापिंडों से कोई खतरा नहीं होता क्योंकि वे वायुमंडल में प्रवेश करते ही घर्षण की वजह से जलकर राख हो जाते हैं। बड़े आकार के उल्कापिंड आसमान में ही जलकर राख नहीं होते। जब ये धरती से टकराते हैं तो कई किस्म की प्रतिक्रियाएं होती हैं। इस उल्कापिंड के मामले में भी कुछ ऐसा ही होगी। इसकी धुरी की गणना करने के बाद ही यह माना गया है कि भविष्य में कभी यह चक्कर काटता हुआ धरती पर आ गिरेगा। पहले इसे सही तरीके से न तो देखा जा सका था और न ही उसकी धुरी का पता चल पाया था।
आने वाले हजार वर्षों में कभी भी उसकी धुरी पृथ्वी की सीध में होगी तब यह टक्कर होगी। पृथ्वी और इस उल्कापिंड की धुरी के बीच की दूरी कम हो रही है, इसी वजह से कभी न कभी वे आपस में टकरा जाएंगे। अभी इस उल्कापिंड पर चिली में स्थिल वेधशाला से नजर रखने का काम चल रहा है। इसके अलावा भी एक और बड़े उल्कापिंड के देखा गया है जो आकार में करीब एक किलोमीटर चौड़ा है।
इस बारे में हुए शोध के बाद शोध दल के नेता स्कॉट शेफार्ड ने कहा कि इस उल्कापिंड की टक्कर से महाविनाश होगा, इस बात में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है। आकार में इतना बड़ा होने की वजह से वह पूरी तरह खत्म नहीं होगा। उसका बहुत बड़ा हिस्सा जब धऱती से आ टकरायेगा तो डायनासोर युग खत्म करने वाले उल्कापिंड से उत्पन्न हुई परिस्थितियां ही दोहरायी जाएंगे।
इसे भी अब नियर अर्थ ऑब्जेक्ट की श्रेणी में रखा गया है। वैसे खगोलीय पिंड इस श्रेणी में शामिल किये जाते हैं, जो धरती से 120 मिलियन मील की दूरी से गुजरते हैं। इसका पता देर से इसलिए चला है क्योंकि सूर्य की रोशनी में सफर करने वाले उल्कापिंड को धरती पर स्थापित दूरबीनों से हमेशा देख पाना संभव नहीं होता है।
इस बारे में नासा का अनुमान है कि धरती की धुरी पर चक्कर काटने वाले किसी भी उल्कापिंड का इस सदी के अंत तक धरती के करीब आने की कोई आशंका नहीं है। हाल के दिनों में सबसे बड़े आकार का उल्कापिंड रूस के चेलियाबिंस्क में गिरा था। इसके गिरने से करीब पांच सौ किलोटन विस्फोट जैसी ऊर्जा निकली थी, जो हिरोशिमा में फटे एटम बम से कमसे कम 26 गुणा अधिक ताकतवर था।
रूस के उस इलाके में उल्कापिंड के गिरने के दौरान आसमान पर बने शीशे की चोट से करीब डेढ़ हजार लोग घायल हो गये थे। वैसे इस उल्कापिंड की टक्कर की आशंका के बीच ही तब तक डार्ट अभियान को और उन्नत बना लिये जाने की उम्मीद भी है। अभी हाल ही में गत 26 सितंबर को एक सैटेलाइट ने इस अभियान के तहत एक छोटे आकार के उल्कापिंड में टक्कर मारी थी। जिसका परिणाम यह हुआ कि वह उल्कापिंड अपनी धुरी से खिसक गया है।